Tat Tvam Asi Sanskrit Class 9 तत् त्वम् असि

NCERT समाधान मणिका claas 9 अष्टमः पाठः Tat Tvam Asi तत् त्वम् असि इस पाठ का सरल हिन्दी अनुवाद, पाठ में दिये गये अभ्यास कार्य का सम्पूर्ण समाधान है।

पाठ का संक्षिप्त परिचय… यह पाठ ‘ छान्दोग्य-उपनिषद के छठे अध्याय से लिया गया है। केवल शास्त्र ज्ञान होने से तथा पुस्तकों के पढ़ने से विद्यार्थी सब कुछ नहीं जान लेता है। आत्मा का ज्ञान वास्तविक ज्ञान है। आत्मा के विषय में ज्ञान होना मानव जीवन का प्रमुख उद्देश्य है। यह आत्म ज्ञान ही परम सत्य है। यह उपदेश एक दृष्टान्त के द्वारा प्रस्तुत पाठ में स्पष्ट किया गया है।

उमेशः.. रमे! पश्य एतत् चित्रम्। कः एषः वृक्षः?
उमेश… रमा इस वृक्ष को देखो। यह कौन सा वृक्ष है ?

रमा.. अयं तु वट वृक्षः प्रतीयते। किं न पश्यसि अस्य दीर्घाः शाखाः पृथ्वीं स्पृशन्ति।
रमा.. यह तो वट वृक्ष प्रतीत होता है। क्या नहीं देख रहे हो, इसकी बड़ी-बड़ी शाखाएं पृथ्वी को स्पर्श कर (छू ) रही हैं।

उमेशः.. आम पश्यामि। वट एव अयम् । परन्तु कोऽयम् ऋषिः बालकः च?
उमेश.. हाँ देख रहा हूं। यह वट वृक्ष ही है। परन्तु यह ऋषि और बालक कौन हैं?

रमा… आचार्या आगच्छति , तामेव पृच्छाम:।
रमा..आचार्या / शिक्षिका( महोदया) आ रही हैं। उनसे ही पूछते हैं।

उमेशः .. आचार्या ! कोऽयम् ऋषिः?
उमेश… हे आचार्या ! यह ऋषि कौन हैं?

आचार्या .. पाठं पठित्वा ज्ञास्यामः.।
आचार्या.. पाठ को पढ़ कर जानेंगे.

रमा.. आचार्ये ! कुतः गृहीतः एषः पाठः?
रमा.. हे आचार्या! यह पाठ कहां से लिया गया है?

आचार्या.. छान्दोग्य -उपनिषदः।
आचार्या.. छान्दोग्य -उपनिषद से।

उमेशः … आचार्ये ! उपनिषदः किं भवति?
उमेश… हे आचार्या! उपनिषद क्या होता है?

आचार्या.. उपनिषदः नाम ते ग्रन्थाः येषु अमूल्यम् आत्मज्ञानम् उपदिष्टम्।
आचार्या.. उपनिषद उन ग्रन्थों का नाम है , जिनमें अमूल्य आत्म ज्ञान की शिक्षा दी गई है।

रमा.. एवम् । अतीव उत्सुकाः वयम् एतम् पाठं पठितुम्।
रमा .. ठीक है। हम सब यह पाठ पढने के लिये उत्सुक हैं।

Sanskrit Class 9 Tat Tvam Asi तत् त्वम् असि

महर्षेः आरूणेः पुत्रः श्वेतकेतुः आसीत्। द्वादशवर्षीयम् तम् पुत्रं पिता आरुणिः उवाच – हे श्वेतकेतुः! गुरुं प्रति गच्छ अध्ययनार्थं यतः सौम्य! अस्मत्कुलीनः अनधीत्य न भवति इति। सः पुत्रः आचार्यम् उपेत्य यावत् चतुर्विंशतिवर्षः अभवत् , तावत् सः सर्वान् वेदान् सार्थान् अधीत्य पितुः सकाशम् आगच्छत्।

