तरवे नमोऽस्तुते Tarave Namostute

प्रस्तुत है…NCERT Samadhaan sanskrit class 9 पुस्तक मणिका…..सप्तमः पाठः तरवे नमोऽस्तुते… हिन्दी अनुवाद, शब्दार्थ, अन्वय तथा पाठ आधारित अभ्यास कार्य Solution

  • प्रत्यूषः… अर्णव! त्वम् अद्य कम् वृक्षम् आरोपयितुम् आनीतवान्?
  • प्रत्यूष….अर्णव!आज तुम किस वृक्ष को लगाने के लिये लाये हो?
  • अर्णवः.. मया तु आम्रवृक्षस्य पादपः आनीतः।
  • अर्णव …मैं तो आम्र वृक्ष का पौधा लाया हूं।
  • सौरभः… अहम् तु अर्जुनवृक्षस्य पादपम् आनीतवान्।
  • सौरभ….मैं तो अर्जुन वृक्ष का पौधा लाया हूं।
  • ऋषभः… मया तु हरिशृङ्गारः आनीतः।
  • ऋषभ…मैं तो हरिशृङ्गार लाया हूं।
  • आचार्यः… छात्राः ! धन्याः ननु यूयम् यत् वृक्षान् प्रति एवं समादरभावं धारयथ।
  • आचार्य…छात्रों तुम सब निश्चय ही धन्य हो जो वृक्षों के प्रति इस प्रकार का आदर भाव रखते हो।
  • प्रत्यूषः.. आचार्यः ! एषा भवतामेव प्रेरणा।
  • प्रत्यूषः.. आचार्य जी ! यह सब आपकी ही प्रेरणा है।
  • अर्णवः.. आचार्यवर! उत्सवे केषां पद्यानां गायनं करणीयम्?
  • अर्णव…आचार्य जी! उत्सव में कौन से पद्यों का गायन करना चाहिये।
  • आचार्यः… मणिकापुस्तके यानि पद्यानि सप्तमे पाठे दत्तानि, तेषामेव सस्वरं पाथं करिष्यामः।
  • आचार्य.. मणिका पुस्तक में जो पद्य सातवें पाठ में दिये गए हैं, उनका ही सस्वर पाठ करेंगे।
  • छात्राः.. आम!आम! पठामः, गायामः, वृक्षान् प्रति कृतज्ञतां च अनुभवामः।
  • हाँ! हाँ! पढ़ते हैं , गाते हैं, और वृक्षों के प्रति कृतज्ञता का अनुभव करते हैं।

श्लोक

छायामन्यस्य कुर्वन्ति तिष्ठन्ति स्वयमातपे।

फलान्यापि परार्थाय वृक्षाः सत्पुरुषा इव।।1।।

अन्वय..छायाम् अन्यस्य कुर्वन्ति, स्वयं आतपे तिष्ठन्ति, फलानि अपि परार्थाय, वृक्षाः सत्पुरुषाः इव भवन्ति।

शब्दार्थ.. छायाम् =छाया को , अन्यस्य =दूसरे के (लिये ), कुर्वन्ति =करते हैं, आतपे = धूप में ,तिष्ठन्ति=रहते हैं / खड़े रहते हैं, परार्थाय =दूसरों के लिये, सत्पुरुषाः इव =सज्जनों के समान /सज्जनों की तरह

हिन्दी अनुवाद….वृक्ष, सज्जनों के समान दूसरों के लिये छाया करते हैं, स्वयं धूप में खड़े रहते हैं। इनके फल भी दूसरों के लिये (होते हैं /देते हैं )। अर्थात सत्पुरुषों की तरह वृक्ष स्वयं कष्ट सह कर दूसरों को सुख देते हैं।

संधि विच्छेद..

