पाठ परिचय..Vangamayam Tapah Sanskrit Class 10 NCERT Solution…. प्रस्तुत है..वाङ्गमयम् तपः इस पाठ का सरल हिन्दी अनुवाद पाठ आधारित अभ्यास कार्य तथा उसका सम्पूर्ण समाधान।
पाठ परिचय..वाङ्गमयम् तपः वाणी का तप है ।इस पाठ के श्लोक विभिन्न ग्रन्थों से लिये गये हैं। प्रथम दो श्लोक सुभाषितरत्नभाण्डागार से, तीसरा, पांचवां तथा सातवां श्लोक महाभारत से , चतुर्थ श्लोक कामन्दकीयनीति से, छठां पाणिनीय शिक्षा से , आठवां श्लोक गीता से लिया गया है।कुछ श्लोक हमें विद्या का महत्व तथा कुछ ध्यान से सुनना बोलना आदि के बारे में बताते हैं। इनके द्वारा हमारी वाणी शुद्ध होती है।
पाठ..वाङ्गमयम् तपः
आचार्य:…..प्रियच्छात्राः । पठिताः अस्माभिः ऋग्वेदस्य मन्त्राः । ज्ञायते किम् ऋग्वेदस्तु विश्वसाहित्ये आदिमः आलेखः । सार्वकालिकाः सार्वभौमिकाः च अस्य उपदेशाः ।
आचार्य…प्रिय छात्रों !! हम सबने ऋग्वेद के मन्त्र पढ़े हैं।क्या जानते हो.. कि ऋग्वेद विश्व साहित्य में सबसे पहला /सबसे प्राचीन लिखित साहित्य है। इसके उपदेश सभी कालों में उपयोगी हैं तथा सभी स्थानों में भी उपयोगी हैं।
छात्रा: ……आम् ! तथैव कथितं सङ्गच्छध्वं संवदध्वम् ।
छात्र……..हाँ, इसीलिये कहा गया है कि..तुम सब मिल कर चलो। एक साथ बोलो।
आचार्यः ……..साधु ! जानन्ति किं भवन्तः वाचः महत्त्वम् ?
आचार्य……. बहुत अच्छा! क्या आप सब वाणी के महत्व को जानते हैं?
सुमेधा ………..अहं वदानि।….वाण्येका समलङ्करोति पुरुषं या संस्कृता धार्यते ।
सुमेधा… मैं बताती हूँ। संस्कारों से युक्त संस्कृत जो वाणी धारण की जाती है , ऐसी एक मात्र वाणी मनुष्य को विभूषित करती है।
आचार्यः…..शोभनम् विद्यावतां वाचि सरस्वती विराजते। इदमेव शिक्षयति अयं पाठः वाङ्मयं तपः ।
आचार्य…बहुत अच्छा… विद्वत् जनों की वाणी पर सरस्वती विराजित रहती हैं यह “वाङ्मयं तपः” पाठ यही शिक्षा देता है।
श्लोकाः…
शारदा शारदाम्भोजवदना वदनाम्बुजे ।
सर्वदा सर्वदाऽस्माकं सन्निधिं सन्निधिं क्रियात् ॥ 1 ॥
अन्वय… शारद अम्भोज वदना सर्वदा शारदा अस्माकम् वदन अम्बुजे सर्वदा सन्निधिम् सत् निधिम् क्रियात्।
शब्दार्थ..शारदा = सरस्वती ( ज्ञान की देवी),शारद= शरद ऋतु के,अम्भोजवदना= कमल के समान मुख वाली , सर्वदा= सब कुछ देने वाली , सर्वदा =सदा / हमेशा ,अस्माकं = हमारे , वदनाम्बुजे= मुख कमल में ,सन्निधिं = पास में , सन्निधिं= निवास, क्रियात् = करें..
(नोट… सर्वदा और सन्निधिं शब्द के दो- दो अर्थ हैं।)
हिन्दी अनुवाद… शरत् काल में खिले हुए कमल के समान मुख वाली सभी मनोरथों को देने वाली देवी सरस्वती ( सदा/हमेशा)हमारे मुखकमल में श्रेष्ठ निधि के रूप में निवास करें।
संधि कार्य…
- शारदाम्भोजवदना= शारद + अम्भोजवदना (दीर्घ संधि)
- वदनाम्बुजे= वदन + अम्बुजे (दीर्घ संधि)
- सर्वदाऽस्माकं=सर्वदा +अस्माकम् (पूर्व रूप )
- सन्निधिं=सत् + निधिं (व्यञ्जन संधि )
समास..