शब्दार्थ..महर्षेः आरूणेः = महर्षि आरुणि का , द्वादशवर्षीयम्= बारह वर्ष के , उवाच= कहा , गुरुं प्रति = गुरु के पास , अध्ययनार्थं= अध्ययन के लिये / पढ़ने के लिये , अस्मत्कुलीनः=हमारे कुल में उत्पन्न व्यक्ति , अनधीत्य = बिना पढ़ा, सौम्य = हे भद्र (अच्छे), उपेत्य= पास जा कर ,चतुर्विंशतिवर्षः=24 वर्ष की आयु का , सार्थान्=अर्थ सहित (वेदों)को , अधीत्य=पढ़ कर , सकाशम्=पास ,

हिंदी अनुवाद… महर्षि आरुणि का पुत्र श्वेत केतु था।बारह (12) वर्ष के उसे पुत्र को पिता आरोही ने कहा है हे ! श्वेतकेतु गुरु के पास अध्ययन के लिए जाओ क्योंकि हमारे कुल में उत्पन्न व्यक्ति बिना पढ़ा नहीं होता है । वह पुत्र जब चौबीस (24)वर्ष की आयु का हुआ , तब तक सभी वेदों को अर्थ सहित पढ़ कर पिता के पास आया।

पद परिचय..

  • महर्षेः = महर्षि शब्द , पुलिङ्ग , षष्ठी विभक्ति एक वचन
  • आरूणेः= आरुणि शब्द ,पुलिङ्ग , षष्ठी विभक्ति एक वचन
  • वेदान् = वेद शब्द , पुलिङ्ग , द्वितीया विभक्ति , बहुवचन
  • गच्छ = गम् धातु , लोट् लकार , मध्यम पुरुष , एक वचन
  • अधीत्य = अधि उपसर्ग , इ धातु , ल्यप् प्रत्यय
  • उपेत्य = उप उपसर्ग , इ धातु , ल्यप् प्रत्यय
  • सकाशम् = अव्यय शब्द

संधि कार्य…

  • गुरुं प्रति = गुरुम् + प्रति (अनुस्वार संधि )
  • अध्ययनार्थं = अध्ययन +अर्थं ( दीर्घ स्वर संधि )
  • उपेत्य = उप + इत्य (गुण संधि )
  • सार्थान्= स + अर्थान् (दीर्घ स्वर संधि )

प्रकृति प्रत्यय..

अधीत्य = अधि उपसर्ग , इ धातु , ल्यप् प्रत्यय

सः च ‘ सर्वश्रेष्ठः अहम् ‘ इति मन्यमानः उद्धतस्वभावः अभवत्। एवंभूतम् पुत्रं दृष्ट्वा पिता उवाच – हे श्वेतकेतो ! कः ते उपाध्यायात् अतिशयः प्राप्तः येन त्वम् कुलाननुरूपम् उद्धतः असि?

शब्दार्थ… मन्यमानः=(अपने को) समझता हुआ , उद्धतस्वभावः= उद्दण्ड स्वभाव वाला / अभिमानी स्वभाव वाला,एवंभूतम्=इस प्रकार के (उद्दण्ड) बने हुए , ते = तुझे , उपाध्यायात्=आचार्य से /अध्यापक से , अतिशयः=अत्यधिक, कुलाननुरूपम्= जो कुल के अनुरूप नहीं है / कुल के विरुद्ध ,

हिंदी अनुवाद.. और वह मैं सर्वश्रेष्ठ हूँ इस प्रकार अपने आप को मानता हुआ उद्दंड/अभिमानी स्वभाव का हो गया । इस प्रकार उद्दंड हुए पुत्र को देखकर के पिता ने कहा..हे श्वेतकेतु! तुम्हे आचार्य से ऐसा कौन सा अत्यधिक ज्ञान प्राप्त हो गया है, जिससे तुम कुल के विपरीत उद्दंड स्वभाव के हो गए हो ?

