वेदान्त के अनुसार अध्यारोप क्या है?..अद्वैत वेदान्त के अनुसार जीव और ब्रह्म एक हैं , उनका ऐक्य प्रतिपादन ही इस ग्रन्थ का विषय है।
ब्रह्म के यथार्थ स्वरूप का ज्ञान कराना अद्वैत वेदान्त का लक्ष्य है,परंतु भ्रम वश हम इसमें भेद समझ लेते हैं।
अध्यारोप क्या है
“जो वस्तु जिस रूप में नहीं है, उस रूप का उस वस्तु में आरोप अर्थात भ्रम होने को अध्यारोप कहते हैं।
”दूसरे शब्दों में यथार्थ में अयथार्थ का आरोप, अध्यारोप है। इस अध्यारोप को अध्यास भी कहते हैं।
सदानंद योगीन्द्र जी ने लिखा है..“असर्पभूतायां रज्जौ सर्पारोपवत् वस्तुन्यवस्त्वारोपोध्यारोपः “
अनुवाद.. सांप की सत्ता से रहित रस्सी में सर्प का आभास होने के समान
किसी वस्तु( ब्रह्म या आत्मा ) में उसी वस्तु के समान अन्य वस्तु के आरोप को अध्यारोप कहते हैं।
अर्थात किसी वस्तु में, उसी के समान किसी अन्य वस्तु का ( जो उपस्थित नहीं है ), भ्रम वश आरोप करना।
जैसे.. अल्प प्रकाश में,रस्सी में सर्प आरोप
अध्यारोप क्या है इसे इस प्रकार स्पष्ट किया गया है..
जैसे हम कम प्रकाश के कारण , पड़ी हुई रस्सी को देख कर भ्रम के कारण सर्प समझ लेते हैं।
ध्यान देने योग्य बात यह है कि रस्सी को देख कर सर्प का ही भ्रम क्यों हुआ, अन्य वस्तु का क्यों नहीं?क्योंकि हमने रस्सी के समान आकृति वाले सर्प को पूर्व में देखा है । हमें सर्प की आकृति का पूर्व ज्ञान है।अतः जब प्रकाश की कमी में रस्सी स्पष्ट रूप से नहीं दिखी तो हमनें पूर्व ज्ञात सर्प की आकृति को रस्सी में आरोपित कर उसे सर्प मान लिया।
यहां पर रस्सी वस्तु है, क्योंकि वह वहां पर विद्यमान है, सर्प अवस्तु है क्योंकि,वह भ्रम वाले स्थान पर विद्यमान नहीं है, अपितु प्रतीत हुआ है ,सर्प की आकृति पहले से ही मस्तिष्क में उपस्थित है।
यह अध्यारोप केवल आभास होता है तथा वस्तु में अवस्तु का आभास होता है।इसी प्रकार सीपी में भ्रम वश चांदी का आभास होने लगता है।
इस प्रकार जहां कहीं भ्रम होता है, अर्थात किसी वस्तु के वास्तविक स्वरूप को अज्ञानता के कारण न समझ कर किसी अन्य वस्तु के स्वरूप को जो उसी के जैसा हो मान लेना ही अध्यारोप होता है।
वेदान्त के अनुसार अध्यारोप
इसी प्रकार ब्रह्म और जगत के संबन्ध में भी है..
सत् चित् आनन्द आद्वितीय ब्रह्म ही वस्तु है, तथा अज्ञान से उत्पन्न समस्त जड़ पदार्थ अवस्तु है।
वस्तु सच्चिदानन्दानन्ताद्व्यं ब्रह्म।अज्ञानादिसकलजडसमूहोऽवस्तु।
अर्थात इस संसार में ब्रह्म ही सत्य है, बाकी सब असत्य या मिथ्या है।” ब्रह्म सत्यं जगन्मिथ्या “
अतः उस यथार्थ ब्रह्म के स्वरूप में अज्ञान वश अयथार्थ जड़ पदार्थों का आरोप ही अध्यारोप है।
ब्रह्म के स्वरूप का अज्ञान के कारण इस चैतन्य ब्रह्म में अचेतन अज्ञान या उसके कार्यों का आरोप होता है।
अल्प प्रकाश के कारण जिस प्रकार हम रस्सी को सर्प मान लेते हैं, उसी प्रकार हम अज्ञानता या अल्प ज्ञान के कारण ब्रह्म, जो भौतिक नहीं है, उसे भौतिक मान लेते हैं, तथा संसार की प्रतीति भी भ्रमात्मक होने लगती है। यही अध्यारोप है।