  • स्वयमातपे= स्वयं +आतपे
  • फलान्यापि=फलानि +अपि (यण् संधि )
  • सत्पुरुषा इव =सत्पुरुषा: इव।(विसर्ग संधि )

पद परिचय…

  • कुर्वन्ति=कृ धातु , लट् लकार , प्रथम पुरुष, बहु वचन
  • तिष्ठन्ति=स्था धातु, लट् लकार , प्रथम पुरुष, बहु वचन
  • अन्यस्य=अन्य शब्द , पुलिङ्ग , षष्ठी विभक्ति , बहुवचन
  • फलानि=फल शब्द , नपुंसक लिङ्ग, प्रथमा /द्वितीया विभक्ति , बहुवहन
  • सत्पुरुषाः=सत् उपसर्ग . पुरुष शब्द, पुलिङ्ग , प्रथमा विभक्ति, बहुवचन
  • आतपे=आतप शब्द , पुलिङ्ग, सप्तमी विभक्ति, एक वचन

अहो! एषां वरं जन्म सर्वप्राण्युपजीवनम् ।

धन्या महीरुहा येभ्यो निराशा यान्ति नार्थिनः।। 2।।

अन्वय..अहो, एषां सर्व प्राणि उपजीवनम् जन्म वरम्। महीरुहाः धन्याः, येभ्यः अर्थिनः निराशाः न यान्ति।

शब्दार्थ.. एषाम् = इन वृक्षों का , सर्वप्राण्युपजीवनम्=सब प्राणियों के आश्रय का साधन /या सब प्राणियों को शरण देने वाला , धन्याः =धन्य हैं / सौभाग्यशाली हैं , वरम् =श्रेष्ठ , महीरुहाः = वृक्ष, येभ्यः = जिनसे , अर्थिनः = प्रार्थना करने वाले /याचना करने वाले, निराशाः =निराश हो कर , न यान्ति =नहीं जाते हैं।

अनुवाद..सभी प्राणियों को शरण /आश्रय /स्थान देने वाले इन वृक्षों का जन्म श्रेष्ठ है। धन्य हैं ये वृक्ष, जिनसे याचक ( मांगने वाले ) या प्रार्थना करने वाले,कभी निराश हो कर नहीं जाते हैं।

  • संधि- विच्छेद..
  • सर्वप्राण्युपजीवनम् =सर्वप्राणी+उपजीवनम् (यण् संधि)
  • नार्थिनः न +अर्थिनः (दीर्घ स्वर संधि )

प्रत्यय. अर्थ +णिनि( इन् ) प्रत्यय

पद परिचय

  • तिष्ठन्ति =स्था धातु , लट् लकार , प्रथम पुरुष , बहु वचन
  • महीरुहाः =महिरुह् शब्द , पुलिङ्ग् , प्रथमा विभक्ति, बहु वचन ,
  • यान्ति =या धातु, लट् लकार, प्रथम पुरुष , बहुवचन
  • अर्थिनः =अर्थिन् शब्द, पुलिङ्ग, प्रथमा विभक्ति, बहुवचन
  • एषाम् = इदम् सर्वनाम शब्द , पुलिङ्ग्, षष्ठी विभक्ति, बहुवचन

पत्र-पुष्प-फलच्छाया-मूल-वल्कलदारुभिः ।

गन्ध-निर्यास-भस्मास्थितोक्मैः कामान्वितन्वते।।3।।

अन्वय.. पत्र-पुष्प-फल-च्छाया-मूल-वल्कल-दारुभिः गन्ध निर्यास-भस्म-अस्थि-तोक्मैः कामान् वितन्वते ।

शब्दार्थ..पत्र=पत्ता,पुष्प=फूल,फल =फल, -छाया=छाया,मूल=जड़ वल्कल=छाल,दारुभिः=लकड़ियों से,गन्ध=महक, निर्यास= वृक्षों से निकलने वाला रस, गोंद आदि , भस्म-अस्थि=कोयला राख ,तोक्मैः = छालों से, कामान् = इच्छाओं को, वितन्वते =पूरा करते हैं ।

अनुवाद .. पत्ते, फूल, फल,छाया, जड़, वल्कल (छाल), लकड़ी, सुगन्ध, रस, (गोंद आदि ) कोयला और छाल के द्वारा वृक्ष इच्छाओं को पूर्ण करते हैं।

संधि -विच्छेद..फलच्छाया= फल +छाया (तुकागम संधि अर्थात बीच में च् आया है।)

पद परिचय..

