संस्कृत के अव्यय अर्थ और वाक्य

संस्कृत के अव्यय……अव्यय का शाब्दिक अर्थ है.. जो व्यय न हो। तो अब भाषा में व्यय न होने का क्या अर्थ है? इसका अर्थ है.. लिङ्ग, विभक्ति, वचन, कारक, काल तथा पुरुष के कारण अव्ययों का रूप न परिवर्तित होना। ये सदैव एक समान रहते हैं। जैसे..

  • 1.आज कक्षा में एक बच्चा अनुपस्थित है।
  • 2.आज कक्षा में दस बच्चे अनुपस्थितहैं।
  • 3.श्वः लता स्व गृहम् गमिष्यति।
  • 4.श्वः रामः स्व गृहम् गमिष्यति।

उपरोक्त दोनों वाक्य में से प्रथम वाक्य में एक बच्चा जो दूसरे वाक्य में बहुवचन में परिवर्तित हो कर बच्चे हुआ। अनुपस्थित है, जो बहुवचन के अनुसार अनुपस्थित हैं,में परिवर्तित हो गया..परन्तु आज दोनों वाक्य में एक समान रहा।इस शब्द का रूप नहीं बदला।

इसी प्रकार वाक्य संख्या 3 और 4 में लता और राम के कारण श्वः का रूप नहीं परिवर्तित हुआ। अतः…

परिभाषा..ऐसे शब्द जिनके रूप में लिङ्ग, विभक्ति तथा वचन के कारण , किसी प्रकार का परिवर्तन नहीं होता है, वे अव्यय कहे जाते हैं।