- सर्वदा.. सर्वम् ददाति या सा ( बहुब्रीहि समास)
- वदनाम्बुजे = वदनम् अम्बुजं इव तस्मिन् ( कर्मधारय समास)
प्रकृति प्रत्यय..
- वदना = वदन + टाप्
- शारदा = शारद + टाप्
- सर्वदा = सर्वद + टाप्
वाङ्मयं तपः
अपूर्वः कोऽपि कोशोऽयं विद्यते तव भारति !
व्ययतो वृद्धिमायाति क्षयमायाति सञ्चयात् ।। 2 ।।
अन्वय…भारति ! तव अयम् कोशः कः अपि अपूर्वः विद्यते। व्ययतः वृद्धिम् आयाति सञ्चयात् च क्षयम् आयाति ।
शब्दार्थ.. अपूर्वः= असाधारण / अनोखा/ अद्वितीय , कोशः = खजाना ,विद्यते = है , भारति= सरस्वती ज्ञान की देवी,व्ययतो= व्यय करने से , वृद्धिम् = वृद्धि को / बढ़ता है ,आयाति= प्राप्त होता है , क्षयम= घटता है , सञ्चयात् = संग्रह करने से / इकट्ठा करने से।
हिन्दी अनुवाद.. हे सरस्वती!! आपका यह( ज्ञान रूपी) कोश कोई अपूर्व कोश है, जो व्यय करने पर बढ़ता है तथा संचय करने पर घटता है।
संधि कार्य..
- कोऽपि = कः + अपि (विसर्ग संधि)
- कोशोऽयं=कोशः +अयम् (विसर्ग संधि)
- वृद्धिमायाति= वृद्धिम् +आयाति (संयोग )
- सञ्चयात्= सम् + चयात् (परसवर्ण संधि )
समास
- अपूर्वः= न पूर्वः ( नञ तत्पुरुष)
प्रकृति प्रत्यय..
- व्ययतः = व्यय + तसिल्
नास्ति विद्यासमं चक्षुः नास्ति सत्यसमं तपः ।
नास्ति रागसमं दुःखं नास्ति त्यागसमं सुखम् ॥ ३ ॥
अन्वय..विद्यासमम् चक्षुः न अस्ति, सत्यसमम् तपः न अस्ति। रागसमम् दुःखम् न अस्ति, त्यागसमम् सुखम् न अस्ति।
शब्दार्थ..विद्यासमं= विद्या के बराबर , चक्षुः= आँख, नास्ति= नहीं है , सत्यसमं= सत्य के समान या बराबर , तपः= तप या कठिन कर्म, रागसमं= आसक्ति के समान,
हिन्दी अनुवाद.. विद्या के समान नेत्र (आँख)नहीं है। सत्य के समान तपस्या नहीं है राग/आसक्ति के समान दुख नहीं है। त्याग के समान सुख नहीं है नहीं है।
संधि कार्य.. नास्ति = न +अस्ति ( दीर्घ स्वर संधि)
समास..
