Vijayataam Svadeshah Manika Lesson 3 An Explanation

Vijayataam Svadeshah पाठ का संक्षिप्त सार – मेवाड़ के शासक महाराणा प्रताप वन में कुछ विश्वास पात्र सैनिकों के साथ शिला पर बैठे हुए थे।

स्वदेश की रक्षा के लिए युद्ध करते हुए उनके अनेक वर्ष बीत गये थे। अब तो वे अपने प्राणों के द्वारा ही स्वदेश को स्वतन्त्र कराना चाहते हैं। खेद है कि उनके पास सेना की भोजन-सामग्री का भी अभाव हो गया है।

इस संकटपूर्ण समय में प्रताप विचारमग्न बैठे हैं। प्रताप स्वदेश को छोड़ने के लिए तत्पर हो जाते हैं। उनके स्वामिभक्त सैनिक भी उनका अनुसरण करने की इच्छा प्रगट करते हैं।

कुछ भील चिन्तित होकर विलाप करने लगते हैं और वे आत्महत्या के लिए तैयार हो जाते हैं। इतने में भामाशाह धनराशि लेकर आते हैं और धनराशि को स्वीकार कर उससे देश को स्वतन्त्र कराने के लिए प्रार्थना करते हुए वे सम्पूर्ण धनराशि महाराणा प्रताप के चरणों में भेंट कर देते हैं।

इस धनसामग्री के द्वारा बारह वर्ष तक पच्चीस हजार सैनिकों का पालन किया जा सकता था। इस धनराशि को देखकर प्रताप भामाशाह का आलिंगन करते हैं तथा सब सैनिक महाराणा प्रताप तथा भामाशाह के मिलन को तथा स्वयं को भी धन्य मानते हैं। पूरे वातावरण में महाराणा की जय हो, भामाशाह की जय हो, स्वदेश की जय हो, के उ‌द्घोषों से अभिनय सम्पन्न हो जाता है।

Vijayataam Svadeshah का हिन्दीअनुवाद

संवाद (नाट्य दृश्य)

दिव्या–अयि सुलभे। पश्य एतत् चित्रम्। कः नु खलु एष महापुरुषः ?
दिव्या–अरे सुलभा! इस चित्र को देखो।यह महापुरुष कौन हैं?

सुलभा–दिव्ये! छत्रेण तु राजा इव प्रतीयते।
सुलभा — दिव्या! छत्र से तो यह राजा के जैसे लग रहे हैं।

दिव्या–सुलभे! परन्तु अत्र नास्ति सिंहासनम् ।
दिव्या — सुलभा!परन्तु यहाँ सिंहासन तो नहीं है।

प्रकाशः–अयि, किं युवां न जानीथः “अयं मेवाडाधिपतिः प्रतापः वने स्थितः।”
प्रकाश — अरे! क्या तुम दोनों नहीं जानती हो ” यह मेवाड़ के राजा प्रताप वन में स्थित हैं।

सुलभा–कथं प्रतापः निराशः इव दृश्यते ?
सुलभा– प्रताप क्यों निराश जैसे दिख रहे हैं?

दिव्या–आम्, निराशः स स्वतन्त्रतायै धनाभावात् ।
दिव्या — हाँ, स्वतंत्रता के लिये धन के अभाव के कारण वह निराश हैं।

प्रकाशः–अत एव श्रेष्ठी भामाशाहः देशरक्षार्थं सर्वां सम्पत्तिं महाराजाय प्रतापाय अर्पयति।
प्रकाश– इसीलिये व्यापारी भामाशाह देश की रक्षा के लिये सारी संपत्ति महाराज प्रताप को अर्पित कर देते हैं।

दिव्या–कथं जानासि ?
दिव्या — कैसे जानते हो?