  • दारुभिः = दारु शब्द , नपुंसक लिङ्ग , तृतीया , बहुवचन
  • कामान् = काम शब्द , पुलिङ्ग् , द्वितीया विभक्ति, बहुवचन
  • छायया = छाया शब्द , स्त्रिलिङ्ग्, तृतीया विभक्ति, एक वचन
  • तोक्मैः = तोक्म शब्द , पुलिङ्ग् , तृतीया , बहुवचन
  • वितन्वते= वि उपसर्ग , तन् धातु , आत्मनेपद , प्रथम पुरुष , एकवचन
  • निर्यासः = निर्यास शब्द , पुलिङ्ग , प्रथमा विभक्ति , एक वचन

आम्र! यद्यपि गताः दिवसास्ते पुष्पसौरभफलप्रचुराः ये।

हन्त!सम्प्रति तथापि जनानां छाययैव दलयस्यतितापम्।।4।।

अन्वय.. हे आम्र! यद्यपि ते दिवसाः गताः ये पुष्प-सौरभ-फल प्रचुराः (आसन्)। हन्त! तथापि सम्प्रति जनानाम् अति तापं छायया एव दलयसि।

शब्दार्थ.. पुष्प-सौरभ-फल प्रचुराः =फूल, सुगन्ध तथा फलों से भरपूर , ये =जो , दिवसाः =दिन , ते = वे, गताः = व्यतीता:=बीत गये , तथापि =फिर भी , हन्त =प्रसन्नता की बात है , सम्प्रति = अब भी /इस समय , छायया= छाया से , एव =ही , जनानाम् = लोगों के , अतितापं =अत्यधिक ताप को /धूप से उत्पन्न गर्मी को , दलयसि=दूर करते हो

संधि -विच्छेद

  • दिवसास्ते =दिवसाः +ते (विसर्ग संधि )
  • छाययैव =छायया +एव (वृद्धि संधि )
  • दलयस्यतितापम् =दलयसि +अतितापं (यण संधि )

अनुवाद.. हे आम्र वृक्ष! यद्यपि तुम्हारे वे दिन बीत गये , जब तुम फूल, सुगन्ध और फलों से भरे हुए रहते थे। फिर भी प्रसन्नता की बात है कि तुम इस समय भी छाया के द्वारा लोगों के अत्यधिक ताप (गर्मी )को दूर करते हो।

पद परिचय..

  • गताः=गम् धातु , क्त प्रत्यय,
  • दिवसाः=दिवस् शब्द, पुलिङ्ग., प्रथमा विभक्ति बहुवचन
  • प्रचुराः=प्रचुर शब्द , पुलिङ्ग , प्रथमाविभक्ति , बहुवचन
  • सम्प्रति =अव्यय शब्द
  • जनानाम् =जन शब्द , पुलिङ्ग , षष्ठी विभक्ति , बहुवचन
  • दलयसि=दल् धातु , लट् लकार , मध्यम पुरुष , एक वचन

मूलं भुजङ्गैः शिखरं प्लवङ्गैः शाखा विहङ्गैः कुसुमानि भृङ्गैः।

नास्त्येव तच्चन्दनपादपस्य यन्नाश्रितं सत्वभरैः समन्तात्।। 5।।

भुजङ्गैः मूलं (आश्रितं), प्लवङ्गैः शिखरं (आश्रितं) विहङ्गैः शाखाः (आश्रिताः), भृङ्गैः कुसुमानि आश्रितानि। चन्दनपादपस्य तत् न एव अस्ति यत् समन्तात् सत्वभरैः न आश्रितं।

शब्दार्थ.. भुजङ्गैः सांपों द्वारा, मूलम् =जड़ , प्लवङ्गैः =बन्दरों द्वारा। शिखरं = चोटी, विहङ्गैः =पक्षियों से,शाखाः =टहनियां, भृङ्गैः =भौंरों से , कुसुमानि =फूल , चन्दन्पादपस्य= चन्दन के वृक्ष का , समन्तात = चारो ओर से , सत्वभरैः =प्राणिसमूह से।

हिन्दी अनुवाद….सर्पों के द्वारा चन्दन के वृक्ष की जड़, बन्दरों के द्वारा उसकी चोटी (शिखर), पक्षियों के द्वारा उसकी टहनियां और भौंरों के द्वारा फूल आश्रय बनाये गये हैं। उस चन्दन के वृक्ष का कोई भी ऐसा भाग नहीं है, जो चारो ओर से प्राणि-समूह द्वारा आश्रय न बनाया गया हो।

संधि -विच्छेद.

