जीवनपथ में मार्गदर्शक ‘सुभाषित’
Patheyam….NCERT Solution For द्वितीयः पाठः पाथेयम… सरल हिन्दी अनुवाद तथा अभ्यास कार्य समाधान
पाठ का संक्षिप्त परिचय – कवियों के सुन्दर वचन सुभाषित कहलाते हैं। जीवन के पथ में पाथेय के समान सुभाषित मानव के लिए अत्यन्त उपकारक होता है। विषमताओं से भरे इस संसार में जब कभी मानव विपत्ति में ग्रस्त होता है तथा किंकर्तव्यविमूढ हो जाता है तब सुभाषित ही उसको सन्मार्ग दिखाते हैं। इस पाठ में ऐसे ही कुछ सुभाषित संकलित हैं जो कतिपय कवियों की विविध रचनाओं से लिये गये हैं।
विवेकः –अये विशाल ! नमस्ते ! आगच्छ, उपविश।
विवेक — अरे विशाल ! नमस्ते! आओ, बैठो।
विशालः–नमस्ते ! विवेक ! उपविशामि परन्तु त्वं तु कुत्रापि गन्तुम् उद्यतः इव प्रतीयसे ।
विशाल– नमस्ते विवेक! बैठ रहा हूँ परन्तु तुम तो कहीं जाने के लिये तैयार हो, ऐसा लग रहा है।
विवेकः–आम् ! मम मातुलः युद्धक्षेत्रात् प्रतिनिवृत्तः । अहं तं द्रष्टुं गच्छामि ।
विवेक — हाँ! मेरे मामा युद्ध क्षेत्र से वापस आये हैं। मैं उनको देखने जा रहा हूँ।
विशालः–अहो ! धन्यः तव मातुलः यः एवं देशसेवायां संलग्नः । अत्र स्यूते किमेतत् नयसि ?
विशाल — अहो! तुम्हारे मामा धन्य हैं जो इस प्रकार देश की सेवा में लगे हुए हैं। इस थैले में यह क्या ले जा रहे हो?
विवेकः–स्यूते पाथेयं अस्ति ।
विवेक — थैले में पाथेय है।
विशालः–पाथेयं किं भवति ?
विशाल — पाथेय क्या होता है?
विवेकः–(विहस्य) शृणु, पथि हितकरं पाथेयं भवति । अतः स्यूते कानिचित् फलानि अथ च, ज्ञानवर्धनाय द्वित्राणि पुस्तकानि अपि सन्ति ।
विवेक — (हँसकर)सुनो..पथ (मार्ग)में हितकारी पाथेय होता है। इसलिये इस थैले में कुछ फल और ज्ञान बढ़ाने के लिये दो तीन पुस्तकें भी हैं।
विशालः–इदानीं ज्ञातम्। अतएव अस्माकं ‘मणिका’ पाठ्यपुस्तके ‘पाथेयम्’ इति पाठे सुभाषितानि सन्ति ।
विशाल — अब समझा। इसीलिये हमारी पाठ्य पुस्तक मणिका में पाथेयं इस पाठ में सुभाषित दिये गये हैं।
विवेकः–ननु सुभाषितानि एव अस्माकं जीवने मार्गदर्शनं कुर्वन्ति ।
विवेक –निश्चय ही सुभाषित हमारे जीवन में मार्ग दर्शन करते हैं।
विशालः–शुभाय भवतु ते पाथेयं ।
विशाल– तुम्हारा पाथेय शुभकारी हो।
श्लोक…
पृथिव्यां त्रीणि रत्नानि जलमन्नं सुभाषितम् ।
मूढैःपाषाणखण्डेषु रत्नसंज्ञा विधीयते ॥ 1 ॥
अन्वय – पृथिव्याम् त्रीणि रत्नानि (सन्ति) जलम्, अन्नम्, सुभाषितम् । मूढैःपाषाण-खण्डेषु रत्न-संज्ञा विधीयते ।
शब्दार्थ – पृथिव्याम् – पृथिवी पर। त्रीणि= तीन। सुभाषितम् =-सुन्दर वचन, सूक्तियाँ ,मूढैः -=मूखों के द्वारा, पाषाण-खण्डेषु = पत्थरों के टुकड़ों में, रत्न-संज्ञा=रत्ल का नाम, विधीयते = किया जाता है।
अर्थ- पृथिवी पर तीन रत्न हैं जल, अन्न और सुभाषित (सुन्दर वचन)। मूर्खों के द्वारा पत्थर के टुकड़ों में रत्न का नाम (रत्नों की पहचान) किया जाता है अर्थात् मूर्ख पत्थर के टुकड़ों को रत्न नाम से पुकारते हैं।
संधि कार्य…
प्रकृति प्रत्यय..
