रमणीया हि सृष्टिः एषा Sanskrit class 10 NCERT solution/समाधान । यह सृष्टि निश्चय ही सुन्दर है। विधाता द्वारा बनाई गई इस सृष्टि में सभी महत्वपूर्ण हैं किसी में किसी प्रकार क भेद नहीं है। प्रकृति के लिये सभी प्राणी एक समान हैं।
अतः आपस में कलह करके ,इस अमूल्य जीवन का एक भी क्षण व्यर्थ नहीं करना चाहिये।इस पाठ में पक्षियों के आपस के वार्तालाप के माध्यम से यही संदेश दिया गया है।
(विद्यालस्य प्राङ्गणे रङ्गमञ्वः। नटः नटी च प्रविशतः ।)
विद्यालय के प्राङ्गण में रंगमञ्च। नट और नटी प्रवेश करते हैं।
उभौ…… (करौ बद्ध्वा )नमः सर्वेभ्यः। अस्माकं विद्यालयस्य प्राङ्गणे भवतां हार्दिकम् अभिनन्दनम्।
दोनों… (हाथ जोड़ कर) सबको प्रणाम। हमारे विद्यालय के प्राङ्गण में आपका सभी का हार्दिक अभिनन्दन (स्वागत है )
Ramaniya Hi Srishtih Esha
नटः….अद्य जूनमासस्य पञ्चमी तारिका।
नट… आज जून मास की पाँचवीं तिथि /तारीख है।
नटी …. आम् सत्यम्। अद्य तु विश्वपर्यावरणदिवसः।
नटी… हाँ सच है। आज तो विश्वपर्यावरण दिवस है।
उभौ….एवम् । अस्मिन् शुभावसरे वयं रम्यां सृष्टिम् अधिकृत्य एकस्याः लघुनाटिकायाः प्रस्तुतिं करिष्यामः।
दोनो…. ऐसा ही है। इस शुभ अवसर पर हम सब सुन्दर सृष्टि पर आधारित एक लघु (छोटी)नाटिका प्रस्तुत करेंगे।
नटी… इदं तु सत्यमेव यत् इयं सृष्टिः अति सौन्दर्यमयी अस्ति।
नटी… यह तो सच ही है, कि यह सृष्टि बहुत सुन्दर है।
नटः …अतः परस्परं कलहेन विवादेन एषा दूषिता न कर्त्तव्या।
नट… अतः आपस में लड़ाई झगड़े से इसे खराब नहीं करना चाहिये।
नटी …..सर्वेषाम् एव अत्र महत्त्वं विद्यते।
नटी… सभी का यहां महत्व है.
नटः …कोऽपि इह संसारे कनिष्ठः वरिष्ठः वा नास्ति।
नटः….. इस संसार में कोई भी छोटा या बड़ा नहीं है।
उभौ …. सर्वे समानाः।
दोनों…..सभी समान हैं।
नटी …. प्रकृतिः माता सर्वान् स्नेहेन परिपालयति।
नटी….. प्रकृति माता सभी को प्यार से पालती हैं।
उभौ….अतः प्रस्तूयते लघुनाटिका ‘रमणीया हि सृष्टिः एषा।’
दोनों… अतः प्रस्तुत है एक छोटी नाटिका “रमणीया हि सृष्टिःएषा” यह सृष्टि निश्चय ही बहुत सुन्दर है।
(गच्छत:).. दोनों चले जाते हैं।
पाठ…रमणीया हि सृष्टिः एषा..
[स्थानम् सरस्तीरम्। समयः प्रभातवेला। तत्र राजहंसः हंसी च विहरतः। नेपथ्ये काकध्वनिः श्रूयते।]
[ स्थान… सरोवर का किनारा। समय.. प्रातः काल। वहाँ राजहंस और हंसी विहार कर रहे हैं। पर्दे के पीछे से कौए की ध्वनि/आवाज सुनाई पड़ रही है।]
राजहंसः…अये। किन्नु खलु सरस्वीरे विहरति मयि केनापि कर्कशैः ‘का का’ शब्दैः वातावरणम् आकुलीक्रियते ?.
राजहंस…. अरे!! मेरे द्वारा सरोवर के किनारे घूमते हुए, किस के द्वारा ‘काँव-काँव ‘ इस कठोर ध्वनि से वातावरण को दूषित किया जा रहा है?
राजहंसी….भर्तः! काकात् अन्यः को भवितुमर्हति ? अस्य वर्णः अपि कृष्णः, कर्म अपि कृष्णम्। मेध्यम् अमेध्यं सर्वमेव भक्षयति। कर्णकटुशब्दैः ——–
राजहंसी….. स्वामी! कौवे के अतिरिक्त दूसरा कौन हो सकता है। इसका रंग भी काला है और इसका कार्य भी काला है। पवित्र-अपवित्र (शुद्धाशुद्ध) सबको खाने वाला है। कानों में चुभने वाले शब्दों से… (वातावरण को दूषित कर रहा है।)
काक….(प्रविश्य, सक्रोधम्) आः! किम् उक्तवती भवती ? यदि अहं कृष्णवर्णः तर्हि श्रीरामस्य वर्णः कीदृशः ? श्रीवासुदेवस्य वर्णः कीदृशः ? मुग्धे! अहं तु अतीव कर्तव्यपरायणः। प्रभाते ‘का-का’ ध्वनिना सुतान् प्रबोधयामि कर्मसु च विनियोजयामि।
कौआ….. (प्रवेश करके गुस्से से) अरे!! यह आपने क्या कहा ? यदि मैं काले रंग का हूँ तो भगवान श्रीराम का रंग कैसा है? भगवान वासुदेव =श्रीकृष्ण का रंग कैसा है? अरी भोली ! मैं तो बड़ा कर्त्तव्यनिष्ठ हूँ। प्रातःकाल ‘काँव-काँव’ की ध्वनि से सोए हुए लोगों को जगाता हूँ और कार्यों में लगाता हूँ।
राजहंसः…हूं। किमनेन ? एतत् कार्य तु कुक्कुटोऽपि करोति।
राजहंस….हूँ। इससे क्या? यह कार्य तो मुर्गा भी करता है।
शब्दार्थ…सरस्तीरम्= सरोवर / तालाब का किनारा , नेपथ्ये= पर्दे के पीछे , काकध्वनिः = कौए की ध्वनि/ आवाज , श्रूयते = सुनाई देती है , खलु =निश्चय ही , कर्कशैः= कठोर (harsh), आकुलीक्रियते= दूषित किया जा रहा है , भर्तः = हे स्वामी! , मेध्यम् = शुद्ध/अच्छा ( खाने योग्य )अमेध्यं= अशुद्ध (न खाने योग्य), कर्णकटुशब्दैः= कानों को चुभनें वाले शब्दों से ( ध्वनि से ), वर्णः = रंग , प्रबोधयामि = जगाता हूँ , कर्मसु च = और कामों में ,.विनियोजयामि = लगाता हूँ।
संधि कार्य..