प्रकाशः–ननु अस्मात् नाटकात् एव ।
प्रकाश — निश्चय ही इस नाटक से।

सुवीरः–अतीव रुचिकरं ननु इदं नाटकं देशभक्त्या ओतप्रोतं च। स्वतन्त्रतादिवसे अस्य एव अभिनयं करिष्यामः।
सुवीर –निश्चय ही यह नाटक अत्यन्त रुचिकर और देशभक्ति की भावना से भरा हुआ है।स्वन्त्रता दिवस पर इसका ही अभिनय करेंगे।

प्रकाशः–आम्। अहम् अद्यैव पात्राणां चयनं करोमि ।
प्रकाश — हाँ मैं आज ही पात्रों का चयन करता हूँ।

सर्वे–पठामः तावत् एतं पाठम् अभिनयार्थम् ।
सभी लोग –तो इस पाठ को अभिनय (acting) के लिये पढ़ते हैं।

विजयतां स्वदेशः

(मेवाडाधिपतिः महाराणाप्रतापः अरण्ये कतिपयैः विश्वासपात्रैः भटैः सह सङ्कटापन्ने काले विचारमग्नः शिलायाम् उपविष्टः अस्ति। स्वदेशस्य रक्षायै युध्यमानस्य तस्य बहूनि वर्षाणि व्यतीतानि । हन्त ! वराकस्य पार्श्वे सेनायाः भोजनसामग्र्याः अपि च अभावः विद्यते। अधुना तु स स्वकीयैः प्राणैरेव स्वदेशं स्वतन्त्रं कर्तुम् इच्छति ।)

(मेवाड़ के राजा महाराणा प्रताप जंगल में कुछ विश्वसनीय सैनिकों के साथ संकट के समय में विचारों में मग्न चट्टान पर बैठे हुए हैं। देश की रक्षा के लिये युद्ध करते हुए उनके बहुत से वर्ष बीत गये। दुख की बात है कि बेचारे के पास सेना की भोजन सामग्री का भी अभाव(कमी)है। अब तो वह अपने प्राणों से ही देश को स्वन्त्र कराना चाहते हैं।)

प्रतापः–धिङ् माम् अधन्यम्, योऽहं मातृभूमिं रक्षितुम् असमर्थः । अलं मम एतेन जीवितेन। (दीर्घ निःश्वसिति)
प्रताप–मुझ भाग्यहीन को धिक्कार है, जो मैं मातृभूमि की रक्षा करने में असमर्थ हूँ। मेरा ऐसा जीवन अब नहीं । (लम्बी साँस छोड़ते हैं।)

(यावत् सहचराः तस्य आकृतिं दृष्ट्वा व्याकुलाः भवन्ति, तावदेव सहसा प्रविशति कश्चिद् मेवाडराजपुत्रः )
( जब (प्रताप के ) साथी उनकी आकृति को देख कर परेशान होते हैं, तभी अचानक मेवाड़ का कोई राजकुमार प्रवेश करता है।)

राजपुत्रः–(राजोचितं प्रणम्य) विजयतां महाराजः, विजयताम् ।
राजपुत्र –(राजोचित प्रणाम करके) महाराज की विजय हो, विजय हो।

प्रतापः–(समाश्वस्य) अयि भ्रातः ! कथं जयघोषं कृत्वां मां लज्जयसे ?
प्रताप –(धैर्यपूर्वक साँस ले कर) अरे भाई!क्यों जयघोष करके मुझे लज्जित कर रहे हो?

राजपुत्रः–देव ! कथं भवान् वदति एवम् ? किं न खलु कृतं भवता राज्यत्राणाय ? स्वदेशं स्वाधीनं कर्तुं भवता किं न सोढम् ? विजेष्यते ननु भवान् !
राजपुत्र–महाराज!आप ऐसा क्यों कह रहे हैं? आपनें निश्चय ही राज्य की रक्षा के लिये क्या नहीं किया? स्वदेश को स्वाधीन कराने के लिये क्या नहीं सहा? निश्चय ही आप विजयी होंगे।

प्रतापः-कुतस्तावद् विजयः ! स्वदेशमेव त्यक्तुं तत्परोऽहम् ।
प्रताप –किन्तु अब विजय कहां? मैं तो अपने देश को छोड़ने के लिये तैयार हूँ।

भटः–(अञ्जलिं बद्ध्वा) महाराज ! नैवं तावत्। स्वामिभाग्यानाम् अनुगन्तारः वयम्। वयं सर्वे त्वाम् अनुगमिष्यामः ।
सैनिक–(हाथ जोड़ कर)महाराज! ऐसा मत करिये।हम सब स्वामी के भाग्य का अनुसरण करने वाले हैं। हम सब आप का ही अनुसरण(follow) करेंगे।