- सुभाषितम्= सु +भाष् + क्त
- रतः = रम् +क्त
पद परिचय…
- पृथिव्याम् = पृथिवी शब्द, स्त्रीलिङ्ग, सप्तमी विभक्ति, एक वचन
- त्रीणि= संख्यावचाक नपुंसक लिङ्ग, प्रथमा विभक्ति बहु वचन
- रत्नानि= रत्न शब्द,नपुंसक लिङ्ग, प्रथमा विभक्ति बहु वचन
- मूढैः = मूढ शब्द , पुलिङ्ग ,तृतीया विभक्ति , बहुवचन
- विधीयते = वि +धा धातु , लट् लकार प्रथम पुरुष, एक वचन
कल्पद्रुमः कल्पितमेव सूते,
सा कामधुक् कामितमेव दोग्धि।
चिन्तामणिश्चिन्तितमेव दत्ते,
सतां हि सङ्गः सकलं प्रसूते।।2।।
अन्वय..कल्पद्रुमः कल्पितम् एव सूते, सा कामधुक् कामितम् एव दोग्धि, चिन्तामणिः चिन्तितम् एव दत्ते। सतां सङ्गः हि सकलं प्रसूते ।
शब्दार्थ..कल्पद्रुमः= कल्पवृक्ष (पुराणों में वर्णित एक इच्छापूर्ति करने वाला वृक्ष),कल्पितमेव= माँगने पर ही ,दोग्धि = दूध देती है, चिन्तितमेव = सोचने या मांगने पर ही , दत्ते =देती है ,सतां = सज्जनों की या महान और धार्मिक व्यक्तियों की, सकलं =सब कुछ , प्रसूते =प्रदान कर देती है।
हिन्दी अनुवाद.. कल्पवृक्ष माँगने पर ही मनचाही वस्तु देता है। कामधेनु गाय माँगने पर ही दूध देती है (इच्छा पूर्ति करती है ) इसी प्रकार चिन्तामणि भी माँगने पर ही (कोई भी वस्तु )देता है, परन्तु सज्जनों की या महान और धार्मिक लोगों की संगति में बिना माँगे ही सब कुछ मिल जाता है।
संधि कार्य…
- चिन्तामणिश्चिन्तितमेव=चिन्तामणि: +चिन्तितमेव( विसर्ग संधि )
- सङ्गः सकलं= संगस्सकलं ( विसर्ग संधि)
- कामितमेव= कामितम् + एव ( संयोग)
पद परिचय..
- दोग्धि =दुह् धातु, लट् लकार प्रथम पुरुष, एक वचन
- प्रसूते = प्र उपसर्ग , सू धातु , लट् लकार, प्रथम पुरुष एक वचन, आत्मनेपद
गच्छन् पिपीलिको याति योजनानां शतान्यपि।
अगच्छन्वैनतेयोऽपि पदमेकं न गच्छति ॥ ३ ॥
अन्वय– – पिपीलिकः गच्छन् योजनानाम् शतानि अपि याति, वैनतेयः अगच्छन् एकम् पदम् न गच्छति ॥
शब्दार्थ-पिपीलिकः = चींटा, गच्छन्= चलता हुआ, योजनानाम् शतानि – सौ योजना (1योजन चार कोस, आठ मील, 13 किलोमीटर) याति-चला जाता है। वैनतेयः – विनता-पुत्र गरुड़। अगच्छन्- न चलता हुआ। एकम् – एक। पदम्-कदम , न गच्छति- नहीं चलता है।
अर्थ-चींटा चलता हुआ सौ योजन चला जाता है, न चलता हुआ गरुड़ एक कदम (भी) नहीं चल पाता है।अर्थात.. अत्यन्त धीमी गति से चलने वाला चींटा लगातार चलते हुए सौ योजन तक की दूरी तय कर लेता है किन्तु बहुत तेज गति से उड़ने वाला गरुड़ यदि नहीं चलता है तो वह एक कदम भी आगे नहीं बढ़ सकता। आगे बढ़ने के लिये व्यक्ति को सतत परिश्रम करना चाहिये।
संधि कार्य..
- पिपीलिको याति= पिपीलिक:+ याति(विसर्ग संधि )
- शतान्यपि= शतानि +अपि (यण संधि )
- वैनतेयोऽपि= वैनतेयः +अपि (विसर्ग संधि )
प्रकृति प्रत्यय..=गच्छन्= गम् +शतृ
पद परिचय ..
- शतानि =शत् शब्द, नपुंसक लिङ्ग प्रथमा विभक्ति बहु वचन
- योजनानाम्= योजन शब्द,नपुंसक लिङ्ग षष्ठी विभक्ति बहु वचन
- याति =या धातु लट् लकार प्रथम पुरुष एक वचन
Patheyam
पाथेयम
शोको नाशयते धैर्यं, शोको नाशयते श्रुतम् ।
शोको नाशयते सर्वं, नास्ति शोकसमो रिपुः ॥ 4 ॥
अन्वय – शोकः धैर्यम् नाशयते, शोकः श्रुतम् नाशयते, शोकः सर्वम् नाशयते, शोक-समः रिपुः न अस्ति।
शब्दार्थ- शोकः= चिन्ता या दुख , धैर्यम्= धीरज को , नाशयते= नष्ट कर देती है, श्रुतम् = शास्त्र-ज्ञान को, शोक-समः= -चिन्ता के समान रिपुः= शत्रु
अर्थ-चिन्ता धैर्य को नष्ट कर देती है। चिन्ता शास्त्रों के ज्ञान को नष्ट कर देती है।चिन्ता सब कुछ नष्ट कर देती है। चिन्ता के समान दूसरा कोई शत्रु नहीं है, अर्थात् चिन्ता सबसे खतरनाक शत्रु है।
संधि कार्य..