- सरस्तीरम्= सरः +तीरम् (विसर्ग संधि )
- किन्नु= किम् +नु (परसवर्ण संधि )
- अतीव = अति +इव (दीर्घ स्वर संधि)
- भवितुमर्हति=भवितुम् +अर्हति (संयोग)
- किमनेन= किम् +अनेन (संयोग)
- कुक्कुटोऽपि= कुकुट्टः + अपि (विसर्ग संधि)
समास..
- काकध्वनिः= काकस्य ध्वनि ( षष्ठी तत्पुरुष)
- प्रभातवेला= प्रभातस्य वेला ( षष्ठी तत्पुरुष)
- सरस्तीरम्= सरसः तीरम् (षष्ठी तत्पुरुष)
- अमेध्यं= न मेध्यम् (नञ् तत्पुरुष)
- सक्रोधम्= क्रोधेन सह (तृतीया तत्पुरुष)
- कर्तव्यपरायणः= कर्तव्ये परायणः ( सप्तमी तत्पुरुष)
हिन्दी अनुवाद….
काकः…(विहस्य) कुक्कुटः। अरे अद्य कुतः कुक्कुटाः नगरेषु। अहमेव सर्वत्र सुलभः।
कौआ…(हँसकर) मुर्गा! अरे! आज नगरों में मुर्गे कहाँ? मैं ही सभी जगह मिलता हूँ।
राजहंसी…भोः भो वाचाल! स्वीयैः कटुभिः क्वणितैः जनजागरणात् अन्यत् तु किमपि न करोषि ?
राजहंसी…..अरे, बहुत अधिक बोलने वाले ! /वाचाल अपने कठोर शब्दों से लोगों को जगाने के अतिरिक्त कुछ भी नहीं करते हो।
काकः….अहो अज्ञानं भवत्याः । अरे! यस्य गृहस्य भित्तौ स्थित्वा आलपामि, जनाः प्रियस्य आगमनसङ्केतं मत्वा हृष्यन्ति। किं बहुना ! अहं तु एतादृशः सत्यप्रियः यत् मातरः शिशून् कथयन्ति अनृतं वदसि चेत् काकः दशेत्।” अस्माकम् ऐक्यं तु जगत्प्रसिद्धम्। सर्वथा जागरूकोऽहं छात्राणां कृते आदर्शः एव। किं न श्रुतं काकचेष्टा, बकोध्यानम्…..
कौआ…अहो!!!, यही तो आपकी अज्ञानता है। अरे! मैं जिस घर की दीवार पर बैठकर बोलता हूँ, (उस घर के)लोग अपने प्रियजनों के आने का संकेत मानकर खुश होते हैं। अधिक क्या बोलूं । मैं तो ऐसा सच बोलने वाला हूँ कि माताएँ अपने बच्चों को कहती हैं, “यदि झूठ बोलोगे तो कौआ काटेगा।” हमारी एकता तो सारे संसार में प्रसिद्ध है। मैं हमेशा जागरूक/सावधान रहने वाले छात्रों के लिए आदर्श ही हूँ। क्या आपने यह नहीं सुना-(कि छात्र में )कौए की चेष्टा(प्रयास) और बगुले का ध्यान””( होना चाहिये)
शब्दार्थ…कुक्कुटः= मुर्गा , नगरेषु= नगरों में / शहरों में , वाचाल= बहुत बोलने वाला , स्वीयैः कटुभिः = अपने कड़वे ,क्वणितैः=कठोर शब्दों से , अन्यत् = अतिरिक्त , भवत्याः = आपका , भित्तौ = दीवार पर, आलपामि = बोलता हूँ/ आवाज करता हूँ, प्रियस्य = प्रिय जन की, मत्वा = मान कर, हृष्यन्ति = प्रसन्न होते हैं / खुश होते हैं, एतादृशः = ऐसा, सत्य प्रिय = सत्य बोलने वाला, शिशून् = बच्चों को, अनृतं = असत्य /झूठ, दशेत =काटेगा, ऐक्यम् = एकता , काकचेष्टा = कौवे का प्रयास ,
संधि कार्य…
- जागरूकोऽहं= जगरुकः + अहम् / जगरुको +अहम् ( विसर्ग संधि / पूर्व रूप संधि)
- बकोध्यानम्= बकः + ध्यानं ( विसर्ग संधि)
समास..
- अज्ञानं= न ज्ञानं (नञ् तत्पुरुष)
- आगमनसङ्केतं = आगमनस्य संकेतम् (षष्ठी तत्पुरुष)
- जगत्प्रसिद्धम् = जगति प्रसिद्धम् (सप्तमी तत्पुरुष)
- काकचेष्टा= काकस्य चेष्टा (षष्ठी तत्पुरुष)
- अनृतं = न ऋतं (नञ् तत्पुरुष)
प्रकृति प्रत्यय..