  • भुजङ्गैः=भुजम् +गैः (परसवर्ण संधि )
  • नास्त्येव = न +अस्ति +एव (दीर्घ स्वर संधि, यण संधि)
  • तच्चन्दनपादपस्य =तत् +चन्दनपादपस्य ( व्यञ्जन संधि)
  • यन्नाश्रितं =यत् +न +आश्रितं (व्यञ्जन संधि, दीर्घ स्वर संधि )

पद परिचय..

  • भुजङ्गैः=भुजङ्ग शब्द , पुलिङ्ग , तृतीया विभक्ति , बहुवचन
  • प्लवङ्गैः=प्लवङ्ग शब्द,पुलिङ्ग , तृतीया विभक्ति , बहुवचन
  • विहंगैः=विहङ्ग शब्द, पुलिङ्ग , तृतीया विभक्ति , बहुवचन
  • भृङ्गैः = भृङ्ग शब्द , पुलिङ्ग ,तृतीया विभक्ति , बहुवचन
  • सत्वभरैः= सत्वभर शब्द, पुलिङ्ग , तृतीया विभक्ति , बहुवचन
  • कुसुमानि = कुसुम शब्द , नपुंसक लिङ्ग , प्रथमा विभक्ति , बहुवचन
  • पादपस्य =पादप शब्द , षष्ठी विभक्ति , एक वचन

प्रत्यय.. आश्रितम् =आ +श्रि +क्त

तरवे नमोऽस्तुते

निम्ब ! तवदीयकटुता यदि दाहहन्त्री, गायन्तु मूढमनुजास्तव दोषगाथाः।।

तप्तास्त एव तपनोपमपित्ततापैः गास्यन्ति मित्रवर! तावकगीतकानि।।6।।

अन्वय.. निम्ब त्वदीय कटुता यदि दाहहन्त्री (अस्ति)मूढ मनुजाः तव दोष-गाथाः गायन्तु। मित्रवर! तपन उपम पित्त तापैः ते एव तावक गीतकानि गास्यन्ति।

शब्दार्थ.. निम्ब=नीम, त्वदीय=तुम्हारी , कटुता=कड़वाहट , दाहहन्त्री =पित्त की जलन को शान्त करने वाली , दोष गाथाः= कमियों की कहानी , गायन्तु=गायें , तपन =सूर्य के , उपम =समान , पित्ततापैः=पित्त के जलन दोषों से , तप्ताः=तपे हुए /संतप्त लोग , तावक=तुम्हारे , गीतकानि=गीत , गास्यन्ति=गायेंगे।

हिन्दी अनुवाद.. हे नीमवृक्ष! तुम्हारी कटुता (कड़वापन)यद्यपि पित्त के ताप को शान्त/नष्ट करने वाली है, तो मूर्ख मनुष्य (भले ही )तुम्हारे दोषों की कथाओं का गान करें, परन्तु हे श्रेष्ठ मित्र! सूर्य के ताप के समान तपाने वाले पित्त के ताप से संतप्त (परेशान हुए )लोग तुम्हारे (गुण के )गीतों को गायेंगे।

संधि -विच्छेद..

मुधमनुजास्तव=मूढमनुजाः +तव (विसर्ग संधि)

तप्तास्त एव =तप्ताः +ते +एव (विसर्ग संधि)

तपनउपमपित्ततापैः = तपन + उपमपित्ततापैः (गुण संधि)

प्रकृति-प्रत्यय.. कटुता कटु +तल् प्रत्यय , दाहहन्त्री =दाहहन्तृ =ङीप् प्रत्यय , तप्ताः =तप् +क्त प्रत्यय

पद परिचय..