- शोको नाशयते= शोकः + नाशयते(विसर्ग संधि)
- शोकसमो रिपुः = शोकसम:+ रिपुः(विसर्ग संधि)
प्रकृति प्रत्यय..श्रुतम्=श्रु +क्त
पद परिचय..
- शोकः = शोक शब्द, पुलिङ्ग , प्रथमा विभक्ति, एक वचन
- नाशयते= नश् धातु , लट् लकार प्रथम पुरुष एक वचन
गौरवं प्राप्यते दानान्न तु वित्तस्य संचयात्।
स्थितिरुच्चैः पयोदानां पयोधीनामधः स्थितिः ॥ 5 ॥
अन्वय— दानात् गौरवं प्राप्यते तु वित्तस्य संचयात् न। पयोदानाम् उच्चैः स्थितिः (अस्ति), पयोधीनाम् अधः स्थितिः (अस्ति)।
शब्दार्थ-दानात् = दान से, गौरवम्= महत्व या प्रसिद्धि , प्राप्यते= प्राप्त होती है , वित्तस्य=धन के, संचयात्=संग्रह से, पयोदानाम्=जल को देने वाले बादलों की,स्थितिः = स्थान, उच्चैः= ऊँचा है, पयोधीनाम् =जलों को धारण करने वाले समुद्रों का, अधः =नीचा, निम्न
अर्थ- दान देने से महिमा (ऊँचा स्थान) प्राप्त होती है, धन के संग्रह से नहीं। वर्षा के रूप में जलों का दान करने वाले बादलों का स्थान ऊँचा है, जलों को लेने या धारण करने वाले समुद्रों का स्थान नीचे है।
संशि कार्य
- सञ्चयात्= सम् +चयात् (परसवर्ण संधि )
- स्थितिरुच्चैः = स्थितिः + उच्चैः (विसर्ग सन्धि) ।
- पयोधीनामधः = पयोधीनाम् + अधः (संयोग)
पद परिचय..
- दानात् =दान शब्द, पुलिङ्ग, पञ्चमी विभक्ति, एक वचन
- पयोदानाम्=पयोद शब्द,पुल्लिङ्ग ,षष्ठी विभक्ति, बहुवचन ।
- पयोधीनाम्=पयोधि शब्द, पुल्लिङ्ग ,षष्ठी विभक्ति, बहुवचन, ।
सद्भिस्तु लीलया प्रोक्तं शिलालिखितमक्षरम् ।
असद्भिः शपथेनापि जले लिखितमक्षरम् ॥6।।
अन्वय – सद्भिः लीलया प्रोक्तम् अक्षरम् शिला-लिखितम् (अस्ति), तु असद्भिः शपथेन (प्रोक्तम्) अपि अक्षरम् जले लिखितम् (अस्ति)।
शब्दार्थ- सद्भिः=सज्जनों के द्वारा, लीलया= सहज भाव से, प्रोक्तम् = कहा गया, अक्षरम् = वचन, शिला-लिखितम् =शिला पर लिखा गया, तु=किन्तु , असद्भिः= असज्जनों (दुर्जनों) द्वारा, प्रोक्तं =कहा गया ,शपथेन सौगन्ध पूर्वक, जले लिखितम् = पानी पर लिखा गया।
अर्थ- सज्जनों के द्वारा सहज भाव से कही गई बात चट्टान पर लिखे गये अक्षर (के समान) होती है, किन्तु दुर्जनों द्वारा शपथ (सौगन्ध) पूर्वक भी कहा गया वचन पानी पर लिखे हुए अक्षर (के समान) होता है।
सन्धि-विच्छेद…
- सद्भिस्तु= सद्भिः + तु (विसर्ग सन्धि)।
- शपथेनापि =शपथेन + अपि (दीर्घ सन्धि) ।
- प्रोक्तम= प्र + उक्तम् (गुण सन्धि)।
- असद्भिः= असत् + भिः (जश् सन्धि) ।
- शिलालिखितमक्षरम् = शिलालिखितम् + अक्षरम् (संयोग )
प्रकृति-प्रत्यय
- प्रोक्तम् =प्र + वच् + क्त ।
- लिखितम्= लिख् + क्त ।
पद-परिचय….