- स्थित्वा = स्था + क्त्वा
- मत्वा = मन् + क्त्वा
- विहस्य = वि +हस् + ल्यप्
- श्रुतम् = श्रु +क्त
- भवत्याः = भवत् +ङीप् l( षष्ठी एक वचन का रूप है )
राजहंसः ….विरम विरम। श्रूयतां यत् जनैः सर्वदा गीयते तव विषये-
राजहंस—-रुको, रुको। तुम्हारे विषय में लोग,जो सदा गाते हैं,उसे सुनो।
काकस्य गात्रं यदि काञ्वनस्य माणिक्यरत्नं यदि चञ्चुदेशे।
एकैकपक्षे ग्रथितं मणीनां तथापि काको न तु राजहंसः ॥ 1 ॥
श्लोक अन्वय..यदि काकस्य गात्रम् काञ्चनस्य, यदि चञ्चुदेशे माणिक्यरत्नम्, एकैकपक्षे मणीनाम् ग्रथितम् तथापि (सः) काकः (एव) न तु राजहंसः ॥ 1 ॥
श्लोक हिन्दी अनुवाद…. कौवे का शरीर यदि सोने का हो, उसके चोंच में यदि माणि रत्न हों, एक-एक पंख को मणियों से गूँथा गया हो फिर भी कौआ (कौआ ही होता है) राजहंस नहीं होता।
अपि च…..
हंस श्वेतः बकः श्वेतः को भेदः बकहंसयोः।
नीरक्षीरविवेके तु हंसो हंसः बको बकः ॥ 2 ॥
(2) और भी….हंस भी श्वेत (सफेद) होता है बगुला भी सफेद होता है। बगुले और हंस में क्या अंतर है?(अर्थात दोनों के रंग में कोई अन्तर नहीं है)पानी और दूध को अलग करते समय हंस, हंस ही होता है और बगुला, बगुला होता है।अर्थात पानी और दूध को अलग केवल हंस ही कर सकता है बगुला नहीं, अतः दोनो का अन्तर तभी पता चलता है ।।2।।
शब्दार्थ…विरम् = रुको, श्रूयतां= सुनो , श्रूयताम् – सुनिए, गीयते-गाया जाता है, काञ्चनस्य-सोने का चञ्चुदेशे-चोंच के स्थान पर। माणिक्य-रत्नम्-माणिक्य और रत्न । एक-एक-पक्षे-एक एक पंख में, मणीनां = मणियों का। ग्रथितम्= गूँथा हुआ हो ,तथापि=फिर भी, नीरक्षीरविवेके-पानी तथा दूध को अलग करने के ज्ञान में।
संधि कार्य
- एकैक=एक + एक ( वृद्धि स्वर संधि)
- तथापि= तथा + अपि (दीर्घ स्वर संधि)
समास
- माणिक्यरत्नम् = माणिक्यं च रत्नं च तयोः समाहारः (समाहार द्वन्द्व)
- चञ्चुदेशे= चञ्चोः देशे ( षष्ठी तत्पुरुष)
- बकहंसयोः= बके च हंसे च (द्वन्द्व समास )
- नीरक्षीरविवेके= नीरं च क्षीरं च तयोः विवेके ( षष्ठी तत्पुरुष)
प्रकृति प्रत्यय…
ग्रथितम् = ग्रथ् + क्त
बकः…(प्रविश्य, स्वपक्षौ अवधूय) कथं माम् अपि अधिक्षिपसि ? किं ते महत्त्वम् ?वर्षर्तौ तु मानसं पलायसे। अहम् एव अत्र वृष्टेः अभिनन्दनं करोमि। कीदृशी तव मैत्री ? आपत्काले सरांसित्यक्त्वा दूरं व्रजसि। वस्तुतः अहमेव शीतले जले बहुकालपर्यन्तम् अविचलं ध्यानमग्नः ‘स्थितप्रज्ञ’ इव तिष्ठामि। दुग्धधवला में पक्षाः। न जाने कथं माम् अपरिगणयन्तः जनाः चित्रवर्णम् अहिभुजं मयूरं ‘राष्ट्रपक्षी’ इति मन्यन्ते। अहमेव योग्यः …….
बगुला (प्रवेश करके अपने पंखों को फड़फड़ाकर/ हिलाकर ) मेरी भी क्यों निंदा करते हो? तुम्हारा महत्त्व क्या है?वर्षा ऋतु के आगमन पर तुम मानसरोवर भाग जाते हो, मैं ही यहाँ वर्षा का स्वागत करता हूँ। तुम्हारी मित्रता कैसी है? आपत्ति के समय सरोवरों को त्यागकर दूर भाग जाते हो। वास्तव में मैं ही ठण्डे जल में बहुत लम्बे समय तक निश्चल रूप से(बिना हिले डुले )ध्यान में मग्न,स्थिर बुद्धि वाले योगी के समान खड़ा रहता हूँ। मेरे पंख दूध के समान सफेद हैं। मुझे यह समझ में नहीं आता कि लोग मेरी परवाह न करते हुए विचित्र रंगों वाले , साँपों को खाने वाले मोर को राष्ट्रीय पक्षी क्यों मानते हैं। मैं ही योग्य हूँ।
मयूरः… (प्रविश्य साट्टहासम्) सत्यं सत्यम्। अहमेव राष्ट्रपक्षी। को न जानाति तव ध्यानावस्थाम् ? मौनं धृत्वा वराकान् मीनान् छलेन अधिगृह्य क्रूरतया भक्षयसि। धिक् त्वाम्। अवमानितं खलु सर्व पक्षिकुलं त्वया।
मोर…..(प्रवेश करके ठहाके के साथ) सच है, सच है। मैं ही राष्ट्रीय पक्षी हूँ। तुम्हारी ध्यान अवस्था को कौन नहीं जानता? मौन धारण करके (चुपचाप )बेचारी मछलियों को छल(धोखे से )से पकड़कर बड़ी निर्दयता से खाते हो। तुम्हें धिक्कार है। निश्चय ही तुमने तो सब पक्षियों के समूह को अपमानित किया है।
काकः….रे सर्पभक्षक । नर्तनात् अन्यत् किम् अपरं जानासि ?
कौआ…. अरे सांपों को खाने वाले मोर! नाचने के अतिरिक्त और तुम क्या जानते हो?