तत् पदं अव्ययं कथ्यते, यस्मिन् पदे लिङ्ग विभक्ति वचन कारणात् परिवर्तनं न भवति।

चूंकि इनका रूप नहीं बदलता है, इसलिये इन्हें अविकारी शब्द भी कहते हैं।

संस्कृत के अव्यय अर्थ और वाक्य

काल वाचक अव्यय

इन अव्ययों से समय का बोध होता है। जैसे.. अद्य, श्वः, परस्वः ह्यः कदा आदि।

  • अद्य.. (आज).., अद्य अहम् पाठं न पठिष्यामि। आज मैं पाठ नहीं पढूँगा।
  • अद्यत्वे.. (आजकल).. अद्यत्वे अपि सः सत्यं न त्यजति। आज कल भी वह सत्य नहीं छोड़ता है।
  • ह्यः कल ( बीता हुआ yesterday) स: ह्यः माम् अवदत्। उसने कल मुझसे कहा।
  • श्वः कल (आने वाला tomorrow) रमा श्वः गृहम् गमिष्यति। रमा कल घर जायेगी।
  • परह्यः.. परसों.. (बीता हुआ ) आचार्यः परह्यः कथां अकथयत्। आचार्य जी ने परसों कथा कही।
  • परस्वः.परसों..( आने वाला ) अहम् परस्वः पुस्तकम् दास्यामि। मैं परसों पुस्तक दूंगा।
  • अन्येद्युः/परेद्युः (दूसरे दिन )..सीता अन्येद्युः /परेद्युः स्व पितरम् ऊवाच। सीता नें दूसरे दिन पिता से कहा।
  • कदा.(कब ) सः कदा अत्र आगमिष्यति? वह कब यहां आयेगा?
  • यदा,तदा ( जब,तब ) यदा सः अपतत् , तदा सर्वे अहसन्। जब वह गिरा, तब सभी हंस पड़े।
  • सर्वदा (सदा /हमेशा ) सर्वदा सत्यम् वदेत्।सदा सत्य बोलना चाहिये।
  • एकदा..(एक बार ).एकदा मुनिः वृक्षस्य अधः अतिष्ठत्। एक बार मुनि वृक्ष के नीचे बैठे थे।
  • सम्प्रति , इदानीम्,एतर्हि,सांप्रतम्,अधुना..(इस समय /अब ) सम्प्रति , इदानीम्,एतर्हि,सांप्रतम्,अधुना त्वम् किम् करोषि? इस समय तुम क्या कर रहे हो?
  • चिरम्,चिरात् (बहुत समय तक )सः चिरम् जीवतु। वह बहुत समय तक जीवित रहे।
  • अचिरम्,अचिरेण,अचिराय, अचिरात्.(शीघ्र,जल्दी ) सः अचिरम् एव अरोदत्। वह शीघ्र ही रो पड़ा।
  • अजस्रम्, अनिशम्..(निरन्तर ) सः अजस्रम् /अनिशम् पठति। वह लगातार/ निरन्तर पढ़ता है।
  • प्रातः..(सुबह ) सः प्रातः न उत्तिष्ठति। वह सुबह नहीं उठता है।
  • सायम्..(शाम )सः सायं भ्रमति। वह शाम को घूमता है।
  • दिवा.. (दिन).. दिवा न स्वपेत्। दिन में नहीं सोना चाहिये।
  • यावत.. (तक) उद्यानं यावत धावतु भवान्। आप बगीचे तक दौड़ें। सायं यावत् त्वम् अत्र तिष्ठ। तुम शाम तक यहीं रहो।
  • यावत.. (जब तक ) यावत् अहम् जीवामि, चिन्तां मा कुरु। जब तक मैं जीवित हूं, चिन्ता मत करो। नोट.. यावत शब्द उपरोक्त दोनों अर्थों में प्रयुक्त होता है।
  • तावत्.. ( पहले ).. इतः तावत् आगम्यताम्। पहले इधर आओ।
  • तावत्.. (तब तक) त्वम् स्वकार्यं कुरु, तावत् अहम् भोजनं करोमि। तुम अपना काम करो, तब तक मैं भोजन करता हूं।
  • यावत् ,तावत् (जब तक, तब तक )मूर्खोऽपि शोभते तावत्, यावत् किञ्चित् न भाषते। मूर्ख भी तब तक ही शोभित होता है जब तक कुछ नहीं बोलता है।
  • कदाचित्.. (कभी-कभी, शायद ) कदाचित् सः अत्र आगच्छेत्। शायद वह यहां आये।
  • पुरा.. (पहले, पुराने समय में)..पुरा अयोध्यायां दशरथः राज्यं अकरोत्। पहले अयोध्या में दशरथ राज्य करते थे।
  • प्राक्. (पहले) प्राक् हस्तौ प्रक्षालय। पहले हाथों को धो लो।
  • ततः.. (तब, इसके बाद)..ततः सः अवदत्। इसके बाद वह बोला।
  • झटिति.. (शीघ्र) झटिति आगच्छ, नोचेत् विलम्बो भविष्यति। शीघ्र आओ नहीं तो देर हो जायेगी।
  • सद्यः.. (शीघ्र, तुरन्त )सद्यः आगच्छ। शीघ्र आओ।
  • द्रुतम्. (शीघ्र, जल्दी ) द्रुतम् वद्.. कः तम् हतवान्। शीघ्र कहो.. कि उसे किसने मारा.

स्थान वाचक अव्यय..