प्रतापः–एवं न वक्तव्यम्। कृतज्ञोऽस्मि भवताम् अहम् । वीरैः धीरैः बहु उपकृतं देशस्य । स्वदेशे एव तिष्ठद्भिः भवद्भिः देशस्य स्वतन्त्रतायै प्रयत्नः समाधेयः ।
प्रताप– ऐसा नहीं कहना चाहिये। मैं आप सबका कृतज्ञ हूँ।वीरों और धीरों नें देश का बहुत उपकार किया है। स्वदेश में ही रहते हुए आप सबको देश की स्वन्त्रता के लिये प्रयत्न करना चाहिये।

सर्वे भटाः–देशरक्षायै बद्धपरिकरा वयं तु भवन्तमेव अनुसरिष्यामः ।
सभी सैनिक –देश की रक्षा के लिये हम सब कमर कस कर आप का ही अनुसरण करेंगे।

प्रतापः–यथा रोचते भवद्भ्यः। प्रदेशोऽयम् अस्माभिः त्याज्यः एव।
प्रताप –जैसा आप सब को अच्छा लगे। हम सबको यह प्रदेश छोड़ना ही होगा।

( निस्सरति प्रतापः, भटाः चापि तमनुचरन्ति । तमेवं स्वतन्त्रताप्राप्तिं प्रति निराशं दृष्ट्वा अटवीवासिनो भिल्लाः दुःखीयन्ति)
( प्रताप निकल जाते हैं, सभी सैनिक भी उनके पीछे चलते हैं। उनको इस प्रकार स्वन्त्रता प्राप्ति के लिये निराश देख कर वन में रहने वाले भील(जनजाति) भी दुखी होते हैं।)

प्रथमः भिल्लः–हा धिक् ! कीदृशः समय आगतः ! देशभक्तः प्रतापोऽपि स्वदेशं परित्यज्य अन्यत्र प्रस्थितः ।
पहला भील –हाय धिक्कार है ! कैसा समय आ गया है ! देश भक्त प्रताप भी अपना देश छोड़ कर दूसरे स्थान को जा रहे हैं।

द्वतीयः भिल्लः–न जानेऽस्य मेवाडदेशस्य भाग्ये किं लिखितम् ? हा निष्ठुर दैव ! देशभक्ते तु दयस्व ।

दूसरा भील — न जाने इस मेवाड़ देश के भाग्य में क्या लिखा है? हाय निर्दयी भाग्य, देश भक्त पर तो दया करो।

तृतीयः भिल्लः–वराकोऽयं जीवनसामग्रीयुद्धसामग्रयोः अभावेन खिद्यते।परमेश्वर ! दयस्व ! मातृभूमेः दुर्दशां स्वचक्षुषा कथं द्रक्ष्यामः ?

तीसरा भील –यह बेचारा जीवन सामग्री और युद्ध सामग्री के अभाव के कारण दुखी है। हे परमेश्वर! दया करो। मातृ भूमि की दुर्दशा को हम अपनी आँखों से कैसे देखेंगे?

( सर्वे भिल्लाः विलपन्ति ) सभी भील विलाप करते हैं.

एकः सैनिकः–हा दैव ! कथं देशधर्मों प्रति निष्ठुरः सञ्जातोऽसि ? (प्रतापं प्रति) महाराज ! मदीयेन एव खङ्गेन जहि माम्। न शक्नोमि स्वचक्षुषा द्रष्टुं स्वदेशदुर्दशाम् ।

एक सैनिक — हाय भाग्य!! तुम देश और धर्म के प्रति कैसे निर्दयी हो गये हो?(प्रताप की ओर देख कर) महाराज ! मेरे ही तलवार से मुझे मार दीजिये। मैं अपने देश की दुर्दशा को अपनी आँखों से नहीं देख सकता।

सर्वे सैनिकाः–परतन्त्रे देशे जीवनं नरकायते । न शक्नुमः प्राणान् धारयितुम् ।

सभी सैनिक — परतन्त्र देश में जीवन नरक के समान होता है। (अर्थात दुखदायी होता है।)हम जीवित नहीं रह सकते।

(सर्वे आत्मानं हन्तुमुद्यताः )सभी अपने आप को मारने के लिये तैयार हो जाते हैं।

( एतद् दृश्यं दृष्ट्वा तत्रत्याः भिल्लाः अपि मरणाय तत्पराः भवन्ति )