शब्दार्थ..शब्दार्थ-स्वपक्षौ=अपने पंखों को , अवधूय = हिला कर / फड़फड़ाकर ,अधिक्षिपसि= निन्दा/ बुराई कर रहे हो, आगमे= आने पर , मानसम्= मान सरोवर की ओर, पलायसे=भाग जाते हो, अभिनन्दनम्=स्वागत, आपत्काले=आपत्ति/मुसीबत के समय ,सरांसि =सरोवरों ता लाबों) को, त्यक्त्वा = छोड़ कर , दूरम् = दूर , व्रजसि=चले जाते हो , अविचलम्=बिना हलचल किये , स्थितप्रज्ञः- जिसकी बुद्धि स्थिर है दुग्धधवलाः- दूध के समान सफेद । पक्षाः = पंख, अपरिगणयन्तः= महत्व न देते हुए, चित्रवर्णं= विचित्र रंग वाले। अहिभुजम्=साँपों को खाने वाले, मन्यन्ते=मानते हैं, धृत्वा= धारण कर, मीनान्=मछलियों को, अधिगृह्य=पकड़ कर , क्रूरतया-निर्दयता से , धिक् त्वाम् = तुम्हें धिक्कार है, अवमानितम्-अपमानित किया गया है, नर्तनात् अन्यत्-नाचने के अतिरिक्त अपरम्=और/दूसरा
संधि कार्य..
- वर्षर्तौ = वर्षा + ऋतौ ( वृद्धि संधि)
- ध्यानावस्थाम्= ध्यान + अवस्थाम् (दीर्घ स्वर संधि)
- साट्टहासम्= स+ अट्टाहसं (दीर्घ स्वर संधि)
समास….
- साट्टहासम्= अट्टाहसेन् सह ( तृतीया तत्पुरुष)
- वर्षर्तौ= वर्षायाः ऋतौ ( षष्ठी तत्पुरुष)
- अविचलम् = न विचलम् ( नञ् तत्पुरुष)
- ध्यानमग्नः=ध्याने मग्नः ( सप्तमी तत्पुरुष)
- स्थितप्रज्ञ= स्थिता प्रज्ञा यस्य सः ( बहुब्रीहि)
- शीतले जले = शीतलजले ( कर्मधारय)
- दुग्धधवलाः = दुग्ध इव धवलाः ( कर्मधारय)
- अपरिगणयन्तः= न परिगणयन्तः( नञ् तत्पुरुष)
- राष्ट्रपक्षी=राष्ट्रस्य पक्षी ( षष्ठी तत्पुरुष)
- ध्यानावस्थाम्=ध्यानस्य अवस्थाम् ( षष्ठी तत्पुरुष)
- सर्पभक्षक=सर्पाणाम् भक्षक ( षष्ठी तत्पुरुष)
- पक्षिकुलं= पक्षिणाम् कुलम् ( षष्ठी तत्पुरुष)
पेरकृति प्रत्यय..
- प्रविश्य =प्र + विश् +ल्यप्
- त्यक्त्वा= त्यज् +क्त्वा
- अवधूय= अव +धू +ल्यप्
- महत्वम्= महत् + त्व
- मैत्री= मित्र +ङीप
- अवमानितम्= अव +मन् +क्त
- क्रूरतया = क्रूर +तल् ( तृतीया विभक्ति एक वचन का रूप है)
- अभिनन्दनम् =अभि+नन्द् +ल्युट्
- अपरिगणयन्तः = अ + परि + गण्+शतृ
- अधिगृह्य = अधि + ग्रह् + ल्यप्
मयूरः.. श्रूयताम् – श्रूयताम्। मम् नृत्यं तु प्रकृतेः आराधना। पश्य! चारुवर्तुलचन्द्रिकाशोभितानां मम् पिच्छानाम् अपूर्वं सौन्दर्यम्।। मम केकारवं श्रुत्वा कोकिलः अपि लज्जते। मम शिरसि राजमुकुटमिव शिखां स्थापयता । विधात्रा एव अहं पक्षिराजः कृतः ।
मोर….सुनो,सुनो!मेरा नृत्य तो प्रकृति की पूजा है। देखो! सुन्दर गोल अर्धचन्द्राकार की भाँति सुशोभित मेरे पंखों की अपूर्व सुंदरता। मेरी मधुर ध्वनि को सुनकर कोयलें भी लज्जित होती हैं। मेरे सिर पर राजमुकुट की भाँति चोटी/कलगी को स्थापित करने वाले विधाता ने मुझे ही पक्षियों का राजा बनाया है।
कोकिल:(प्रविश्य) रे मयूर। अलम् अतिविकत्थनेन। मधुमासे आम्रवृक्षे स्थित्वा यदा अहं पञ्चमस्वरेण गायामि तदा श्रोतारः कथयन्ति-
कोयल…(प्रवेश करके) अरे मोर! अपनी प्रशंसा करना बन्द करो । वसन्त ऋतु में आम के पेड़ पर बैठकर जब मैं पञ्चम स्वर से गाती हूँ तो सुनने वाले कहते हैं-
काकः कृष्णः पिकः कृष्णः को भेदः पिककाकयोः ।
बसन्तसमये प्राप्ते काकः काकः पिकः पिकः ॥ 3 ॥
श्लोक अन्वय..काकः कृष्णः पिकः कृष्णः, पिककाकयोः कः भेदः ? वसन्तसमये प्राप्ते काकः काकः पिकः पिकः ॥3॥
श्लोक अनुवाद..कौवा भी काला होता है, कोयल भी काली होती है। कौवे और कोयल में क्या भेद है? वसन्त ऋतु आने पर कौवा, कौवा ही होता है और कोयल, कोयल ही होती है।( अर्थात वसन्त ऋतु में कोयल के गाने पर दोनों में अन्तर पता चल जाता है।)
शब्दार्थ-नृत्यम्=,नाच , प्रकृतेः=प्रकृति की , आराधना=पूजा, चारु=सुन्दर, वर्तुल=गोल, चन्द्रिका=चन्द्राकार ,शोभितानाम् =सुशोभित, पिच्छानाम्=पंख-समूह का, अपूर्व=अद्वितीय, केकारवं-मोर की ध्वनि, कोकिलः=कोयल,शिखां-= कलगी /चोटी । स्थापयता- स्थापित करने वाले, विधात्रा=ब्रह्मा के द्वारा, पक्षिराजः =पक्षियों का राजा, कृतः = बनाया गया हूं ,अलम् अतिविकत्थनेन= अपनी प्रशंसा मतकरो ,प्राप्ते= आने पर
समास…
- पक्षिराजः= पक्षिणां राजः ( षष्ठी तत्पुरुष)
प्रकृति प्रत्यय..