  • दोष गाथाः= दोषगाथा शब्द , स्त्रिलिङ्ग , प्रथमा /द्वितीया विभक्ति , बहुवचन
  • तापैः= ताप शब्द , पुलिङ्ग , तृतीया विभक्ति , बहुवचन
  • गायन्तु = गै (गाय् धातु ) लोट् लकार , प्रथम पुरुष , बहुवचन
  • गास्यन्ति = गै (गाय् धातु ) लृट् लकार , प्रथम पुरुष , बहुवचन
  • गीतकानि =गीतक शब्द , नपुंसक लिङ्ग , द्वितीया विभक्ति, बहुवचन

श्लोक..7

धत्ते भरं कुसुमपत्रफलावलीनां घर्मव्यथां वहति शीतभवां रुजं च।

यो सर्वमर्पयति चान्यसुखस्य हेतोः, तस्मै वन्दान्यगुरवे तरवे नमोऽस्तु।।7।।

अन्वय.. यः कुसुम-पत्र-फलावलीनां भरं धत्ते, घर्मव्यथां शीतभवां च रुजं वहति। यः च अन्य सुखस्य हेतोः सर्वम् अर्पयति , तस्मै वन्दान्य-गुरवे-तरवे नमः अस्तु।

शब्दार्थ..कुसुमपत्रफलावलीनां=कुसुम, पत्र तथा फलों के समूह को , धत्ते=धारण कराता है , घर्मव्यथां=धूप के कष्ट को , शीतभवां= सर्दी से होने वाली , रुजम् =पीड़ा या कष्ट को , वहति =वहन करता है , अन्य सुखस्य=दूसरों के सुख के , हेतोः = लिये /कारण , सर्वम् =सब , अर्पयति=अर्पित कराता है/देता है , तस्मै =उस, वन्दान्य-गुरवे=उदारों में गुरु या श्रेष्ठ।

  • संधि- विच्छेद..यो सर्वमर्पयति= यः +सर्वम् +अर्पयति (विसर्ग संधि )
  • चान्यसुखस्य =च +अन्यसुखस्य (दीर्घ स्वर संधि)
  • नमोऽस्तु =नमः +अस्तु (विसर्ग संधि )

प्रत्यय…शीतभवां = शीतभव+टाप्

पद परिचय..

  • अर्पयति= अर्प् धातु , लट् लकार , प्रथम पुरुष,एक वचन
  • तरवे =तरु शब्द , पुलिङ्, चतुर्थी विभक्ति , एक वचन
  • अस्तु =अस् धातु , लोट् लकार, प्रथम पुरुष , एक वचन
  • धत्ते = धा धातु , लट् लकार , प्रथम पुरुष , एक वचन
  • सर्वम् =सर्व शब्द , नपुंसक लिङ्ग, प्रथमा विभक्ति , एक वचन

पाठ आधारित अभ्यास कार्य..

1..संस्कृत भाषया एक पदेन उत्तरम् लिखत्…

  1. सत्पुरुषा:इव के सन्ति?
  2. अर्थिनः केभ्यो निराशाः न यान्ति?
  3. वृक्षः कस्य सुखस्य हेतोः सर्वमर्पयन्ति?
  4. आम्रः जनानां अतितापं कया दलयति?
  5. कस्य तरोः कटुता दाहहन्त्री?
  6. चन्दनस्य शाखा कैरश्रिताः?
  7. कस्य मूलं भुजङ्गैः आश्रितं?

उत्तराणि…

  1. वृक्षाः
  2. महीरुहेभ्यः/वृक्षेभ्यः
  3. अन्यस्य
  4. छायया
  5. निम्बतरोः / निम्बस्य
  6. सत्वभरैः
  7. चन्दनपादपस्य

2..संस्कृत भाषया पूर्ण वाक्येन उत्तरम् लिखत्…

  1. वृक्षाः परेभ्यः किम् कुर्वन्ति?
  2. महीरुहाः किमर्थं धन्याः?
  3. तरवः कैः साधनैः अपरेषां कामान् वितन्वते?
  4. चन्दनस्य पादपस्य विविधानि अङ्गानि कैः आश्रितानि?
  5. मूढ मनुजाः किम् गायन्ति?
  6. वृक्षः अन्य सुखस्य हेतोः किम् धत्ते?

उत्तराणि..