- विद्यासमं=विद्यया समं ( तृतीया तत्पुरुष )
- सत्यसमं= सत्येन समम्( तृतीया तत्पुरुष )
- रागसमं= रागेन समम्( तृतीया तत्पुरुष )
- त्यागसमं= त्यागेन समम् ( तृतीया तत्पुरुष )
न तथा शीतलसलिलं न चन्दनरसो न शीतला छाया।
प्रह्लादयति च पुरुषं यथा मधुरभाषिणी वाणी ॥ 4 ॥
अन्वय…यथा मधुरभाषिणी वाणी पुरुषम् प्रह्लादयति तथा शीतल-सलिलम् न, चन्दनरसः न, शीतला छाया च न (प्रह्लादयति)
शब्दार्थ =शीतलसलिलं = ठण्डा पानी, चन्दनरस: = चन्दन के रस का लेप , शीतला = ठण्डी,छाया = पेड़ की छाया , प्रह्लादयति= आनन्द देती है , यथा= जिस प्रकार , मधुरभाषिणी= प्रिय / मीठा बोलने वाली वाणी,
जिस प्रकार मधुर वाणी मनुष्य के हृदय को प्रसन्न करती है/ सुख देती है , उस प्रकार न ठण्डा जल, न चन्दन का रस , न ही ठण्डी छाया मनुष्य के हृदय को प्रसन्न करती है।
समास
- शीतलसलिलं= शीतलं सलिलं ( कर्मधारय )
- चन्दनरसः = चन्दनस्य रसः (षष्ठी तत्पुरुष )
- शीतला छाया = शीतलच्छाया ( कर्मधारय)
प्रकृति प्रत्यय…
- शीतला= शीतल + टाप्
- मधुरभाषिणी= मधुरभाषिन् + ङीप्
शुश्रूषा श्रवणं चैव ग्रहणं धारणं तथा।
ऊहापोहार्थविज्ञानं तत्त्वज्ञानं च धीगुणाः ॥ 5 ॥
अन्वय..शुश्रूषा, श्रवणम् च एव, ग्रहणम् तथा धारणम्, ऊह-अपोह-अर्थविज्ञानम्, तत्त्वज्ञानम् च धीगुणाः (सन्ति)।
शब्दार्थ…..शुश्रूषा= सुनने की इच्छा , श्रवणम् =ध्यान से सुनना , ग्रहणम् = ग्रहण करना ( जो सुना उसे ग्रहण करना ),धारणम्= अर्थ को धारण करना अर्थात उसे अपने व्यवहार में धारण करना , ऊह= पक्ष में तर्क करना / अनुमान लगाना,अपोह= विपक्ष में तर्क करना , अर्थविज्ञानम्= शब्दों के अर्थ का ज्ञान , तत्त्वज्ञानम् = वास्तविक अर्थ का ज्ञान , धी= बुद्धि के ,गुणाः= गुण ।
इस श्लोक में उत्तम बुद्धि के आठ 8 गुण बताये गये हैं.. सुनने की इच्छा होना, ध्यान से सुनना, अर्थ को ग्रहण करना और उसे धारण करना, पक्ष में बोलना और विपक्ष में तर्क करना अर्थों का ज्ञानअर्थात विशुद्ध ज्ञान और तत्वों का ज्ञान अर्थात यथार्थ ज्ञान ये बुद्धि के उत्तम गुण हैं
संधि कार्य….
- ऊहापोह= ऊह + अपोह ( दीर्घ संधि )
- चैव= च + एव (वृद्धि संधि)
- अर्थविज्ञानम्= अर्थस्य विज्ञानं (षष्ठी तत्पुरुष )
- तत्त्वज्ञानं= तत्वस्य ज्ञानं (षष्ठी तत्पुरुष )
- धीगुणाः= धियः गुणाः (षष्ठी तत्पुरुष )
प्रकृति प्रत्यय…
- श्रवणं= श्रु + ल्युट् ( ल्युट् का अन् जुड़ता है )
- ग्रहणं = ग्रह् + ल्युट्
- धारणं= धृ + ल्युट्
- सुश्रुषा = श्रु +सन् + टाप्
माधुर्यमक्षरव्यक्तिः पदच्छेदस्तु सुस्वरः ।
धैर्यं लयसमर्थं च षडेते पाठका गुणाः ॥ 6
अन्वय…माधुर्यम्, अक्षरव्यक्तिः, पदच्छेदः तु सुस्वरः धैर्यम् लयसमर्थम् च एते षट् पाठकगुणाः (सन्ति)।