- कृतः = कृ +क्त
- स्थित्वा = स्था +क्त्वा
- प्राप्ते =प्र +आप् +क्त
- स्थापयता = स्थाप् +शतृ
काक: ….रे परभृत्। अहं यदि तव सन्ततिं न पालयामि तर्हि कुत्र स्युः पिकाः ? अतः अहम् एव करुणापरः पक्षिसम्राट् काकः !
कौआ : अरी दूसरों पर पलने वाली! यदि मैं तेरी सन्तान का पालन न करूँ तो कोयलें कहाँ से होंगी ? इसलिए दयाशील/ दयालु, मैं कौआ ही, पक्षियों का राजा हूँ।
राजहंसः ….शान्तं शान्तम्। अहमेव नीरक्षीरविवेकी पक्षिणां राजा!
राजहंस..शान्त हो जाओ, शान्त हो जाओ। दूध और पानी को अलग करने का विवेक रखनेवाला मैं ही पक्षियों का राजा हूँ।
वकः ….धिक् युष्मान् । अहमेव सर्वशिरोमणिः !
बगुला…..तुम सबको धिक्कार है। मैं ही सबसे श्रेष्ठ हूँ।
शब्दार्थ…..-परभृत्-दूसरों से सन्तान की पालन करवाने वाली, दूसरों पर निर्भर , सन्ततिम्=सन्तान को, पिकाः- कोयल/कोयलें , करुणापरः= दयालु, पक्षिसम्राट्=पक्षियों का राजा , शान्तम्=शान्त हो जाओ, नीरक्षीरविवेकी- जल और दूध को अलग करने का विवेक रखने वाला, सर्वशिरोमणिः= सब के सिर की मणि अर्थात् सब से श्रेष्ठ
समास…
- पक्षिणां राजा= पक्षिराजः ( षष्ठी तत्पुरुष)
- पक्षिसम्राट्= पक्षिणाम् सम्राट ( षष्ठी तत्पुरुष)
- सर्वशिरोमणिः= सर्वेषाम् शिरमणि ( षष्ठी तत्पुरुष)
प्रकृति प्रत्यय..
विवेकी = विवेक +इन्
(ततः प्रकृतिमाता प्रविशति) (उसके बाद प्रकृति माता प्रवेश करती है।)
प्रकृतिः ….(सस्नेहम्) अलम् अलं मिथः कलहेन। अहं प्रकृतिः एव युष्माकं जननी। यूयं सर्वे एव मम प्रियाः। सर्वेषामेव महत्त्वं विद्यते यथासमयम्। सर्वैः एव मे शोभा। न तावत् कलहेन समयं वृथा यापयेत। मिलित्वा एव मोदध्वं जीवनं च रसमयं कुरुध्वम्।
सर्वे मिलित्वा गायन्ति-
प्रकृति……(प्रेमपूर्वक) आपस में झगड़ा मत करो। मैं प्रकृति ही तुम सब की माता हूँ। तुम सभी मेरे प्रिय हो। सभी का ही समय के अनुसार महत्त्व है। तुम सभी से ही मेरी शोभा है। कलह / लड़ाई में अपना समय नष्ट नहीं करना चाहिए। मिलकर ही खुश रहो और अपने जीवन को आनंदमय बनाओ। सभी पक्षी मिलकर गाते हैं-
आयुषः क्षण एकोऽपि न लभ्यः स्वर्णकोटिकैः ।
स चेन्निरर्थकं नीतः का नु हानिस्ततोऽधिका ॥ 4 ॥
श्लोक अन्वय..आयुषः एकः क्षणः अपि स्वर्णकोटिकैः न लभ्यः। स चेत् निरर्थकम् नीतः ततः अधिका नु हानिः का? ॥4॥
श्लोक हिन्दी अनुवाद..आयु का एक पल भी करोड़ों स्वर्ण मुद्राओं से भी प्राप्त नहीं हो सकता है। यदि वह समय व्यर्थ ही गँवा दिया गया तो निश्चित रूप से उसके अधिक क्या हानि होगी (अर्थात्) उससे बढ़कर कोई हानि नहीं है ।।4।।
अधुना रमणीया हि सृष्टिरेषा जगत्पतेः ।
जीवाः सर्वेऽत्र मोदन्तां भावयन्तः परस्परम् ॥ 5 ॥
श्लोक अन्वय..एषा जगत्पतेः सृष्टिः हि अधुना रमणीया। सर्वे जीवाः अत्र परस्परम् भावयन्तः मोदन्ताम् ॥ 5॥
श्लोक हिन्दी अनुवाद..निश्चित रूप से विधाता की यह सृष्टि अति सुन्दर है। आपस में सद्भावना रखते हुए यहाँ सभी प्राणी प्रसन्न रहें।।5
शब्दार्थ… मिथः = परस्पर /आपस में , यापयेत =व्यतीत करो, आयुषः- आयु का , एकः अपि= एक भी , क्षणम्=पल ,स्वर्ण-कोटिकैः=करोड़ो स्वर्णमुद्राओं से , न लभ्यः=प्राप्त नहीं हो सकता, चेत्-यदि. सः=वह (क्षण) , निरर्थकम् =अर्थहीन/ बेकार , नीतः = बिता दिया जाए, ततः=तो उससे, अधिका=-अधिक , का नु=क्या। हानिः- नुकसान (हो सकता है)?, अधुना=अब, हि=निश्चय ही, जगत्पतेः – संसार के स्वामी की, एषा =यह। सृष्टिः=संसार/ जगत , रमणीया= सुन्दर है अत्र=यहाँ, सर्वे=सभी , जीवाः- प्राणी, मोदन्ताम्-प्रसन्न रहें, परस्परम्=आपस में , भावयन्तः- सद्भावना रखते हुए ।
संधि कार्य..