इन अव्ययों से स्थान का बोध होता है।

  • एकत्र.(एक जगह)भवन्तः सर्वे एकत्र उपाविशन्तु। आप सब एक जगह बैठ जायें.
  • अत्र.. (यहां).. अत्र उपाविश। यहां बैठो।
  • तत्र.. वहां.. तत्र गच्छ्। वहां जाओ।
  • सर्वत्र..(सब जगह)..सर्वत्र हरिः वसति। हरि सब जगह रहते हैं।
  • यत्र..(जहां)..यत्र सः गमिष्यति, तत्र अहमपि गच्छामि। वह जहां जायेगा, मैं भी जाऊंगा।
  • कुत्र..(कहां)..त्वम् कुत्र गच्छसि? तुम कहां जाते हो?
  • क्व..(कहां)..त्वम् क्व वससि? तुम कहां रहते हो?
  • अन्यत्र..(दूसरी जगह)..अन्यत्र व्रज। दूसरी जगह जाओ।
  • इह..(यहां)..इह आस्यताम्।..यहां बैठिये।
  • कुतः..(कहां)..कुतः आगच्छसि? कहां से आते हो।
  • यतः, ततः.. (जहां से., वहां से)..यतः त्वम् आगच्छसि , ततः अहम् एव आगच्छामि। जहां से तुम आते हो वहां से ही, मैं आता हूं।
  • अतः.. (यहां से).. अतः गोरखपुर नगरम् क्रोश द्वयं। यहां से गोरखपुर नगर दो कोस दूर है।
  • निकषा.. (पास).. विद्यालयं निकषा उद्यानं अस्ति। विद्यालय के पास उद्यान है।
  • उभयतः.. (दोनो ओर).. नदीम् उभयतः तटौ भवतः। नदी के दोनों ओर तट होते हैं।
  • परितः (चारो ओर).. ग्रामं परितः वनं अस्ति। ग्राम के चारो ओर वन है।
  • सर्वतः..(सब ओर)..ग्रामं सर्वतः वनं अस्ति। ग्राम के सब ओर वन है।
  • अधः.. (नीचे).. दीपं अधः अन्धकारः भवति। दीपक के नीचे अन्धकार होता है।
  • उपरि.. (ऊपर).. वृक्षम् उपरि वानरः अस्ति। वृक्ष के ऊपर बन्दर है।
  • अन्तः.. (अन्दर).. गृहम् अन्तः कलहः न उचितः।
  • बहिः.. (बाहर).. नगरात् बहिः चौराः वसन्ति.। नगर के बाहर चोर रहते हैं।
  • पुरतः.. (सामने) .. गृहम् पुरतः पशवः सन्ति। घर के सामने पशु हैं।

संस्कृत के अव्यय अर्थ और वाक्य

अन्य अव्यय..