शब्दार्थ….शब्दार्थ…….माधुर्यम्=मधुरता या मिठास , अक्षरव्यक्तिः=स्पष्ट बोली अर्थात वर्णों का स्पष्ट उच्चारण , पदच्छेदः=पदों कोअलग करके बोलना ( संस्कृत में संधियुक्त पद होते हैं, उन्हें अलग करके बोलना ), सुस्वरः =सुन्दर या अच्छा स्वर , धैर्यम् = धैर्य के साथ पढ़ना ,लयसमर्थम् = लय के साथ स्वरों के उतार चढ़ाव के साथ पढ़ना, एते= ये ,षट् = छः 6, पाठक = पाठक (पढ़ने वाला ), गुणाः=गुण
हिन्दी अनुवाद.. इस श्लोक में पाठक के छः (6) गुण बताये गये हैं… मधुरता से बोलना, स्पष्ट बोलना शब्दों को पृथक कर के बोलना अर्थात बड़े-बड़े संधि युक्त पदों को पृथक कर के बोलना सुस्वर अर्थात मीठा बोलना, धैर्य पूर्वक बोलना, लय के साथ बोलना.. ये छः (6)पाठकों के गुण हैं। अर्थात वही उत्तम पाठक माना जाता है जिसमें ये 6 गुण होते हैं।
संधि कार्य…
- पदच्छेदस्तु= पद +छेदः +तु ( तुकागम तथा विसर्ग संधि )
- षडेते=षट् +एते ( जश्त्व संधि)
समास…
- अक्षरव्यक्तिः= अक्षराणां व्यक्तिः ( षष्ठी तत्पुरुष)
- पदच्छेदः= पदानाम् छेदः ( षष्ठी तत्पुरुष)
- सुस्वरः= शोभनः स्वरः ( कर्मधारय )
- लयसमर्थम् = लये समर्थम् ( सप्तमी तत्पुरुष)
- पाठका गुणाः =पाठकानां गुणाः ( षष्ठी तत्पुरुष)
आचार्यात्पादमादत्ते पादं शिष्यः स्वमेधया।
कालेन पादमादत्ते पादं सब्रह्मचारिभिः ॥ 7 ॥
अन्वय…शिष्यः आचार्यात् पादम् आदत्ते। (शिष्यः) स्वमेधया पादम् (आदत्ते), (शिष्यः) कालेन पादम् आदत्ते, (शिष्यः) सब्रह्मचारिभिः पादम् आदत्ते।
शब्दार्थ….शिष्यः= शिष्य ,आचार्यात् = आचार्य से/ शिक्षक या गुरु से , पादम् =एक चौथाई भाग 1/4, आदत्ते= ग्रहण करता है , स्वमेधया =अपनी बुद्धि से,कालेन= समय के साथ , सब्रह्मचारिभिः= अपने सहपाठियों से ,
हिन्दी अनुवाद.. छात्र अपने शिक्षक से एक चौथाई(1/4) ज्ञान प्राप्त करता है, एक चौथाई ज्ञान अपनी बुद्धिमत्ता से प्राप्त करता है,एक चौथाई ज्ञान समय के साथ प्राप्त करता है, तथा एक चौथाई ज्ञान अपने सहपाठियों से प्राप्त करता है।
इस श्लोक का अर्थ है की व्यक्ति चार स्रोतों से सीखता है शिक्षक से, स्वयं से, अपने अनुभव से तथा अन्य से।
संधि कार्य…
- पादमादत्ते= पादम् + आदत्ते ( संयोग )
अनुद्वेगकरं वाक्यं सत्यं प्रियहितं च यत्।
स्वाध्यायाभ्यसनं चैव वाङ्मयं तप उच्यते ॥ 8 ॥
अन्वय..यत् वाक्यम् अनुद्वेगकरम् सत्यम् प्रियहितम् च (तथा) स्वाध्याय-अभ्यसनम् च एव वाङ्मयम् तपः उच्यते ।।
शब्दार्थ..अनुद्वेगकरं= पीड़ारहित या पीड़ा न पहुँचाने वाला(किसी को दुख न पहुंचाने वाला) , वाक्यं = वाक्य/ वाणी / वचन , हितं = हितकारी /कल्याणकारी , अभ्यसनम् = अभ्यास , वाङ्मयं= वाणी रूपी, साहित्य , उच्यते = कहा जाता है।
हिन्दी अनुवाद..जो वाक्य या ( वाणी)(श्रोताओं के हृदय में)उद्वेग नहीं उत्पन्न करने वाली हो, सत्य युक्त हो, प्रिय हो, कल्याणकारी हो तथा अच्छे ग्रन्थों ( वेद आदि)का स्वाध्याय( अध्ययन)और उसका अभ्यास वाणी के तप कहे जाते हैं।
संधि कार्य..