- एकोऽपि= एकः +अपि ( विसर्ग संधि )
- चेन्निरर्थकं= चेत् +निरर्थकम् ( व्यञ्जन संधि )
- सर्वेषामेव=सर्वेषाम् +एव ( संयोग)
- हानिस्ततोऽधिका= हानिः +ततः +अधिका ( विसर्ग संधि)
- सृष्टिरेषा= सृष्टिः +एषा (विसर्ग संधि)
- सर्वेऽत्र=सर्वे +अत्र ( पूर्वरूप संधि)
समास…
- निरर्थकम् = अर्थस्य अभावः (अव्ययीभाव )
- सस्नेहम् =स्नेहेन सह (अव्ययीभाव)
- यथासमयम् =समयम् अनतिक्रम्य (अव्ययीभाव)
- जगत्पतेः =जगतः पतेः (षष्ठी तत्पुरुष)
- स्वर्णकोटिकैः= स्वर्णानाम् कोटिकैः (षष्ठी तत्पुरुष)
प्रकृति प्रत्यय..
- प्रकृति:=प्र +कृ +क्तिन्
- मिलित्वा = मिल् +क्त्वा
- अधिका =अधिक +टाप्
- रमणीया = रम् +अनीयर् +टाप्
- नीतः = नी +क्त
- भावयन्तः = भू + णिच् +शतृ
…………….
रमणीया हि सृष्टिः एषा..
अभ्यास कार्य
- अधोलिखितान् प्रश्नान् ‘आम्’ अथवा ‘नहि’ माध्यमेन उत्तरत-
- (क) किं ‘का का’ इति राजहंसस्य ध्वनिः ?
- (ख) किं काकः मेध्यम् अमेध्यं वा सर्वमेव भक्षयति ?
- (ग) किं कुक्कुटाः नगरेषु सर्वत्र सुलभाः एव ?
- (घ) किं राजहंसी श्लोकद्वयं पठति ?
- (ङ) किं बकः श्वेतः भवति ?
- (च) किं वर्षाणाम् अभिनन्दनं बकः करोति ?
- (छ) किं मयूरः एव अस्माकं राष्ट्रपक्षी ?
- (ज) किं मयूरः क्रोधेन प्रविशति ?
- (झ) किं कोकिलः एव मधुमासे आम्रवृक्षे स्थित्वा गायति ?
- (ञ) किं राजहंसः एव नीरक्षीरविवेकी मन्यते ?
उत्तर…(क) न, (ख) आम् , (ग) न ,(घ) न ,(ङ) आम् , (च) आम् ,(छ) आम् , (ज) न ,(झ) आम् ,(ञ) आम्।
- अधोलिखितप्रश्नान् पूर्णवाक्येन उत्तरत –
- (क) राजहंसः राजहंसी च काकध्वनिं कस्यां वेलायां शृणुतः ?
- (ख) मयूरः केन पक्षिराजः कृतः ?
- (ग) कोकिलः कुत्र स्थित्वा पञ्चमस्वरेण गायति ?
- (घ) मातरः शिशून् किं कथयन्ति ?
- (ङ) केषाम् ऐक्यं जगत्प्रसिद्धम् ?
- (च) काकपिकयोः भेदः कदा ज्ञायते ?
- (छ) कीदृशी सृष्टिः एषा ?
- (ज) केन समयः वृथा न यापयितव्यः ?
उत्तर…
- (क) राजहंसः राजहंसी च काकध्वनिं प्रभातवेलायां वेलायां शृणुतः।
- (ख) मयूरः विधात्रा पक्षिराजः कृतः।
- (ग) कोकिलः आम्रवृक्षे स्थित्वा पञ्चमस्वरेण गायति।
- (घ) मातरः शिशून् कथयन्ति….”अनृतं वदसि चेत् काकः दशेत्।”
- (ङ) काकानाम् ऐक्यं जगत्प्रसिद्धम्।
- (च) काकपिकयोः भेदः वसन्तसमये प्राप्ते ज्ञायते।
- (छ) रमणीया सृष्टिः एषा।
- (ज) मिथः कलहेन समयः वृथा न यापयितव्यः।
- अधोलिखितवाक्येषु स्थूलपदम् आधृत्य प्रश्ननिर्माणं कुरुत-
- (क) नेपथ्ये काकध्वनिः श्रूयते?
- (ख) काकः प्रभाते ‘का का’ ध्वनिना सुप्तान् प्रवोधयति ।
- (ग) मयूरस्य पिच्छानां सौन्दर्यम् अद्भुतम् अस्ति।
- (घ) बकः मीनान् छलेन अधिगृह्य क्रूरतया भक्षयति ।
- (ङ) जगत्पतेः एषा सृष्टिः रमणीया अस्ति।
- (च) मयूरस्य नृत्यं प्रकृतेः आराधना।
- (छ) आयुषः एकः अपि क्षणः स्वर्णकोटिकैः न लभ्यते।
- (ज) हंसः वर्षर्तौ तु मानसं पलायते।
उत्तर..
- (क) कुत्र काकध्वनिः श्रूयते।
- (ख) काकः प्रभाते ‘का का’ ध्वनिना कान् प्रवोधयति?
- (ग) मयूरस्य केषाम् सौन्दर्यम् अद्भुतम् अस्ति?
- (घ) बकः मीनान् छलेन अधिगृह्य कया/ कथम् भक्षयति?
- (ङ) जगत्पतेः एषा सृष्टिः कीदृशी अस्ति?
- (च) मयूरस्य नृत्यं कस्याः आराधना?
- (छ) कस्य एकः अपि क्षणः स्वर्णकोटिकैः न लभ्यते?
- (ज) हंसः कदा तु मानसं पलायते?
- यथानिर्देशम् उत्तरत –
(क) ‘जनाः प्रियस्य आगमनसङ्केतं मत्वा दृष्यन्ति।’ अस्मिन् वाक्ये कर्तृपदं किम् अस्ति ?