- सद्भिः=सत् शब्द, पुल्लिङ्ग ,तृतीया विभक्ति, बहुवचन,।
- लीलया=लीला शब्द, स्त्रीलिङ्ग ,तृतीया विभक्ति, एकवचन,।
- वित्तस्य=वित्त शब्द, नपुंसकलिङ्ग ,षष्ठी विभक्ति, एकवचन।
भवन्ति नम्नास्तरवः फलोद्रमैः
नवाम्बुभिर्भूरिविलम्बिनो घनाः ।
अनुद्धताः सत्पुरुषाः समृद्धिभिः
स्वभाव एवैष परोपकारिणाम् ॥ 7 ॥
अन्वय – तरवः फल-उद्गमैः नम्राः भवन्ति। घनाः नव-अम्बुभिः भूरि-विलम्बिनः (भवन्ति), सत्पुरुषाः समृद्धिभिः अनुद्धताः (भवन्ति), परोपकारिणाम् एषः एव स्वभावः (अस्ति)।
शब्दार्थ-तरवः = वृक्ष, फल-उद्गमैः =फलों के आने से, नम्राः भवन्ति=झुक जाते हैं, घनाः= बादल, नव-अम्बुभिः =नये जलों से, भूरि-विलम्बिनः =धरती की ओर अत्यधिक झुके या लटके हुए, सत्पुरुषाः =सज्जन लोग ,समृद्धिभिः =सम्पत्तियों से युक्त होने पर, अनुद्धताः = नम्र, गर्वरहित परोपकारिणाम् = परोपकारियों का, एषः एव=यही।
अर्थ-वृक्ष नये फल आने पर झुक जाते हैं। (वर्षा ऋतु के) बादल नये जलों से युक्त होने पर धरती की ओर बहुत नीचे लटक जाते हैं। सज्जन सम्पत्तियाँ प्राप्त होने पर नम्र स्वभाव के बन जाते हैं। दूसरों के प्रति उपकार (भलाई) करने वालों का यही स्वभाव होता है।
सन्धि कार्य…
- नम्रास्तरवः= नम्राः + तरवः (विसर्ग सन्धि)
- फलोद्गमैः=फल + उद्गमैः (गुण सन्धि)
- नवाम्बुभि=नव + अम्बुभिः (दीर्घ सन्धि)
- भूरिविलम्बिनो घनाः = भूरिविलम्बिनः + घनाः( विसर्ग सन्धि)
- एवैषः= एव + एषः (वृद्धि सन्धि) ।
प्रकृति-प्रत्यय….
- विलम्बिनः= वि +लम्ब +इन्
- अनुद्धताः=अन् +उत् +हन् +क्त
- परोपकारिणाम्= परोपकार + णिनि
पद-परिचय…..
- अम्बुभिः=अम्बु शब्द, ,नपुंसकलिङ्ग ,तृतीया विभक्ति, बहुवचन।
- तरवः=तरु शब्द, पुल्लिङ्ग ,प्रथमा विभक्ति, बहुवचन ।
- समृद्धिभिः=समृद्धि शब्द, स्त्रीलिङ्ग ,तृतीया विभक्ति, बहुवचन, ।
- एषः=एतत् सर्वनाम शब्द ,पुल्लिङ्ग, प्रथमा विभक्ति, एकवचन,
काष्ठादग्निर्जायते मध्यमानाद् भूमिस्तोयं खन्यमाना ददाति ।
सोत्साहानां नास्त्यसाध्यं नराणां मार्गारब्धाः सर्वयत्नाः फलन्ति ॥ 8 ॥
अन्वय— मथ्यमानात् काष्ठात् अग्निः जायते। खन्यमाना भूमिः तोयं ददाति। सोत्साहानाम् नराणाम् (कृते किमपि )असाध्यम् न अस्ति। मार्ग-आरब्धाः सर्व-यत्नाः फलन्ति।
शब्दार्थ – मथ्यमानात् = रगड़ी जाती हुई, काष्ठात्= लकड़ी से , जायते = पैदा होती है, खन्यमाना= खोदी जाती हुई, तोयम् =जल, ददाति=प्रदान करती है, सोत्साहानाम् = उत्साह युक्त (मनुष्यों) के लिए, असाध्यम्= असम्भव, नहीं है, मार्ग-आरब्धाः = उचित दिशा में आरम्भ किये गये, सर्व-यत्नाः =सारे प्रयास , फलन्ति=फलीभूत होती हैं।
अर्थ-रगड़ी जाती हुई लकड़ी से आग पैदा हो जाती है। खोदी जाती हुई भूमि जल प्रदान कर देती है। साहस से युक्त मनुष्यों के लिए ऐसा कुछ नहीं है जो सिद्ध न हो सके। उचित दिशा में आरम्भ किये गये सब प्रयत्न सफल होते हैं।
सन्धि-कार्य…
- काष्ठादग्निर्जायते = काष्ठात् + अग्निः + जायते (जश्त्व सन्धि, विसर्ग सधि) ।
- भूमिस्तोयम् = भूमिः + तोयम् (विसर्ग सन्धि) ।
- नास्त्यसाध्यम्= न + अस्ति + असाध्यम् (दीर्घ स्वर सन्धि, यण् सन्धि)।
- सोत्साहानाम् = स + उत्साहानाम् (गुण सन्धि) ।
- मार्गारब्धाः=मार्ग +आरब्धाः (दीर्घ स्वर संधि )
प्रकृति-प्रत्यय…..