- स्वाध्यायाभ्यसनं=स्व + अध्याय + अभ्यसनम् (दीर्घ स्वर संधि)
- चैव =च +एव (वृद्धि संधि)
- वाङ्मयं =वाक् +मयम् ( व्यञ्जन संधि )
- तप उच्यते =तपः उच्यते ( विसर्ग संधि )
समास…
- अनुद्वेगकरं= न उद्वेगम् करोति इति( तत्पुरुष)
- स्वाध्यायाभ्यसनं= स्वाध्यायः च अभ्यसनम् च(द्वन्द्व समास )
- वाङ्गमयम् तपः = वाङ्गमयतपः( कर्मधारय समास)
…………………………
Thak Pratyay Parichaya Udaharana के लिये इसे पढ़िये
Vangamayam Tapah अभ्यास कार्य
- निम्नलिखितप्रश्नानाम् उत्तराणि एकपदेन उत्तरत –
- (क) का अस्माकं सन्निधिं कुर्यात् ?
- (ख) कोशः कथम् अस्ति ?
- (ग) सत्यसमं किम् अस्ति ?
- (घ) कीदृशी वाणी पुरुषं प्रह्लादयति ?
- (ङ) पाठकानां कति गुणाः श्लोके वर्णिताः ?
- (च) स्वस्य मेधया कः पादम् आदत्ते ?
उत्तराणि…(क) शारदा, (ख) अपूर्वः (ग) तपः , (घ) मधुरभाषिणी , (ङ) षट्.. 6 , (च) शिष्यः
2..अधोलिखितप्रश्नानाम् उत्तराणि पूर्णवाक्येन लिखत –
- (क) भारत्याः कोशः कीदृशः विद्यते ?
- (ख) के पाठकाः गुणाः सन्ति ?
- (ग) धियः गुणाः के के सन्तिः?
- (घ)शिष्यः विद्यायाः अर्जनं कथं करोति ?
- (ङ) कीदृशी शारदा सन्निधिं क्रियात् ?
- (च) वाङ्मयं तपः किम् उच्यते ?
उत्तराणि.
- (क) भारत्याः कोशः अपूर्वः विद्यते।
- (ख) माधुर्यम् अक्षरव्यक्ति: पदच्छेदः सुस्वरः धैर्यं लयसमर्थम् एते षट् पाठकाः गुणाः सन्ति।
- (ग) शुश्रूषा, श्रवणम् , ग्रहणम् , धारणम्, ऊह-अपोह-अर्थविज्ञानम्, तत्त्वज्ञानम् च धियः गुणाः सन्तिः।
- (घ)शिष्यः विद्यायाः प्रथमं चतुर्थांशं आचार्यात् , द्वितीयं चतुर्थांशम् च स्वमेधया, तृतीयं चतुर्थांशं समयक्रमेण, शेषं चतुर्थांशं सब्रह्मचारिभिः अर्जनं करोति ।
- (ङ) शारद अम्भोज वदना सर्वदा शारदा सन्निधिं क्रियात्।
- (च) सत्य युक्तं प्रियहितं अनुद्वेगकरम् वाक्यस्य वाचनं तथा स्वाध्यायस्य अभ्यासः वाङ्गमयम् तपः उच्यते।
3..स्थूलपदानि आधृत्य प्रश्ननिर्माणं कुरुत
- (क) शारदा सर्वदा अस्माकं समीपे वसेत्।
- (ख) भारत्याः कोशः अपूर्वः ।
- (ग) मधुरभाषिणी वाणी पुरुषं प्रह्लादयति।
- (घ) पाठकस्य षट् गुणाः सन्ति।
- (ङ) सत्येन समं सुखं नास्ति ।
- (च) अनुद्वेगकरं वाक्यं वाङ्मयं तपः उच्यते।
- (छ) रागस्य विलोमः त्यागः ।
उत्तराणि…
- (क)का सर्वदा अस्माकं समीपे वसेत्?
- (ख) कस्याः कोशः अपूर्वः?
- (ग) मधुरभाषिणी वाणी कम् प्रह्लादयति?