उत्तर.. जनाः
(ख) ‘अलम् अलं मिथः कलहेन।’ वाक्येऽस्मिन् ‘परस्परम्’ इति पदस्य किं पर्यायपदं प्रयुक्तम् ?
उत्तर.. मिथः
(ग) ‘आपत्काले सरांसि त्यक्त्वा दूरं व्रजसि।’ वाक्येऽस्मिन् किं क्रियापदं प्रयुक्तम् ?
उत्तर.. व्रजसि
(घ) ‘सत्यम्’ इति पदस्य किं विलोमपदं पाठे प्रयुक्तम् ?
उत्तर.. अनृतम्
(ङ) ‘दुग्धधवलाः’ इति विशेषणपदस्य किं विशेष्यपदं पाठे प्रयुक्तम् ?
उत्तर.. पक्षाः
(च) ‘पिच्छानाम्’ इति पदस्य विशेषणपदं पाठात् चित्वा लिखत ।
उत्तर..चारुवर्तुलचन्द्रिकाशोभितानाम्
(छ) ‘विचित्रा खलु दैवगतिः।’ अत्र विशेष्यपदं किम् अस्ति ?
उत्तर… दैवगतिः
- अधोलिखितपदानां समुचितं पर्यायपदं पाठात् चित्वा लिखत-
- (क) असत्यम्
- (ख) शरीरम्
- (ग) गृहीत्वा
- (घ) प्रातः कालः
- (ङ) प्रसीदन्ति
उत्तर…
- (क) असत्यम्……….. अनृतं
- (ख) शरीरम्………… गात्रम्
- (ग) गृहीत्वा…………… अधिगृह्य
- (घ) प्रातः कालः ………… प्रभतवेला
- (ङ) प्रसीदन्ति……. हृष्यन्ति
- अत्र उदाहरणम् अनुसृत्य रिक्तस्थानानि पूरयत-
यथा (क) राजहंसी राजहंसं कथयति यत् काकस्य कर्म अपि कृष्णम्।
(ख) काकः………. कथयति यत् यदि सः (काकः) कृष्णवर्णः तर्हि श्रीरामस्य वर्णः कीदृशः ?
(ग) राजहंसः ……….कथयति यत् एतत् कार्यं तु कुक्कुटोऽपि करोति।
(घ) बकः ………कथयति यत् तस्य किं महत्त्वम् ?
(ङ) मयूरः ……….कथयति यत् तस्य ध्यानावस्थां को न जानाति ?
(च) कोकिलः ………कथयति यत् अलम् ‘अतिविकत्थनेन’।
(छ) काकः ……….कथयति यत् सः एव करुणापरः पक्षिसम्म्राट् ।
उत्तर….
(ख) काकः…राजहंसींम् ……. कथयति यत् यदि सः (काकः) कृष्णवर्णः तर्हि श्रीरामस्य वर्णः कीदृशः ?
(ग) राजहंसः …काकम् …….कथयति यत् एतत् कार्यं तु कुक्कुटोऽपि करोति।
(घ) बकः ……राजहंसम् …कथयति यत् तस्य किं महत्त्वम् ?
(ङ) मयूरः …बकम् …….कथयति यत् तस्य ध्यानावस्थां को न जानाति ?
(च) कोकिलः …मयूरम् ……कथयति यत् अलम् ‘अतिविकत्थनेन’।
(छ) काकः … कोकिलम् …….कथयति यत् सः एव करुणापरः पक्षिसम्म्राट् ।
- अधोलिखितेषु वाक्येषु समुचितं पदं लिखत-
यथा (क) राजहंसः काकस्य ध्वनिं श्रुत्वा व्याकुलः भवति।
(ख) काकः …….कथनं श्रुत्वा तु कुद्धः भवति परं …….. वचनं श्रुत्वा विहसति ।
(ग) राजहंसी ……वचनं श्रुत्वा ते ‘वाचाल’ इति कथयति।
(घ) मयूरः ………..वचांसि श्रुत्वा प्रविशति ।
(ङ) कोकिलः ……..वाचांसि श्रुत्वा प्रविशति ।
(च) अन्ते ………….प्रविशति ।
उत्तर…
(ख) काकः …राजहंस्याः ….कथनं श्रुत्वा तु कुद्धः भवति परं ……राजहंसस्य .. वचनं श्रुत्वा विहसति ।
(ग) राजहंसी …काकस्य …वचनं श्रुत्वा ते ‘वाचाल’ इति कथयति।
(घ) मयूरः …बकस्य ……..वचांसि श्रुत्वा प्रविशति ।
(ङ) कोकिलः …मयूरस्य …..वाचांसि श्रुत्वा प्रविशति ।
(च) अन्ते …प्रकृतिमाता ……….प्रविशति ।
- पाठगतश्लोकानां भावस्पष्टीकरणम् उचितपदैः कुरुत-
- (क) यदि……चञ्चुदेशे माणिक्यरत्नम् अपि भवेत् तथापि सः…….। न मन्यते अपितु…….. एव।एवमेव यदि…….. पक्षाः मणिभिः ग्रथिताः भवेयुः तथापि सः………. एव न…….।
- (ख) हंसः श्वेतवर्णः बकस्य अपि च वर्णः ………एव। अतः बकहंसयोः वर्णदृष्ट्या कोऽपि न भेदः परं………..एव विवेकशीलः मन्यते न तु…………।
- (ग) काकस्य वर्णः कृष्णः …….अपि वर्णः ……..। एतयोः भेदः तु ………एव ज्ञायते यत् काकः …….पिकः च पिकः अस्ति।
उत्तर…
- (क) यदि…काकस्य …चञ्चुदेशे माणिक्यरत्नम् अपि भवेत् तथापि सः…हंसः …. न मन्यते अपितु……काकः .. एव।एवमेव यदि…काकस्य ….. पक्षाः मणिभिः ग्रथिताः भवेयुः तथापि सः…काकः ……. एव न….हंसः ..।
- (ख) हंसः श्वेतवर्णः बकस्य अपि च वर्णः …श्वेतः ……एव। अतः बकहंसयोः वर्णदृष्ट्या कोऽपि न भेदः परं…हंसः ……..एव विवेकशीलः मन्यते न तु……बकः ……।
- (ग) काकस्य वर्णः कृष्णः पिकस्य …….अपि वर्णः ……कृष्णः ..। एतयोः भेदः तु ……वसन्तसमये …एव ज्ञायते यत् काकः …काकः ….पिकः च पिकः अस्ति।
9..निम्नलिखितकधनेषु स्थूलानि सर्वनामपदानि ‘कस्मै प्रयुक्तानि’ इति लिखत –
कथनानि……………………… कस्मै प्रयुक्तम् सर्वनामपदम्
यथा- सर्वधा जागरूकः अहम् ।…………….काकाय
- (क) सरस्तीरे विहरति मयि। …………….राजहंसाय..।
- (ख) कथं माम् अधिक्षिपसि ?……………..।
- (ग) अहम् एव वृष्टेः अभिनन्दनं करोमि ।………….