  • वृक्षाः परेभ्यः छायाम् , फलानि, पुष्पाणि, काष्ठानि, मूलं , गन्धं,निर्यासं, तोक्मम् च यच्छन्ति।
  • महीरुहाःएतदर्थं धन्याः यतः तेभ्यः अर्थिनः निराशाः न यान्ति।
  • तरवः पत्र-पुष्प-फल-च्छाया-मूल-वल्कल-दारुभिः गन्ध निर्यास-भस्म-अस्थि-तोक्मैः च परेषां कामान् वितन्वते।
  • चन्दनस्य पादपस्य विविधानि अङ्गानि भुजङ्गैः, प्लवङ्गैः , विहङ्गैः, भृङ्गैः च आश्रितानि।
  • मूढ मनुजाः निम्बवृक्षस्य दोषगाथां गायन्ति।
  • वृक्षः अन्य सुखस्य हेतोःकुसुमपत्रफलावलीनां भारं धत्ते।

3..स्थूल पदानि आधृत्य प्रश्न निर्माणं कुरुत्…

  1. वृक्षाणां फलानि अपि परार्थाय भवन्ति।
  2. तरवः स्व विभूतिभिः सर्वेषां कामान् पूरयन्ति।
  3. चन्दनपादपः समन्तात् सत्वैः आश्रितं वर्तते।
  4. वृक्षाः स्वयं आतपे तिष्ठन्ति।
  5. चन्दनस्य मूलं भुजङ्गैः आश्रितं।
  6. तरवे नमः अस्तु।
  7. महिरुहेभ्यः अर्थिनः निराशाः न यान्ति।

उत्तराणि..

  1. वृक्षाणां फलानि अपि कस्मै भवन्ति?
  2. तरवः स्व विभूतिभिः केषां कामान् पूरयन्ति?
  3. चन्दनपादपः समन्तात् कैः आश्रितं वर्तते?
  4. वृक्षाः स्वयं कुत्र तिष्ठन्ति?
  5. चन्दनस्य मूलं कैः आश्रितं।
  6. कस्मै नमः अस्तु।
  7. महिरुहेभ्यः के निराशाः न यान्ति।

अधोलिखित प्रश्नान् यथा निर्देशम् उत्तरत्…

  • ‘(क) धन्या महीरुहा येभ्यो निराशा यान्ति नार्थिनः।’ अस्मिन् वाक्ये कर्तृ पदं किम्?
  • (ख)’ गायन्तु मुधमनुजास्तव दोषगाथाः।’ अस्मिन् वाक्ये ‘मूढमनुजाः’कर्तृ पदस्य किम् क्रिया पदं प्रयुक्तम्?
  • (ग) निम्ब ! तवदीयकटुता यदि दाहहन्त्री।.अस्मिन् वाक्ये ‘मधुरता ‘इति पदस्य किम् विलोम पदं प्रयुक्तम्?
  • (घ) अहो! एषां वरं जन्म सर्वप्राण्युपजीवनम् ।अस्मिन् वाक्ये ‘वरम् ‘ इति पदस्य किम् विशेष्य पदं प्रयुक्तम् अस्ति ?
  • (ङ) पाठात् ‘याचकाः’ इति पदस्य पर्याय पदं चित्वा लिखत्।

उत्तराणि… (क)अर्थिनः , (ख) गायन्तु , (ग) कटुता, (घ) जन्म, (ङ)अर्थिनः

समुचितान् विपर्ययान् चित्वा लिखत्..

  • (क) कटुता….. गुणगाथाः
  • (ख) दोषगाथाः…… छाया
  • (ग) जन्म…….. आशा
  • (घ) आतपः…… मरणं
  • (ङ) निराशा…… मधुरता

उत्तराणि ..

  • (क) कटुता…… मधुरता
  • (ख) दोषगाथाः…… गुणगाथाः
  • (ग) जन्म……… मरणं
  • (घ) आतपः…. छाया
  • (ङ) निराशा …… आशा

कोष्ठकात शुद्धं अर्थं चित्वा लिखत्..

  • (क) घर्मः……. (धर्मः, आतपः )
  • (ख) दारुभिः…… (काष्ठैः, मदिराभिः )
  • (ग) महीरुहाः …..(नृपाः, वृक्षाः )
  • (घ) समन्तात्……. (सर्वतः , उभयतः )
  • (ङ) प्लवङ्गैः ……. (मृगैः , वानरैः )

उत्तराणि ….