- खन्यमाना= खन् + शानच्
- मध्यमानाद् – मथ् + शानच्
- आरब्धाः =आ +रभ् +क्त
पद-परिचय ….
- अग्निः=अग्नि शब्द,पुल्लिङ्ग ,प्रथमा विभक्ति, एकवचन।
- जायते=जन् धातु, लट् लकार, प्रथमपुरुष, एकवचन,
- ददाति = दा धातु, लट् लकार, प्रथम पुरुष, एक वचन
- सोत्साहानाम् – सोत्साह शब्द, पुल्लिङ्ग ,षष्ठी विभक्ति बहुवचन, ।
- सर्वयत्नाः=सर्वयत्न शब्द, प्रथमा विभक्ति, बहुवचन, पुल्लिङ्ग ।
- नराणाम्=नर शब्द, पुल्लिङ्ग ,षष्ठी विभक्ति, बहुवचन, ।

वयमिह परितुष्टा वल्कलैस्त्वं दुकूलैः
सम इह परितोषो निर्विशेषो विशेषः ।
स तु भवति दरिद्रो यस्य तृष्णा विशाला
मनसि च परितुष्टे कोऽर्थवान् को दरिद्रः ।। 9 ।।
अन्वयः – इह वयं वल्कलैः परितुष्टयः, त्वम् (च)दुकूलैः। इह परितोषः, विशेषः निर्विशेषःसमः । यस्य तृष्णा विशाला सः तु दरिद्रः भवति। मनसि च परितुष्टे कः अर्थवान् कः दरिद्रः ॥
शब्दार्थ – इह- इस संसार में, वल्कलैः – वृक्ष की छालों से। दुकूलैः – रेशमीवस्त्रों से। परितुष्टाः – सन्तुष्ट या प्रसन्न ,इह – इस विषय में , परितोषः= सन्तोष या प्रसन्नता, समः – समान, विशेषः = भेदभाव, निर्विशेषः – विशेष नहीं है। तृष्णा= इच्छा, विशाला – बहुत बड़ी, दरिद्रः = गरीब, परितुष्टे = संतुष्ट होने पर,मनसि – मन के , अर्थवान् = धनी
अर्थ-इस संसार में हम वृक्ष की छालों से सन्तुष्ट हैं तो तुम रेशमी वस्त्रों से (सन्तुष्ट हो)। इस विषय में सन्तोष एक जैसा है, सामान्य या विशेष का कोई भेद नहीं है।वस्तुतः,जिसकी इच्छा बहुत बड़ी होती है वह ही गरीब है तथा मन के सन्तुष्ट होने पर कौन धनी और कौन गरीब? अर्थात् न कोई धनी होता है तथा न कोई निर्धन।
सन्धि-विच्छेदः
- वल्कलैस्त्वम्=वल्कलैः + त्वम् (विसर्ग सन्धि) ।
- कोऽर्थवान्=क: + अर्थवान् ( विसर्ग सन्धि) ।
- निर्विशेषो विशेषः=निर्विशेषः विशेषः (विसर्ग सन्धि) ।
- सतु=सः + तु (विसर्ग सन्धि) ।
प्रकृति-प्रत्यय ….
- परितुष्टाः –परि + तुष् + क्त ।
- विशाला –विशाल + टाप् ।
- अर्थवान् –अर्थ + मतुप् ।
पद-परिचय …..