  • अपि..(भी).. रामेण सह लक्ष्मणः अपि वनं गतः। राम के साथ लक्ष्मण भी वन को गये। अपि.. क्या (प्रश्न पूछने में ) अपि कुशली भवान्? क्या आप कुशल हैं?
  • इति.. (किसी के कथन को अक्षरशः उद्घृत करने के लिये)… सीता उवाच.. “अहमपि वनं गच्छामि” इति । सीता ने कहा.. “मैं भी वन जाऊंगी”।
  • इति… (इस कारण से).. अस्मिन् विषये अनभिज्ञः अस्मि.. इति पृच्छामि। इस विषय में अनभिज्ञ हूं, इस लिये पूछ रही हूं। नोट.. इति का प्रयोग दो अर्थों में होता है।
  • इव.. (समान).. सः नृपः दाने कुबेर इव आसीत्। वह राजा दान में कुबेर के समान था।
  • क्व-क्व.. (कहां, कहां) (दो वस्तुओं में महान अन्तर स्पष्ट करने के लिये ).. तपः क्व वत्से! क्व च तावत् वपुः। हे पुत्री! कहां तो कठोर तप और कहां तुम्हारा यह कोमल. शरीर।
  • किम्.. (क्यों).. किम् एवं कथयति। ऐसा क्यों कहते हो।
  • किम्.. (क्या) (प्रश्न वाचक).. किम् सः अत्र आगमिष्यति। क्या वह यहां आयेगा।
  • अथ किम्.. (हां ऐसा ही, और क्या).. गुरुः.. किम् त्वया पठितं रामायणं? शिष्यः.. अथ किम् श्रीमन्। गुरु क्या तुमने रामायण पढ़ी है? शिष्य.. हां, और क्या श्रीमान।
  • यत्.. (कि).. गुरुः अवदत्.यत् त्वम् स्व गृहम् गच्छ। गुरु नें कहा.. कि तुम अपने घर जाओ।
  • यतः.. (क्योंकि).. सः शुल्कम् दातुं न शक्तः यतः सः निर्धनः अस्ति। वह शुल्क नहीं दे सकता, क्योंकि वह गरीब है।
  • कुतः.. (किस कारण से).. (प्रश्न वाचक) त्वम् कुतः न आगच्छः। तुम क्यों नहीं आये?
  • कथम्.. (क्यों).. सः माम् दृष्ट्वा कथम् हसति? वह मुझे देख कर क्यों हसता है।
  • वरं… (अच्छा).. वरं एको गुणी पुत्रो न तु मूर्ख शतानि अपि। सौ मूर्ख पुत्रों से एक गुणवान पुत्र अच्छा है।
  • अकस्मात्..(एकाएक / अचानक).. मित्र! अकस्मात् आगतेन् सह मैत्री न युक्ता। हे मित्र!एकाएक आये हुए के साथ मित्रता करना ठीक नहीं है।
  • अथ. (किसी पुस्तक अथवा कथा आदि के आरम्भ में प्रयोग)… अथ श्री महाभारत कथा।
  • अथ. (इसके बाद).. अथ राम उवाच। इसके बाद राम बोले।
  • अन्यथा.. (नहीं तो).. पाठं स्मर, अन्यथा गुरुः त्वाम् ताडयिष्यति। पाठ याद करो, नहीं तो गुरु जी तुम्हें मारेंगे।
  • सर्वथा…(सब प्रकार से).. सः सर्वथा साधुः अस्ति। वह सब प्रकार से सज्जन है।
  • यथा, तथा.. (जिस प्रकार से, उस प्रकार से).. यथा सोमेशः मम बन्धुः अस्ति तथा भवान् अपि। जिस प्रकार सोमेश मेरा बन्धु है, उसी प्रकार आप भी हैं ।
  • वृथा.. (व्यर्थ में).. वृथा असत्यं न ब्रूयात्। व्यर्थ में झूठ नहीं बोलना चाहिये।
  • अन्तरेण.. (बिना).. रामम् अन्तरेण कः इदं कर्तुं समर्थः। राम के बिना यह कौन कर सकता है।
  • इत्थम्.. (इस प्रकार से).. सः इत्थम् कथयति। वह इस प्रकार से कहता है।
  • बिना, ऋते.. (बिना).. त्वम् पुस्तकं बिना /ऋते कथम् पठसि? तुम पुस्तक के बिना कैसे पढ़ते हो?
  • ईषत्.. (थोड़ा)… ईषत् दुग्धं मह्यं देहि। थोड़ा दूध मुझे दो।
  • एव.. ( ही)राम एव रावणं जघान्। राम ने ही रावण को मारा।
  • एवं.. (इस प्रकार से).. एवं जनाः कथयन्ति। इस प्रकार से लोग कहते हैं।
  • किन्तु, परन्तु.. (किन्तु)… सः अत्र अवश्यं आगच्छेत् किन्तु /परन्तु सः रोगी अस्ति। वह अवश्य यहां आता परन्तु वह बीमार है
  • केवलम् .. (केवल).. ते सर्वे नमन्ति, केवलम् त्वम् न नमसि। वे सब नमस्कार करते हैं, केवल तुम ही नमस्कार नहीं करते हो।
  • चेत्.. (यदि).. सत्यं मन्यसे चेत् प्रमाणी कुरु। यदि सत्य मानते हो तो प्रमाणित करो।
  • खलु.. (निश्चय ही).. सत्यं खलु एतत्। यह निश्चय ही सत्य है।
  • दिष्ट्या.. (भाग्य से).. दिष्ट्या त्वम् समागता। तुम भाग्य से आई हो।
  • न, नो.. (नहीं)… अहम् एतत् न /नो जानामि। मैं यह नहीं जानता।
  • धिक्.. (धिक्कार).. धिक् तम् देशद्रोहिणम्। उन देश द्रोहियों को धिक्कार है।
  • ननु.. (अवश्य).. ननु अहम् आगमिष्यामि। मैं अवश्य आऊंगा।
  • पुनः.. (फिर).. सः पुनः अवदत्.। वह फिर बोला।
  • पृथक्.. (अलग).. सर्वेभ्यः पृथक् भूत्वा अत्र आगच्छ।सबसे अलग हो कर यहां आओ।
  • प्रायः.. (प्रायः, अक्सर)… प्रायः मूर्खाः बहु जल्पन्ति। प्रायः मूर्ख अधिक बोलते हैं।
  • प्रत्युत्.. (बल्कि).. सः सत्यम् न वदति, प्रत्युत् असत्यं एव वदति। वह सत्य नहीं बोलता है बल्कि असत्य ही बोलता है.
  • भूयः.. (बार-बार).. पुनश्च भूयोऽपि नमो नमस्ते। और तुमको बार-बार नमस्कार है।
  • भृशं.. (बहुत, अत्यन्त).. भृशं परितप्यमानः सः अवदत्। अत्यन्त दुखी होता हुआ वह बोला।
  • भूरि.. (अत्यन्त, बहुत)..न स्वल्पस्ये कृते भूरि नाशयेत् मतिमान्नरः। बुद्धिमान पुरुष को थोड़े के लिये बहुत को नष्ट नहीं करना चाहिये।
  • मा.. (नहीं, मत).. वर्षा काले गृहात् बहिः मा गच्छ्। वर्षा के समय घर से बाहर मत जाओ।
  • मिथः.. (एकान्त) में.. सः मिथः माम् अकथयत्। उसने एकान्त में मुझसे कहा।
  • मृषा.. (असत्य).. मृषा वदति लोकोऽयम् ताम्बूलं मुखभूषणं। यह संसार असत्य बोलता है कि पान मुख का भूषण है।
  • मुहुः.. (बार बार).. मुहुर्मुहुः विचिन्त्य पण्डितेनोक्तं। बार बार विचार कर पंडित नें कहा।
  • च.. (और).. लोकेशः रमेशः च अत्र आगच्छताम्। रमेश और लोकेश यहां आयें।
  • वा.. (अथवा).. रामः कृष्णः वा अत्र आगच्छेत्। राम अथवा कृष्ण यहां आयें।
  • तु.. (तो).. देवजीतः तु विहस्य अवदत्। देवजीत तो हंस कर बोला।
  • बहुधा, अनेकधा… (अनेक प्रकार से).. बहुधा विलप्य सा अकथयत्। अनेक प्रकार से विलाप कर के वह बोली।
  • द्विधा, त्रिधा.आदि..(दो प्रकार से, तीन प्रकार से).. द्विधा विभज्य दीयताम्. दो प्रकार से बांट कर दे दो।
  • सकृत.. (एक बार).. सकृत कन्या प्रदीयते। कन्या एक बार दी जाती है।
  • द्विः.. (दो बार).. द्विः भोजनं कुर्यात् दिने। दिन में दो बार भोजन करें।
  • त्रिः.. (तीन बार).. त्रिः प्रणम गुरुवरम् । गुरु जी को तीन बार प्रणाम करो.
  • चतुः.. (चार बार).. चतुः प्रदक्षिणीं कुरुत। चार बार परिक्रमा करो।