- (घ) पाठकस्य कति गुणाः सन्ति?
- (ङ) केन समं सुखं नास्ति?
- (च)कीदृशं वाक्यं वाङ्मयं तपः उच्यते?
- (छ) कस्य विलोमः त्यागः?
4..अधोलिखितान् प्रश्नान् यथानिर्देशम् उत्तरत –
(क) ‘अपूर्वः कोशोऽयं विद्यते तव भारति।’ अत्र क्रियापदं किम् ?
(ख) प्रथमे श्लाके कर्तृपदं किम् ?
(ग) ‘शीतला छाया’ अनयोः पदयोः विशेष्यपदं किम् ?
(घ) ‘उद्वेगकरम्’ इति पदस्य विलोमपदं पाठात् चित्वा लिखत ।
(ङ) ‘शुश्रूषा श्रवणं चैव ग्रहणं धारणं तथा।’ अस्मिन् वाक्ये ‘श्रोतुम् इच्छा’ इत्यर्थे किं पदं प्रयुक्तम् ?
(च) ‘व्ययतः’ इति पदस्य विलोमपदं पाठात् चित्वा लिखत ।
उत्तराणि..
(क). विद्यते , (ख). शारदा (ग) छाया , (घ) अनुद्वेगकरं , (ङ) शुश्रूषा (च) सञ्चयात्
- स्तम्भद्वये लिखितानां समानार्थकशब्दानां समुचितं मेलनं कृत्वा लिखत –
- (क) शुश्रूषा………चतुर्थांशम्
- (ख) ऊहः………..निवासम्
- (ग) अपोहः……….मुखम्
- (घ) पादम्………..वाणी
- (ङ)सन्निधिम्……….श्रोतुमिच्छा
- (च) वदनम्)……..सरस्वती
- (छ) वाक्)……….पक्षे तर्कः
- (ज) भारती………..शङ्कानिवारणम्
- (क) शुश्रूषा……….श्रोतुम् इच्छा
उत्तराणि…
- (क) शुश्रूषा………..श्रोतुम् इच्छा
- (ख) ऊहः…………..पक्षे तर्कः
- (ग) अपोहः…………शङ्कानिवारणम्
- (घ) पादम्…………..चतुर्थांशम्
- (ङ)सन्निधिम्………. निवासम्
- (च) वदनम्………. मुखम्
- (छ) वाक्……………वाणी
- (ज) भारती…………..सरस्वती
6…अत्र पठितेभ्यः श्लोकेभ्यः कानिचित् पदानि सन्ति । तेषां विशेषणानि अधः मञ्जूषायां दत्तानि । ततः उपयुक्तं विशेषणं चित्वा विशेष्येण सह योजयित्वा लिखत –
- ……………वाणी
- …………..शीतलम्
- …………….छाया
- …………….शारदा
- ……………..चक्षुः
- ……………..तपः
- ……………..कोशः
- ………………वाक्यम्
{मञ्जूषा – शीतला, वाङ्मयम्, शीतलम्, विद्यासमम्, अपूर्वः, प्रियहितम्, सर्वदा, मधुरभाषिणी}
उत्तराणि
- मधुरभाषिणी………वाणी
- शीतलम्…………. सलिलम्
- शीतला………….छाया
- वाङ्मयम्……….तपः
- सर्वदा…………शारदा
- अपूर्वः………कोशः
- विद्यासमम्………चक्षुः
- प्रियहितम्…….वाक्यम्
7…समानभावमयीः पङ्क्तीः योजयत –
यथा…
(i) नास्ति विद्यासमं चक्षुः ।……..(क) मुखकमले निवासं कुर्यात् ।
(ii) व्ययतः वृद्धिमायाति ।……..(ख) वाङ्माधुर्यात् नान्यदस्ति प्रियत्वम्।
(iii) वदनाम्बुजे सन्निधिं क्रियात् ।……(ग) सर्वस्य लोचनं शास्त्रम् ।
(iv) मधुरभाषिणी वाणी पुरुषं प्रह्लादयति।……(घ) शिक्ष्यते सहपाठिभिः ।
(v) पादं सब्रह्मचारिभिः…….(ङ) दत्ता भवति विस्तृता ।
उत्तराणि…
(i) नास्ति विद्यासमं चक्षुः ।..सर्वस्य लोचनं शास्त्रम् ।
(ii) व्ययतः वृद्धिमायाति।… दत्ता भवति विस्तृता ।
(iii)वदनाम्बुजे सन्निधिं क्रियात् ।…मुखकमले निवासं कुर्यात् ।
(iv) मधुरभाषिणी वाणी पुरुषं प्रह्लादयति।..वाङ्माधुर्यात् नान्यदस्ति प्रियत्वम्।
(v) पादं सब्रह्मचारिभिः…शिक्ष्यते सहपाठिभिः ।
रेखा चित्रं पूरयत…..