- वल्कलैः= वल्कल शब्द, नपुंसकलिङ्ग ,तृतीया विभक्ति, बहुवचन
- दुकूलैः=दुकूल शब्द, नपुंसकलिङ्ग ,तृतीया विभक्ति, बहुवचन
- मनसि =मनस् शब्द, नपुंसकलिङ्ग ,सप्तमी विभक्ति, एकवचन,
ऐश्वर्यस्य विभूषणं सुजनता शौर्यस्य वाक्संयमो
ज्ञानस्योपशमः कुलस्य विनयो वित्तस्य पात्रे व्ययः।
अक्रोधस्तपसः क्षमा बलवतां धर्मस्य निर्व्याजता
सर्वेषामपि सर्वकारणमिदं शीलं परं भूषणम् ॥ 10 ॥
अन्वयः – ऐश्वर्यस्य विभूषणम् सुजनता (अस्ति), शौर्यस्य विभूषणम् वाक्-संयमः (अस्ति), ज्ञानस्य विभूषणम् उपशमः (अस्ति), कुलस्य विभूषणम् विनयः (अस्ति), वित्तस्य विभूषणम् पात्रे व्ययः (अस्ति), तपसः विभूषणम् अक्रोधः (अस्ति), बलवताम् विभूषणम् क्षमा (अस्ति), धर्मस्य विभूषणम् निर्व्याजता (अस्ति), सर्व कारणम् इदं शीलम् सर्वेषाम् अपि परं भूषणम् (अस्ति)।
शब्दार्थ — ऐश्वर्यस्य = वैभव काया संपन्नता , सुजनता=सज्जनता , विभूषणम्= आभूषण, वाक्-संयमः =वाणी का संयम, उपशमः= मन को शान्त रखनाया मन की शान्ति , विनयः = विनय, नम्रता, तपसः =तपस्या का, निर्व्याजता= छल कपट न करना ,शीलम् = सदाचारया अच्छा आचरण
अर्थ- वैभव का आभूषण सज्जनता है। पराक्रम का आभूषण वाणी का संयम है। ज्ञान का आभूषण मन की शान्ति है। कुल का आभूषण विनम्रता है। धन का आभूषण सत्पात्र को दान देना है। तप का आभूषण क्रोध का अभाव है। वलवानों का आभूषण क्षमा है। धर्म का आभूषण छल-कपट रहित होना है। सब का कारण यह सदाचार सभी का सर्वोत्कृष्ट आभूषण है।
सन्धि-विच्छेदः (Disjoin Sandhi)
- ज्ञानस्योपशमः = ज्ञानस्य+ उपशमः (गुण सन्धिः) ।
- अक्रोधस्तपसः = अक्रोधः +तपसः (विसर्ग सन्धिः) ।
- विनयोवित्तस्य = विनयः+ वित्तस्य (विसर्ग सन्धिः) ।
- वाक्संयमः=वाक् + संयमः(संयोग)
- सर्वेषामपि = सर्वेषाम् + अपि (संयोग)
- सर्वकारणमिदम् = सर्वकारणम् + इदम् (संयोग)
प्रकृति-प्रत्यय ….
- सुजनता सुजन + तल् ।
- बलवताम् – बल + मतुप् ।
पद-परिचय ….
- शौर्यस्य=शौर्य शब्द, नपुंसकलिङ्ग ,षष्ठी विभक्ति, एकवचन,।
- सर्वेषाम्=सर्व शब्द, पुल्लिङ्ग ,षष्ठी विभक्ति, बहुवचन
- तपसः=तपस् शब्द, नपुंसकलिङ्ग , षष्ठी विभक्ति, एकवचन,

अभ्यास कार्य….
1..संस्कृतभाषया एकपदेन उत्तराणि लिखत –
(क) पृथिव्यां कति रत्नानि ?
उत्तर.. त्रीणि
(ख) केषाम् उद्गमैः तरवः नम्राः भवन्ति ?
उत्तर.. फलानाम्
(ग) के समृद्धिभिः अपि अनुद्धताः भवन्ति ?
उत्तर.. सत्पुरुषाः
(घ) परं भूषणं किम् ?
उत्तर.. शीलं
(ङ) पयोदाः कैः भूरिविलम्बिनः जायन्ते ?
उत्तर.. नवाम्बुभिः
(च) कः कल्पितमेव जनयति ?
उत्तर…कल्पवृक्षः
(छ) कस्मिन् परितुष्टे दरिद्र धनिकयोः भेदः नश्यति ?
उत्तर… मनसि
2..पूर्णवाक्येन संस्कृतभाषया उत्तराणि लिखत –
- (क) गौरवं कथं प्राप्यते ?
- (ख) परोपकारिणां स्वभावः कीदृशः वर्तते ?
- (ग) शोकः किं किं नाशयति ?
- (घ) दरिद्रः कः भवति ?
- (ङ)कस्य किं विभूषणम् ? त्रीणि उदाहरणानि लिखत ।
- (च) कः सर्वं प्रसूते ?
- (छ)कीदृशी भूमिः तोयं ददाति ?