कुछ प्रत्यय भी अव्यय की तरह प्रयुक्त होते हैं….

  • वत् प्रत्यय..( समान).. ब्राह्मणवत् अधीते… ब्राह्मण के समान पढ़ता है।
  • क्त्वा प्रत्यय… (करके).. सः हसित्वा अब्रवीत। वह हंस कर बोला।
  • ल्यप्… (करके).. सः विहस्य अब्रवीत। वह हंस कर बोला।
  • तुमुन्.. (के लिये).. सः कृष्णं द्रष्टुम् याति। वह कृष्ण को देखने के लिये जाता है।

प्रश्न उत्तर..

  1. अव्यय किसे कहते हैं?
  2. कौन से प्रत्यय अव्यय के रूप में भी प्रयुक्त होते हैं?
  3. कुतः अव्यय किस अर्थ में प्रयुक्त होता है?
  4. अव्यय को और क्या नाम है?

उत्तर…

  1. जिन शब्दों के रूप में लिङ्ग वचन कारक पुरुष के कारण कोई परिवर्तन नहीं होता है, उन्हें अव्यय कहते हैं।
  2. वत्, क्त्वा , ल्यप्., तुमुन्
  3. ‘कहां से’ इस अर्थ में
  4. अविकारी शब्द

Sanskrit Me Lakar Introduction…के लिये इसे पढ़ें..

निपात क्या होते हैं..के लिये इसे पढ़ें..

संस्कृत में वाच्य परिवर्तन के नियम…के लिये इसे देखिये..

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