उत्तर…
- (क)..2….स्वमेधया,…3 ..कालेन, .4.सब्रह्मचारिभिः
- (ख)..2. अक्षरव्यक्तिः,.3..पदच्छेदः,.4.. सुस्वरः,.5…धैर्यम् ,..6..लयसमर्थम्
- (ग)..2…श्रवणम्,..3. ग्रहणम् ,.4..धारणम् ,..7..अर्थविज्ञानम्,
9. वाक्यांशं पूरयत-
(क) व्ययतः वृद्धिमायाति
(ख) नास्ति रागसमं दुःखम्
(ग) नास्ति नास्ति विद्यासमं चक्षुः
(घ) आचार्यात्पादमादत्ते
उत्तराणि…..
- (क) व्ययतः वृद्धिमायाति क्षयमायाति सञ्चयात्।
- (ख) नास्ति रागसमं दुःखम् नास्ति त्यागसमं सुखम्।
- (ग) नास्ति नास्ति विद्यासमं चक्षुःनास्ति सत्यसमं तपः ।
- (घ) आचार्यात्पादमादत्ते पादं शिष्यः स्वमेधया।
10. श्लोकमाश्रित्य समुचितक्रमेण अन्वयं पूरयत
-(क) हे भारति ! तव अयम् कोशः कःअपि………विद्यते। (अयम्) व्ययतः वृद्धिम्,…….सञ्चयात् च……….आयाति ।
(ख) विद्यासमम्………….. न अस्ति,…….सत्यसमम् तपः न……..रागसमम्…….. न अस्ति…….सुखम् न अस्ति ।
(ग) यत् वाक्यम् ……..सत्यम् ……..च (तथा) स्वाध्याय-अभ्यसनम् च एव…………. तपः उच्यते ।
उत्तराणि
(क) हे भारति ! तव अयम् कोशः कःअपि अपूर्वः विद्यते। (अयम्) व्ययतः वृद्धिम्,..आयाति …..सञ्चयात् च…क्षयम् …….आयाति ।
(ख) विद्यासमम्….चक्षुः ..न अस्ति, सत्यसमम् तपः न….अस्ति ..रागसमम्….दुखं .. न अस्ति…त्यागसमं ..सुखम् न अस्ति ।
(ग) यत् वाक्यम् …अनुद्वेगकरं …सत्यम् …प्रियहितं …..च (तथा) स्वाध्याय-अभ्यसनम् च एव……..वाङ्मयम्….. तपः उच्यते ।
11..अधोलिखितपङ्क्तिषु स्थूलाक्षरपदानां प्रसङ्गानुसारं शुद्धम् अर्थ चिनुत –
(क) स्वाध्यायाभ्यसनं चैव वाङ्मयं तपः उच्यते ।
- (i) साहित्यम्
- (ii) वाचिकम्
- (iii) मनोमयम्
उत्तर… वाचिकम्
(ख) आचार्यात् पादम् आदत्ते ।
- (ii) चरणम्
- (i) श्लोकस्य पङ्क्तिम्
- (iii) चतुर्थांशम्
उत्तर..(iii) चतुर्थांशम्
(ग) माधुर्यम् अक्षरव्यक्तिः पदच्छेदस्तु सुस्वरः ।
- (i) शर्करायुक्तम्
- (ii) कोमलतया वर्णोच्चारणम्
- (iii) मधुरतायाः अभावः
उत्तर..(ii) कोमलतया वर्णोच्चारणम्
(घ) सर्वदा सर्वदाऽस्माकं सन्निधिं सन्निधिं क्रियात् ।
- (i) सर्वं ददाति इति
- (ii) सर्वाधिका
- (iii) सर्वं वदति इति
उत्तर..(i) सर्वं ददाति इति
(ङ)शुश्रूषा श्रवणं चैव ग्रहणं धारणं तथा
- (i) सेवा
- (ii) श्रोतुम् इच्छा