(यह दृश्य देख कर वहाँ उपस्थित भील भी मरने के लिए तैयार हो जाते हैं।

प्रतापः(सैनिकान् भिल्लान् च आत्मघातं कुर्वतः दृष्ट्वा) स्थीयताम्, स्थीयताम्। आत्मघातिनः जनाः तु असूर्यान् लोकान् व्रजन्ति। वीरगत्या मरणमेव कल्याणप्रदं भवति। धैर्येण स्वतन्त्रतायाः उपायाः चिन्तनीयाः ।

प्रताप –(सैनिकों और भीलों को आत्महत्या करते हुए देख कर ) रुकिये ,रुकिये। आत्म हत्या करने वाले लोग अन्धकार से भरे लोक में जाते हैं।वीरगति से मरना ही कल्याणकारी होता है। धैर्यपूर्वक स्वन्त्रता प्राप्ति का उपाय सोचना चाहिये।

( नेपथ्ये ) पर्दे के पीछे से

विरम्यतां प्रभो ! विरम्यताम् । रुकिये स्वामी! रुकिये।

प्रतापः–श्रुतपूर्व इव स्वरः । (सैनिकं प्रति) वृक्षम् आरुह्य दृश्यतां कः एष शब्दापयति ?

प्रताप — यह स्वर ( आवाज) पहले सुना हुआ सा है। (सैनिक की ओर देख कर )वृक्ष पर चढ़ कर देखिये , कौन यह शब्द कर रहा है ?

सैनिकः–(निपुणं निरीक्ष्य) महाराज ! मेवाडमन्त्री भामाशाहः खलु एषः ।

सैनिक–( अच्छी तरह से देख कर) महाराज! निश्चय ही यह मेवाड़ के मन्त्री भामा शाह हैं।

प्रतापः–अये भामाशाहः आगतः ! कथमस्माकं दौर्भाग्यं भवताऽपि परिज्ञातम् ।

प्रताप – -अरे! भामाशाह आये हैं। आपने भी कैसे हमारा दुर्भाग्य जानलिया?

( भामाशाहः धनराशिमादाय आयाति ) भामा शाह धनराशि ले कर आते हैं।

भामाशाहः–(सप्रणामम्) अन्नदातः ! सेवकं परित्यज्य कुत्र प्रस्थितो भवान् ?

भामाशाह – – ( प्रणाम के साथ )हे अन्नदाता! सेवक को छोड़ कर आप कहाँ चले गये थे?

प्रतापः–(दीर्घ निःश्वस्य) न क्वापि बन्धो ! गन्तुमपि न शक्यते। धनसेनयोः अभावे देशरक्षणाय पर्याकुलाः स्मः।I

प्रताप — ( लम्बी साँस भर कर ) कहीं नहीं मित्र ! जा भी नहीं सकते। धन तथा सेना के अभाव में देश की रक्षा के लिए हम व्याकुल हैं।

भामाशाहः–भवतः चिन्तातुरतां परिज्ञाय भग्नमिव मे हृदयम्। (धनराशिं निर्दिश्य) इयं सम्पत्तिः खलु कस्मै प्रयोजनाय ?ईदृशे एव कर्मणि अस्याः उपयोगः श्रेयान् ।

भामाशाह – – आपकी चिन्ता के बारे में जानकर मेरा हृदय टूट सा गया है।( धनराशि की और संकेत कर के ) यह सम्पत्ति किस प्रयोजन के लिए है? ऐसे ही कार्यों में इसका प्रयोग कल्याणकारक है।

प्रतापः–सत्यं वदति भवान् ।

प्रताप — आप सत्य कह रहे हैं।

भामाशाहः–यद्येवं तर्हि गृह्यताम्। त्रोट्यतां पारतन्त्र्यशृङ्खलाः स्वकीयैः लौहबाहुभिः । स्वतन्त्रः क्रियतां स्वदेशः

भामाशाह–यदि ऐसा है तो ले लीजिये। अपने लोहे की भुजाओं से परतन्त्रता की जंजीरों को तोड़ दीजिये। स्वदेश को स्वतन्त्र कीजिये।