पद परिचय…

  • उपाध्यायात् = उपाध्याय शब्द , पुलिङ्ग, पञ्चमी विभक्ति , एक वचन
  • येन =यत् सर्वनाम शब्द , नपुंसक लिङ्ग , तृतीया विभक्ति , एक वचन
  • ते = युष्मद् सर्वनाम शब्द , पुलिङ्ग , चतुर्थी और षष्ठी विभक्ति , एक वचन
  • असि =अस् धातु , मध्यम पुरुष , एक वचन
  • अभवत् =भू धातु , लङ्ग लकार , प्रथम पुरुष , एक वचन

प्रकृति प्रत्यय

  • दृष्ट्वा= दृश् +क्त्वा प्रत्यय
  • उद्धतः = उत् +हन् +क्त प्रत्यय
  • प्राप्तः =प्र +आप् +क्त प्रत्यय
  • भूतः = भू + क्त

संधि कार्य..

  • कुलाननुरूपम्= कुल + अननुरूपं ( दीर्घ स्वर संधि )
  • एवंभूतम् = एवम् +भूतम् (अनुस्वार संधि )

जानासि किम् तत् येन श्रुतेन अन्यत् अश्रुतम् अपि श्रुतम् भवति , अमतम् मतम्, अविज्ञातं च विज्ञातं भवति इति। एतद् अद्भुतम् प्रश्नम् श्रुत्वा पृच्छति – कथम् इति ! इत्युक्तः पिता अधोलिखितदृष्टान्तेन तत्वज्ञानं प्रतिपादयति —

शब्दार्थ..जानासि किम् तत् = क्या तुम उसे जानते हो, येन श्रुतेन= जिसके सुनने से , श्रुतम्= सुना हुआ , अमतम्=न समझा हुआ, अविज्ञातं= अच्छी प्रकार न जाना हुआ, विज्ञातं=अच्छी प्रकार जाना हुआ, अद्भुतम्= अद्भुत बात को / चमत्कार को, इत्युक्तः= इस प्रकार कहे गये ,तत्वज्ञानं= तत्व के ज्ञान को, या परम सत्य ज्ञान को, प्रतिपादयति= (अच्छी तरह ) समझाता है

हिन्दी अनुवाद…क्या तुम उस (तत्व) को जानते हो, जिसके सुनने से दूसरा न सुना हुआ भी सुना हुआ हो जाता है , न समझा हुआ भी समझा हुआ हो जाता है , तथा अच्छी प्रकार से न जाना हुआ भी, अच्छी प्रकार से जाना हुआ हो जाता है । इस प्रकार के अद्भुत प्रश्न =बात को सुनकर श्वेतकेतु ने कहा यह कैसे होता है? इस प्रकार से पूछे जाने पर पिता ने निम्नलिखित दृष्टांत /कथानक से तत्व ज्ञान का उपदेश किया ।

पद परिचय..

  • पिता =पितृ शब्द , पुलिङ्ग् प्रथमा विभक्ति, एक वचन
  • जानासि = ज्ञा धातु, लट् लकार , मध्यम पुरुष., एक वचन
  • दृष्टान्तेन= संज्ञा शब्द, पुलिङ्ग, तृतीया एक वचन
  • पृच्छति = प्रच्छ् धातु , लट् लकार , प्रथम पुरुष, एक वचन
  • प्रतिपादयति =क्रिया शब्द , प्रति + पद्, लट् लकार, प्रथम पुरुष , एक वचन

संधि कार्य…

  • एतद् अद्भुतम्= एतत् +अद्भुतम् (जश्त्व संधि )
  • इत्युक्तः=इति +उक्तः (यण संधि )

प्रकृति प्रत्यय..

  • श्रुत्वा = श्रु +क्त्वा प्रत्यय
  • श्रुतम् =श्रु +क्त प्रत्यय
  • विज्ञातम् =वि +ज्ञा +क्त प्रत्यय
  • अविज्ञातं =अ +वि +ज्ञा +क्त प्रत्यय
  • मतम् =मन् +क्त प्रत्यय

आरुणिः – श्वेतकेतो न्यग्रोधफलम् आहर।
आरुणि – श्वेतकेतु वट वृक्ष का फल लाओ।

श्वेतकेतु: – इदम् भगवन्!
श्वेतकेतु यह लीजिये भगवन।

आरुणिः – अत्र किम् पश्यसि?
आरुणि – इसमें क्या देख रहे हो?