  • (क) घर्मः……. आतपः
  • (ख) दारुभिः…… काष्ठैः
  • (ग) महीरुहाः ….. वृक्षाः
  • (घ) समन्तात्……. सर्वतः
  • (ङ) प्लवङ्गैः ……. वानरैः

अधोलिखितस्य श्लोकस्य समुचितं शीर्षकं चिनुत्..

  • (अ )… मूलं भुजङ्गैः शिखरं प्लवङ्गैः शाखा विहंगैः कुसुमानि भृङ्गैः। नास्त्येव तच्चन्दनपादपस्य यन्नाश्रितं सत्त्वभरैः समन्तात्।।5।।
  • (1) आश्रयदाता चन्दनपादपः
  • (2) विषाक्तः चन्दनवृक्षः
  • (3) सुरभितः चन्दनवृक्षः

उत्तरम् ..आश्रयदाता चन्दनपादपः

(आ)…कैः किम् आश्रितं इति विचार्य समुचितं. मेलनं कुरुत्..

  • (क) भुजङ्गैः…. कुसुमानि
  • (ख) प्लवङ्गैः… मूलं
  • (ग) विहङ्गैः….. शिखरं
  • (घ) भृङ्गैः… शाखा

उत्तराणि

  • (क) भुजङ्गैः…. मूलं
  • (ख) प्लवङ्गैः… शिखरं
  • (ग) विहङ्गैः….. शाखा
  • (घ) भृङ्गैः… कुसुमानि

8..कथनं आधृत्य वृक्षस्य नाम लिखत्.. यथा..

अहम् छायारहितः सन्नपि मधुरफलैः सर्वान् तर्पयामि।…………खर्जूरवृक्षः

  • (क)मम कटुता दाहहन्त्री परं पित्ततापं दुरीकरोमि।………
  • (ख) वसन्ते प्राप्ते पुष्प सौरभ फल प्रचुराः मे शाखाः सन्ति।….
  • (ग) मम मूले भुजङ्गाः सन्ति तथापि परतापं नाशयामि।……..

उत्तराणि..

(क) निम्ब वृक्षः, (ख) आम्रवृक्षः, (ग) चन्दनवृक्षः

9..(अ) अधोलिखित पङ्क्तीनाम् अन्वयं कुरुत्..

  • (क)गायन्तु मूढमनुजाः तव दोषगाथाः।
  • (ख) यः सर्वमर्पयति चान्यसुखस्य हेतोः।
  • (ग) नास्त्येव तच्चन्दनपादपस्य यन्नाश्रितं सत्वभरैः समन्तात्।

उत्तराणि…

  • (क)मूढ मनुजाः तव दोष-गाथाः गायन्तु।
  • (ख)यः च अन्य सुखस्य हेतोः देहम्/सर्वम् अर्पयति।
  • (ग)चन्दनपादपस्य तत् न एव अस्ति यत् समन्तात् सत्वभरैः न आश्रितं।

(आ) अधोलिखितस्य अन्वयस्य पूर्तिं उचिताव्ययपदैः कुरुत्…

(क) आम्र!…..1…….. ते दिवसाः गताः ये पुष्पसौरभफलप्रचुराः (भवन्ति स्म,) हन्त!………2….सम्प्रति छायया…….3…..जनानां अतितापम् दलयसि।

उत्तर… 1..यद्यपि , 2..तथापि, 3..एव

(ख) अस्मिन् अन्वये क्रिया पदानि रिक्तानि सन्ति। तानि तत्र लिखत्….

यः (वृक्षः) कुसुमपत्रफलावलीनाम् भरं……… 1… घर्मव्यथां……2……. शीतभवां रुजं च (यः)अन्यसुखस्य हेतोः च सर्वम्……..3……., तस्मै वदान्यगुरवे तरवे नमः…….4….।

उत्तर..1..धत्ते, 2..वहति, 3..अर्पयति , 4अस्तु।

Tat Tvam Asi Sanskrit Class 9 तत् त्वम् असि

Thak Pratyay Parichaya Udaharan

णिनि इनि प्रत्यय और उदाहरण

मतुप् और वतुप् प्रत्यय परिचय उदाहरण

Tva Aur Tal Pratyay Parichaya

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