(धनराशिं प्रतापचरणयोः अर्पयति ) धनराशि प्रताप के चरणों में अर्पित करते हैं।

प्रतापः–(साश्चर्यम्) किमिदं भवान् करोति ? नाहं दत्तां सम्पत्तिं पुनः आददामि ।

प्रताप – – ( आश्चर्य के साथ ) आप यह क्या कर रहे हैं ? मैं दी हुई सम्पत्ति पुनः नहीं लेता हूँ।

भामाशाहः–(सविनयम्) गृह्यतां भगवन् ! देशं धर्मं च रक्षितुम् ।

भामाशाह — (विनयपूर्वक) ले लीजिए भगवन! देश और धर्म की रक्षा के लिए ।

प्रतापः–धन्योऽसि मन्त्रिवर्य ! त्वदीया जननी धन्या। सुकुले जातोऽसि ।

प्रताप — मन्त्रीवर ! आप धन्य है । तुम्हारी माता धन्य हैं। श्रेष्ठ कुल मे तुम्हारा जन्म हुआ है।

( द्वादशवर्षाणि यावत् पञ्चविंशतिसहस्त्रसैनिकानां पालयित्रीं सम्पत्तिमवलोक्य सैनिकान् प्रति )

( बारह वर्षों तक पचीस हजार सैनिकों का पालन करने वाली सम्पत्ति को देखकर सैनिकों की ओर )

अस्मिन्नेव क्षणे स्वदेशं पारतन्त्र्यात् मोचयितुं योत्स्यामहे । (भामाशाहम् अभिलक्ष्य) सखे ! एहि गाढं परिष्वजस्व माम्।

हम इसी क्षण स्वदेश को परतन्त्रता से छुड़ाने के लिये युद्ध करेंगे। (भामाशाह की ओर लक्ष्य करके) मित्र! आओ .. मेरा आलिङ्गन करो।(मुझको गले लगाओ।)

भामाशाहः–अनुगृहीतोऽस्मि ।

भामाशाह — मैं अनुगृहीत हूँ।

(उभौ सस्नेहं परस्परमालिङ्गतः ) दोनों स्नेह पूर्वक एक दूसरे का आलिङ्गन करते हैं। ( गले मिलते हैं)

सर्वे सैनिकाः-

धन्योऽस्ति राणा, पुनरस्ति मन्त्री
धन्यः द्वयोर्मेलनमस्ति धन्यम् ।
धन्या वयं स्मः समयश्च धन्यो
धन्यं पुनर्दर्शनमस्ति पुण्यम् ।।

सभी सैनिक…राणा ( प्रताप)धन्य हैं। पुनः मन्त्री (भामाशाह)धन्य हैं। दोनों का मिलन धन्य है।हम सब धन्य हैं, समय धन्य है। पुनः दिखाई देने वाला पुण्य भी धन्य है

विजयतां महाराणा ! विजयताम् भामाशाहः ! विजयतां स्वदेशः !

महाराणा प्रताप की विजय हो! भामाशाह की विजय हो , स्वदेश की विजय हो।

(पटाक्षेपः ) पर्दा गिरता है।

यह नाटक वीरता देशभक्ति और समर्पण की अमर गाथा को सरल संस्कृत और उसके अनुवाद सहित प्रस्तुति है। यह विद्यार्थियों में देशप्रेम और संस्कृत के प्रति प्रेम जागने के लिये अत्यन्त उपयुक्त है।

  1. अधः प्रदत्तानां प्रश्नानाम् उत्तराणि एकपदेन लिखत –

(क) प्रतापः कां रक्षितुम् असमर्थः आसीत् ?
उत्तर… मातृभूमिम्।

(ख) कः दीर्घ निःश्वसिति ?
उत्तर… प्रतापः।

(ग) प्रतापं निराशं दृष्ट्वा के दुःखीयन्ति ?
उत्तर… भिल्लाः।

(घ) सैनिकः स्वचक्षुषा किं द्रष्टुं न शक्नोति ?
उत्तर… स्वदेशदुर्दशाम्।

(ङ) कीदृशे देशे जीवनं नरकायते ?
उत्तर… परतन्त्रेदेशे।

(च) आत्मघातिनो जनाः कीदृशान् लोकान् व्रजन्ति?
उत्तर…असूर्यान् लोकान।

(छ) धनराशिं कः आनयति ?
उत्तर… भमाशाहः।

  1. पूर्णवाक्येन उत्तराणि लिखत

(क) प्रतापः किं श्रुत्वा लज्जाम् अनुभवति ?
उत्तर…प्रतापः”विजयताम् महाराजः ” इति स्वजयघोषम् श्रुत्वा लज्जाम् अनुभवति।