उत्तर…
- (क) गौरवं दानात् प्राप्यते।
- (ख) परोपकारिणां स्वभावः नम्रः वर्तते।
- (ग) शोकः धैर्यम् , श्रुतम् , सर्वम् च नाशयति।
- (घ) यस्य तृष्णा विशाला भवति , सः दरिद्रः भवति।
- (ङ)कस्य किं विभूषणम् इत्यस्य त्रीणि उदाहरणानि सन्ति….1..ऐश्वर्यस्य विभूषणं सुजनता अस्ति। 2..बलवताम् विभूषणम् क्षमा अस्ति।3..तपसः विभूषणम् अक्रोधः अस्ति।
- (च) सतां सङ्गः हि सर्वं प्रसूते।
- (छ)खन्यमाना भूमिः तोयं ददाति।
3..अधोलिखितवाक्येषु स्थूलाक्षरपदानि आधृत्य प्रश्नान् रचयत –
- (क) मूढैः पाषाणखण्डेषु रत्नसंज्ञा विधीयते ।
- (ख) सद्भिः लीलया प्रोक्तं शिलालिखितमक्षरम् ।
- (ग) मध्यमानात् काष्ठात् अग्निर्जायते ।
- (घ) वैनतेयः अगच्छन् एकं पदं न गच्छति।
- (ङ) ऐश्वर्यस्य विभूषणं सुजनता।
- (च) उत्साहवतां किञ्चिद् असाध्यं नास्ति ।
- (छ) शोकः धैर्यं नाशयति ।’
- (ज) महान् भवितुं सत्सङ्गतिः अपेक्षिता।
उत्तर…
- (क) मूढैः केषु रत्नसंज्ञा विधीयते ।
- (ख) कैः लीलया प्रोक्तं शिलालिखितमक्षरम् ।
- (ग) कथम् काष्ठात् अग्निर्जायते ।
- (घ) कः अगच्छन् एकं पदं न गच्छति।
- (ङ) कस्य विभूषणं सुजनता।
- (च) केषां किञ्चिद् असाध्यं नास्ति ।
- (छ) शोकः कम् नाशयति ।’
- (ज) महान् भवितुं का अपेक्षिता।
4..अधोलिखितप्रश्नान् यथानिर्देशम् उत्तरत –
(क) ‘गच्छन् पिपीलको याति योजनानां शतान्यपि’ अस्मिन् ‘पिपीलकः’ इति कर्तृपदस्य किं क्रियापदं प्रयुक्तम् ?
उत्तर… याति
(ख) ‘नास्ति शोकसमो रिपुः’ अस्मिन् वाक्ये ‘मित्रम्’ इति पदस्य किं विलोमपदं प्रयुक्तम् ?
उत्तर.. रिपुः
(ग) ‘मार्गारब्धाः सर्वयत्नाः फलन्ति’ अस्मिन् वाक्ये किं कर्तृपदं प्रयुक्तम् ?
उत्तर… सर्वयत्नाः
(घ) ‘स तु भवति दरिद्रो यस्य तृष्णा विशाला’ अस्मिन् वाक्ये ‘विशाला’ इति पदस्य किं विशेष्यपदं प्रयुक्तम् ?
उत्तर.. तृष्णा
(ङ) ‘भूमिस्तोयं खन्यमाना ददाति’ अत्र किं विशेषणपदं वर्तते ?
उत्तर.. खन्यमाना
(च) ‘स्थितिरुच्चैः पयोदानां पयोधीनामधः स्थितिः’ अस्मिन् वाक्ये ‘मेघानाम्’ इति पदस्य किं पर्यायपदं प्रयुक्तम् ?
उत्तर..पयोदानां
5…स्तम्भद्वये लिखितानां विपरीतार्थकशब्दानां समुचितमेलनं कृत्वा लिखत-यथा (क)अर्थवान्……. (iii)दरिद्रः
- (क) अर्थवान्……(i) अधः
- (ख) उच्चैः….(ii) परितोषः
- (ग) तृष्णा…….(iii) दरिद्रः
- (घ) सज्जनः…..(iv) मित्रम्
- (ङ) वल्कलैः……(v) दुर्जनः
- (च) शोकः……(vi) हर्ष:
- (छ) रिपुः…..(vii) दुकूलैः
उत्तर….
- (क) अर्थवान्…….(iii) दरिद्रः
- (ख) उच्चैः….(i) अधः
- (ग) तृष्णा……(ii) परितोषः
- (घ) सज्जनः…..(v) दुर्जनः
- (ङ) वल्कलैः……(vii) दुकूलैः
- (च) शोकः……(vi) हर्ष:
- (छ) रिपुः…..(iv) मित्रम्
6..अधोलिखितेषु द्वे शुद्धे पर्यायपदे चित्वा लिखत –
- (क) तरुः — वृक्षः, महीरुहः, महीभृत् ।
- (ख) पयोदः –सागरः, मेघः, वारिदः ।
- (ग) पयोधिः –उदधिः, अम्बुवाहः, जलधिः ।
- (घ) आपः –जलम्, वर्षा, वारि।
- (ङ) भूमिः –पृथ्वी, वसुन्धरा, महीपतिः ।
उत्तर…
- (क)तरुः — वृक्षः, महीरुहः,
- (ख) पयोदः– मेघः, वारिदः ।
- (ग) पयोधिः– उदधिः, जलधिः ।
- (घ) आपः –जलम्, वारि।
- (ङ) भूमिः– पृथ्वी, वसुन्धरा ।
7..अधोलिखितेषु सूक्तेः शुद्धम् अर्थ चिनुत –