श्वेतकेतुः – अणुतराणि इमानि बीजानि।
श्वेतकेतु – इन अणु से छोटे बीजों को

आरुणिः   – एषु एकम् बीजं भिन्धि ।
आरुणि  इनमें से एक बीज को तोड़ो

श्वेतकेतुः   –  भिन्नम्।
श्वेतकेतु –  तोड़ दिया

आरुणिः     – अत्र किम् पश्यसि?
आरुणि – इसमें क्या देख रहे हो

श्वेतकेतुः – न किञ्चन भगवन्।
श्वेतकेतु – कुछ नहीं भगवन ।

शब्दार्थ…न्यग्रोधफलम् = वट वृक्ष का फल , आहर= लाओ , अणुतराणि= अणु से छोटे /छोटे-छोटे , भिन्धि= तोड़ो , भिन्नम्= तोड़ दिया ,

पद परिचय…

  • आहर = आ उपसर्ग , हृ धातु , लोट् लकार, मध्यम पुरुष एक वचन
  • भगवन् = विशेषण शब्द, सम्बोधन , एक वचन
  • अणुतराणि= अणुतर शब्द पुलिङ्ग , प्रथमा विभक्ति , बहुवचन
  • बीजानि = बीज शब्द, नपुंसक लिङ्ग , प्रथमा विभक्ति , बहुवचन
  • भिन्धि =क्रिया शब्द , भिद् धातु , लोट् लकार , मध्यम पुरुष, एक वचन

संधि कार्य..

  • किञ्चन = किम् +चन (व्यञ्जन संधि )

प्रकृति प्रत्यय..

  • भिन्नम् = भिद् =क्त प्रत्यय
  • सन् =अस् धातु +शतृ प्रत्यय

इदम् श्रुत्वा पिता पुत्रं उवाच – हे सौम्य ! पश्य अत्र वटबीजे एव महान् स्थूलः शाखादिमान् न्यग्रोधः वटः उत्पन्नः सन् तिष्ठति। एवं अणिम्नः स्थूलं जगद् उद्भवति। विश्वसिहि , हे सौम्य ! स एव आत्मा। तत् एव सत्। तत् त्वम् असि।

शब्दार्थ.. महान् स्थूलः = बहुत विशाल , शाखादिमान्=शाखा आदि से युक्त , न्यग्रोधः=वट वृक्ष , तिष्ठति= विद्यमान रहता है , अणिम्नः= सूक्ष्म तत्व से , उद्भवति=उत्पन्न होता है , विश्वसिहि= विश्वास करो , तदेव =वह ही ,

हिंदी अनुवाद… यह सुनकर पिता ने पुत्र से कहा.. हे सौम्य! देखो इस वट बीज में ही एक बहुत विशाल शाखा आदि से युक्त वट वृक्ष उत्पन्न होता हुआ विद्यमान रहता है इसी प्रकार सूक्ष्म तत्व (अणु) से स्थूल जगत पैदा होता है। हे सौम्य ! तुम विश्वास करो वह सूक्ष्म (तत्व) ही आत्मा है, वह सूक्ष्म (तत्व )ही सत्य है , वह सूक्ष्म (तत्व) ही तुम हो।

पद परिचय..

  • अणिम्नः= अणिमन् शब्द , पुलिङ्ग , पञ्चमी विभक्ति , एक वचन
  • तिष्ठति = क्रिया शब्द , स्था धातु, लट् लकार, प्रथम पुरुष , एक वचन

संधि कार्य..

  • उद्भवति= उत् + भवति (जश्त्व संधि )
  • त्वमसि = त्वम् +असि

प्रकृति प्रत्यय…

  • उत्पन्न: =उत् +पत् =क्त प्रत्यय
  • सन् =अस् धातु +शतृ प्रत्यय

पाठ आधारित अभ्यास कार्य..