- (घ) मम नृत्यं तु प्रकृतेः आराधना। ………….।
- (ङ) अहं पञ्चमस्वरेण गायामि।……………..
- (च) अहमेव सर्वशिरोमणिः ।……………….
- (छ) सर्वैः एव मे शोभा। ……………….
- (ज) अहमेव नीरक्षीरविवेकी। ………….
उत्तर…
- (क) सरस्तीरे विहरति मयि। …………….राजहंसाय..।
- (ख) कथं माम् अधिक्षिपसि ?……………..।बकाय।
- (ग) अहम् एव वृष्टेः अभिनन्दनं करोमि ।………….बकाय
- (घ) मम नृत्यं तु प्रकृतेः आराधना। ………….। मयूराय
- (ङ) अहं पञ्चमस्वरेण गायामि।…………….. कोकिलायै
- (च) अहमेव सर्वशिरोमणिः ।………………. बकाय
- (छ) सर्वैः एव मे शोभा। …………………… प्रकृत्यै
- (ज) अहमेव नीरक्षीरविवेकी। ……………. राजहंसाय
10..केन कथितानि एतानि कथनानि ?
कथनानि ………………………………….वक्ता
- (क) अहं तु अतीव कर्तव्यपरायणः ।………………..
- (ख) नीरक्षीरविवेके तु हंसो हंसः बको वकः । ………..
- (ग) दुग्धधवलाः मे पक्षाः । …………….
- (घ) अहमेव सर्वशिरोमणिः ।…………..
- (ङ) सर्वेषामेव महत्त्वं विद्यते यथासमयम्।……….
उत्तर…
कथनानि ………………………………………….वक्ता
- (क) अहं तु अतीव कर्तव्यपरायणः ।………………..काकः
- (ख) नीरक्षीरविवेके तु हंसो हंसः बको वकः । ……….. राजहंसः
- (ग) दुग्धधवलाः मे पक्षाः । ……………. बकः
- (घ) अहमेव सर्वशिरोमणिः ।…………..बकः
- (ङ) सर्वेषामेव महत्त्वं विद्यते यथासमयम्।……….प्रकृतिमाता
11..अधोलिखितवाक्येषु समस्तपदैः रिक्तस्थानानि पूरयत-
- (क) राजहंसः हंसी च (सरसः तीरे)…….. विहरतः
- (ख) तत्र (काकस्य ध्वनिः)……अपि श्रूयते।
- (ग) काकः (क्रोधेन सहितम्)…….प्रविशति ।
- (घ) काकः आत्मानं (सत्यं प्रियं यस्य तम्) …….कथयति ।
- (ङ) काकस्य चञ्चुदेशे (माणिक्यानि च रत्नानि च तेषां समाहारः)…….. भवेत् तथापि सः राजहंसः न भवति।
- (च) बकः (स्थिता प्रज्ञा यस्य सः) ……इव जले बहुकालपर्यन्तं तिष्ठति ।
- (छ) (समयम् अनतिक्रम्य) ………सर्वेषां महत्त्वं विद्यते ।
उत्तर….
- (क) राजहंसः हंसी च सरसतीरे विहरतः
- (ख) तत्र काकध्वनिः अपि श्रूयते।
- (ग) काकः सक्रोधम् प्रविशति ।
- (घ) काकः आत्मानं सत्यंप्रियं . कथयति ।
- (ङ) काकस्य चञ्चुदेशे माणिक्यरत्नं भवेत् तथापि सः राजहंसः न भवति।
- (च) बकः स्थितप्रज्ञः इव जले बहुकालपर्यन्तं तिष्ठति ।
- (छ) यथसमयम् सर्वेषां महत्त्वं विद्यते ।
12…अधोलिखितवाक्येषु स्थूलाक्षरपदानां प्रसङ्गानुसारम् उचितम् अर्थ चित्वा लिखत
- (क) मेध्यम् अमेध्यं सर्वमेव भक्षयति।
(i) मेधाविनम् (ii) अभक्षणीयम् (iii) विशुद्धम्
- (ख) अस्माकम् ऐक्यं तु जगत्प्रसिद्धम्।
(i) एकता (ii) भिन्नता (iii) क्रूरता
- (ग) काकस्य गात्रं यदि काञ्चनस्य।
(i) गोत्रम् (ii) कुटुम्बम् (iii) शरीरम्
- (घ) आपत्काले सरांसि त्यक्त्वा दूरं व्रजसि।
(i) वदसि (ii) भजसि (iii) गच्छसि
- (ङ) बकः मीनान् छलेन अधिगृह्य क्रूरतया भक्षयति।
(i) गृहीत्वा (ii) खादित्वा (iii) त्यक्त्वा
उत्तर…(क)विशुद्धम् , (ख) एकता , (ग) शरीरम् , (घ) गच्छसि,(ङ) गृहीत्वा
………………………………..
Nasti Tyag Samam Sukham Class 10
Vangamayam Tapah Sanskrit Class 10
संस्कृत में वाच्य परिवर्तन के नियम