(क) सद्भिस्तु लीलया प्रोक्तं शिलालिखितमक्षरम् ।
- (i) सज्जनैः क्रीडया एव शिलाखण्डेषु अक्षराणि लिख्यन्ते ।
- (ii) सज्जनाः प्रभुलीलया एव अक्षराणि पाषाणखण्डेषु लिखन्ति ।
- (iii) सज्जनाः यत् किञ्चित् सामान्येन अपि कथयन्ति तत् पाषाणे लिखितम् इव भवति।
उत्तर….(iii) सज्जनाः यत् किञ्चित् सामान्येन अपि कथयन्ति तत् पाषाणे लिखितम् इव भवति।
(ख) मार्गारब्धाः सर्वयत्नाः फलन्ति ।
- (i) मार्गे दैवयोगेन सर्वे यत्नाः फलन्ति।
- (ii) ताः एव चेष्टाः फलदायिकाः भवन्ति याः उचितमार्गे सोद्देश्यं प्रारभ्यन्ते।
- (iii) आरम्भे सर्वे यत्नाः मार्गे फलदायकाः भवन्ति ।
उत्तर…(ii) ताः एव चेष्टाः फलदायिकाः भवन्ति याः उचितमार्गे सोद्देश्यं प्रारभ्यन्ते।
(ग) अगच्छन् वैनतेयोऽपि पदमेकं न गच्छति ।
- (i) सततम् अगच्छन् अपि गरुडः शतं क्रोशान् गच्छति ।
- (ii) विनतायाः पुत्रः गरुडः शनैः गच्छन् अपि स्वगन्तव्यं न प्राप्नोति ।
- (iii) तीव्रगामी अपि गरुडः यदि न चलति तर्हि एकं पदमपि न सरति ।
उत्तर…(iii) तीव्रगामी अपि गरुडः यदि न चलति तर्हि एकं पदमपि न सरति।
8…अस्मिन् पाठे विविधभावयुक्ताः श्लोकाः सन्ति । अधोलिखितानां भावानां समक्षं तेन भावेन सम्बद्धां पंक्ति लिखत –
भावः ……………. श्लोकपंक्तिः
यथाहि – दानम्- गौरवं प्राप्यते दानात् न तु वित्तस्य सञ्चयात्।
- (क) उत्साहः………
- (ख) सन्तोषः………
- (ग) क्षमा …….
- (घ) सत्सङ्गतिः ………..
- (ङ) परोपकारः ……..
- (च) शीलम् ………
उत्तर..
- (क) उत्साहः………सोत्साहानां नास्त्यसाध्यं नराणां।
- (ख) सन्तोषः………मनसि च परितुष्टे कोऽर्थवान् को दरिद्रः।
- (ग) क्षमा …….क्षमा बलवतां।
- (घ) सत्सङ्गतिः ………..सतां सङ्गः हि सर्वम् प्रसूते।
- (ङ) परोपकारः ……..अनुद्धताः सत्पुरुषाः समृद्धिभिः स्वभाव एवैष परोपकारिणाम्
- (च) शीलम् ………सर्वेषामपि सर्वकारणमिदं शीलं परं भूषणम्
9..समुचितपदैः रिक्तस्थानानि पूरयत –
- (क) अनुद्धताः……….समृद्धिभिः ।
- (ख) पृथिव्यां त्रीणि रत्नानि…….सुभाषितम्
- (ग) सोत्साहानां नराणां नास्ति………..।
- (घ) नास्ति……….रिपुः ।
- (ङ) स्थितिरुच्चैः ………अधः स्थितिः ………।
- (च) नयमिह परितुष्टाः …….. त्वं…………।
- (छ) सद्भिः लीलया प्रोक्तं……………।
उत्तर…
- (क) अनुद्धताः…सत्पुरुषाः…….समृद्धिभिः ।
- (ख) पृथिव्यां त्रीणि रत्नानि…जलमन्नम् ….सुभाषितम्
- (ग) सोत्साहानां नराणां नास्ति…असाध्यम्……..।
- (घ) नास्ति……शोकसमः ….रिपुः ।
- (ङ) स्थितिरुच्चैः …पयोदानाम् ……अधः स्थितिः …पयोधिनाम् ……।
- (च) नयमिह परितुष्टाः …वल्कलैः ….. त्वं……दुकूलैः…।
- (छ) सद्भिः लीलया प्रोक्तं……शिलालिखितमक्षरम् ………।
10…अधोलिखितम् अन्वयं पूरयत –
तरवः …….नम्राः भवन्ति, ……….घनाः भूरिविलम्बिनः (भवन्ति), सत्पुरुषाः………….अनुद्धताः (भवन्ति), परोपकारिणाम् एष एव स्वभावः (भवति) ।
उत्तर…तरवः …फलोद्गमैः ….नम्राः भवन्ति, …नवाम्बुभिः …….घनाः भूरिविलम्बिनः (भवन्ति), सत्पुरुषाः……समृद्धिभिः …….अनुद्धताः (भवन्ति), परोपकारिणाम् एष एव स्वभावः (भवति) ।
Karmana Yati Samsiddhim Sanskrit Class9
कवयामि वयामि यामि Manika Class 9
Sanskrit Class 9 न धर्मवृद्धेषु वयः समीक्षते
तरवे नमोऽस्तुते Tarave Namoastute