1..एक पदेन संस्कृत भाषया उत्तरत्..

  • (क)श्वेतकेतुः कस्य पुत्रः आसीत्?
  • (ख)श्वेतकेतुः कम् उपेत्य वेदान् अपठत्?
  • (ग)पिता केन तत्वज्ञानं प्रतिपादयति?
  • (घ)आरुणिःश्वेतकेतुम् किम् आनेतुम् आदिशत्?
  • (ङ)श्वेतकेतुःन्यग्रोध फले किम् अपश्यत्?
  • (च)स्थूलं जगत् कस्मात् उद्भवति?
  • (छ)पिता न्यग्रोधफलस्य दृष्टान्तेन किं प्रतिपादयति?

उत्तराणि

  • (क) आरूणेः
  • (ख) आचार्यम्
  • (ग) न्यग्रोधफलस्यदृष्टान्तेन/ दृष्टान्तेन
  • (घ) न्यग्रोधफलम्
  • (ङ) बजानि
  • (च) अणिम्नः
  • (छ) तत्वज्ञानं

2..पूर्ण वाक्येन संस्कृत भाषया उत्तरत्…

  • (क)श्वेतकेतुः विद्यां प्राप्य किं अमन्यत्?
  • (ख)आरुणिः श्वेतकेतुं कम् प्रश्नम् अपृच्छत्?
  • (ग)सर्वेषु देहेषु कः अस्ति यः अजरः अमरः च ?
  • (घ)वस्तुतः वट बीजे कः तिष्ठति?
  • (ङ)जगति किं सत् अस्ति?

उत्तराणि..

  • (क)..श्वेतकेतुः विद्यां प्राप्य सर्वश्रेष्ठोऽहम् इति अमन्यत्।
  • (ख)..आरुणिः श्वेतकेतुं अपृच्छत्…. – हे श्वेतकेतो ! कः ते उपाध्यायात् अतिशयः प्राप्तः येन त्वम् कुलाननुरूपम् उद्धतः असि?
  • (ग)..सर्वेषु देहेषु आत्मा अस्ति यः अजरः अमरः च अस्ति।
  • (घ)..वस्तुतः वट बीजे महान् स्थूलः शाखादिमान् न्यग्रोधः वटः उत्पन्नः सन् तिष्ठति।
  • (ङ)..जगति आत्मा एव सत् अस्ति

3..अधोलिखित वाक्येषु स्थूलपदानि आधृत्य प्रश्न निर्माणं कुरुत्..

  • (क)आरुणिः श्वेतकेतोः पिता आसीत्।
  • (ख)श्वेतकेतुः आचार्यं उपेत्य वेदान् अपठत्।
  • (ग) द्वादशवर्षीयम् तम् पुत्रं पिता आरुणिः उवाच।
  • (घ) श्वेतकेतुः वेदान् अधीत्य आगच्छत्।
  • (ङ) विद्यां प्राप्य सः आत्मानं सर्वश्रेष्ठं अमन्यत्।
  • (च) उद्धतस्वभावः सः पितुः सकाशम् आगच्छत्.
  • (छ) पिता दृष्टान्तेन तत्वज्ञानं प्रतिपादयति।
  • (ज) श्वेतकेतुः न्यग्रोधस्य फलं आहरति।
  • (झ) श्वेतकेतुः फले बीजानि पश्यति।

उत्तराणि..

  • (क)..आरुणिः कस्य पिता आसीत्।
  • (ख)..श्वेतकेतुः कम् उपेत्य वेदान् अपठत्?
  • (ग) द्वादशवर्षीयम् तम् पुत्रं पिता कः उवाच?
  • (घ) श्वेतकेतुः कान् अधीत्य आगच्छत्?
  • (ङ) विद्यां प्राप्य सः कम् सर्वश्रेष्ठं अमन्यत्?
  • (च) उद्धतस्वभावः सः कस्य सकाशम् आगच्छत्?
  • (छ) पिता केन तत्वज्ञानं प्रतिपादयति?
  • (ज) श्वेतकेतुः कस्य फलं आहरति?
  • (झ) श्वेतकेतुः कस्मिन् बीजानि पश्यति?