- (iii)श्वश्रूः
उत्तर.श्रोतुम् इच्छा
- रेखाङ्कित्तपदानां समस्तपदं विग्रहं वा लिखत
(क) नास्ति विद्यासमं चक्षुः ।
(ख) नास्ति त्यागेन समं सुखम् ।
(ग) न तथा शीतलसलिलं पुरुषं प्रह्लादयति ।
(घ) न चन्दनस्य रसः मानवं तथा तर्पयति ।
(ङ) सर्वदा शारदा अस्माकं सन्निधिं क्रियात्।
(च) शारदाम्भोजम् इव वदनं यस्याः सा अस्माकं वदनाम्बुजे सन्निधिं क्रियात्।
(छ) अनुद्वेगकरं वाक्यं वाङ्मयं तपः उच्यते ।
उत्तर…(क)विद्यया समम्, ( ख) त्यागसमं , (ग).. शीतलं सलिलं , (घ)चन्दनरसः , (ङ).. सर्वम् ददाति इति , (च)..शारदाम्भोजवदना , (छ)न उद्वेगकरं
- पठितः पाठः । इदानीं क्रीडामः । सर्वे छात्राः वर्गद्वये विभक्ताः स्युः । वाल्मीकिवर्गः व्यासवर्गश्च । वाल्मीकिवर्गात् एकः छात्रः प्रश्नं पृच्छति व्यासवर्गात् च कश्चित् उत्तरति । पुनश्च व्यासवर्गात् प्रश्नः पृच्छ्यते वाल्मीकिवर्गात् उत्तरं दीयते। शिक्षकः अङ्कप्रदानं करोति । सर्वाधिकान् अङ्कान् लभमानः वर्गः विजेता घोष्यते ।
व्यासवर्गः……………………वाल्मीकिवर्गः
- (क) ‘अम्भोजः’ इति शब्दस्य पर्यायः कः ?………………
- (ख)………………………….शरत्कालीन’ इति कस्य अर्थः ?
- (ग) सरस्वत्याः कोशः कथं वर्धते ?…………..
- (घ)………………………….कया समं चक्षुर्न विद्यते ?
- (ङ) कीदृशी वाणी पुरुषं प्रसन्नं करोति ?…………………
- (च)……………………………..शारदा सर्वदा कुत्र निवसेत् ?.
- (छ) उद्वेगकरम् इत्यस्य कः विलोमः ?…………………..
- (ज)……………………………..सप्तमे श्लोके ‘चतुर्थांशः’ कस्य अर्थः ?
- (झ) ‘ऊहः’ शब्दस्य कः विलोमः ?…………………..
- (ञ)……………………………बुद्धेः प्रथमः गुणः कः ?
उत्तर
व्यासवर्गः…………………………..वाल्मीकिवर्गः
- (क) ‘अम्भोजः’ इति शब्दस्य पर्यायः …कमलम् ……………
- (ख)शरत्कालीन’ इति…शारदस्य … अर्थः।
- (ग) सरस्वत्याः कोशः …व्ययतः …..वर्धते।
- (घ)……विद्यया ……. समं चक्षुर्न विद्यते।
- (ङ) मधुरभाषिणीवाणी वाणी पुरुषं प्रसन्नं करोति।
- (च)शारदा सर्वदा…वदनाम्बुजे ….. निवसेत्।
- (छ) उद्वेगकरम् इत्यस्य विलोमः…अनुद्वेगकरं ……..।
- (ज)सप्तमे श्लोके ‘चतुर्थांशः’ अर्थः………पादस्य ..
- (झ) ‘ऊहः’ शब्दस्य विलोमः …अपोहः …..।
- (ञ)…शुश्रूषा …बुद्धेः प्रथमः गुणः।
……………………….
संस्कृत के अव्यय अर्थ और वाक्य.