4..अधोलिखितप्रश्नान् यथानिर्देशम् उत्तरत्…

  1. (क) ‘त्वम् कुलाननुरूपम् उद्धतः असि ‘। अत्र असि इति क्रियापदस्य कर्तृपदं किं?
  2. (ख) ‘ अणिम्नः स्थूलं जगद् उद्भवति ‘। वाक्येऽस्मिन् विशेषणपदम् किम् प्रयुक्तम्?
  3. (ग) ‘ गुरुं प्रति गच्छ अध्ययनार्थं ‘। अत्र क्रिया पदम् किं?
  4. (घ) ‘ समीपम् ‘ इति पदस्य पर्याय पदम् पाठात् चित्वा लिखत…
  5. (ङ) ‘ सूक्ष्मः ‘ इति पदस्य विलोम पदं पाठात् चित्वा लिखत..

उत्तराणि.

(क) त्वम् ,(ख) स्थूलं , (ग) गच्छ, (घ) सकाशम् , (ङ) स्थूलः

5..अधोलिखित वाक्यानि कथा क्रमानुसारं पुस्तिकायाम् लिखत..

  • (क) आरुणिः श्वेतकेतुं वट फलं आनेतुम् अकथयत्।
  • (ख) श्वेतकेतुः गुरोः सकाशाद् वेदान् अपठत्।
  • (ग) आरुणिः पुत्रं वटबीजस्य अन्तः द्रष्टुम् अकथयत्।
  • (घ) वेदान् अधीत्य श्वेतकेतुः अमन्यत् – अहम् श्रेष्ठः अस्मि।
  • (ङ) आरुणिः श्वेतकेतुम् आत्मन: विषये उपादिशत्।
  • (च) वस्तुतः जगति आत्मा एव सत्।
  • (छ) आत्मज्ञानेन सर्वम् अविज्ञातं ज्ञातं भवति

उत्तराणि..

  • (क) श्वेतकेतुः गुरोः सकाशात् वेदान् अपठत्।
  • (ख) वेदान् अधीत्य श्वेतकेतुः अमन्यत् – अहम् श्रेष्ठः अस्मि।
  • (ग)आत्मज्ञानेन सर्वम् अविज्ञातं ज्ञातं भवति।
  • (घ) आरुणिः श्वेतकेतुं वट फलं आनेतुम् अकथयत्।
  • (ङ) आरुणिः पुत्रं वटबीजस्य अन्तः द्रष्टुम् अकथयत्।
  • (च) आरुणिः श्वेतकेतुम् आत्मन: विषये उपादिशत्।
  • (छ) वस्तुतः जगति आत्मा एव सत्।

6..प्रश्न..शब्दानाम् अर्थैः सह मेलनम् कृत्वा लिखत..

  • अधीत्य        समीपम् गत्वा
  • आहर          भेदनं कुरु
  • भिन्धि           सूक्ष्मात्
  • अणिम्नः         आनय
  • उपेत्य             पठित्वा

उत्तर..

  • अधीत्य          पठित्वा
  • आहर            आनय
  • भिन्धि           भेदनं कुरु
  • अणिम्नः         सूक्ष्मात्
  • उपेत्य           समीपम् गत्वा

7..पाठात् चित्वा विपरीतार्थान् लिखित..यथा अनुरुपम् – अननुरूपं

  • (क)अधीत्य
  • (ख)श्रुतम्
  • (ग) मतम्
  • (घ)विज्ञातम्
  • (ङ)दूरम्

उत्तर (क) अनधीत्य , (ख) अश्रुतम् , (ग) अमतम् , (घ) अविज्ञातं , (ङ) सकाशम्

तरवे नमोऽस्तुते Tarave Namostute

thak pratyay parichaya udaharan

णिनि-इनि प्रत्यय और उदाहरण

मतुप् और वतुप् प्रत्यय परिचय और उदाहरण

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