(ख) कैः देशस्य उपकारः क्रियते ?
उत्तर…वीरैः धीरैः देशस्य उपकारः क्रियते।

(ग) स्वतन्त्रतायाः उपायाः कथं चिन्तनीयाः ?
उत्तर..स्वतन्त्रतायाः उपायाः धैर्येण चिन्तनीयाः।

घ) प्रतापः किमर्थं पर्याकुलः आसीत् ?
उत्तर…प्रतापः धनसेनयोः अभावे देशरक्षणाय पर्याकुलः आसीत्।

(ङ) परतन्त्रतायाः शृङ्खलाः कथं त्रोटनीयाः ?
उत्तर…परतन्त्रतायाः शृङ्खलाः लौहबाहुभिः त्रोटनीयाः।

(च) किं किं धन्यम् ?
उत्तर..राणाप्रतापः, मन्त्री, द्वयोः मेलनम् धन्यं, वयम् धन्यं, सैनिकाः,समयम्,पुनर्दर्शनं च धन्यं।

3..अधोलिखितकथनेषु स्थूलपदानि आधृत्य प्रश्ननिर्माणं कुरुत

  • (क) विचारमग्नः महाराणाप्रतापः शिलायाम् उपविष्टः आंसीत् ।
  • (ख) सर्वे भटाः देशरक्षायै बद्धपरिकरांः आसन् ।
  • (ग) भिल्लाः मातृभूमेः दुर्दशां नैव द्रष्टुं शक्नुवन्ति ।
  • (घ) भामाशाहः धनराशिम् आदाय आगच्छति ।
  • (ङ) परतन्त्रे देशे जीवनं नरकायते ।
  • (च) वीरगत्या मरणमेव कल्याणप्रदं भवति ।

उत्तर…

  • (क) विचारमग्नः महाराणाप्रतापः कुत्र उपविष्टः आंसीत्?
  • (ख) सर्वे भटाः किमर्थम् बद्धपरिकरांः आसन्?
  • (ग) भिल्लाः  कस्याः  दुर्दशां नैव द्रष्टुं शक्नुवन्ति?
  • (घ) कः धनराशिम् आदाय आगच्छति?
  • (ङ) कीदृशे देशे जीवनं नरकायते?
  • (च) कया मरणमेव कल्याणप्रदं भवति?

4…अधोलिखितप्रश्नान् यथानिर्देशम् उत्तरत

(क) ‘सहचराः तस्य आकृतिं दृष्ट्वा व्याकुलाः भवन्ति ।’ अस्मिन् वाक्ये कर्तृपदं किम् ?
उत्तर…सहचराः।

(ख) ‘अयि भ्रातः ! कथं जयघोषं कृत्वा मां लज्जयसे ।’ अस्मिन् वाक्ये क्रियापदं किम् ?
उत्तर…लज्जयसे।
(ग) ‘हा धिक् ! कीदृशः समयः आगतः ।’ अस्मात् वाक्यात् ‘कीदृशः’ इति पदस्य विशेष्यं चिनुत ।
उत्तर… समयः।

(घ) ‘न क्वापि बन्धो ! गन्तुमपि न शक्यते ।’ अस्मिन् वाक्ये ‘कुत्र’ इत्यर्थे किं पदं प्रयुक्तम् ?
उत्तर…क्वापि।

(ङ) ‘परतन्त्रे देशे जीवनं नरकायते ।’अस्मात् वाक्यात् ‘स्वतन्त्रे’ पदस्य विलोमपदं चिनुत।
उत्तर…परतन्त्रे।

(च) ‘मदीयेन एव खङ्गेन जहि माम्’ अत्र ‘खङ्गेन’ पदस्य किं विशेषणपदं प्रयुक्तम् ?
उत्तर…मदीयेन।

5..अधोलिखितानां पदानां विलोमपदानि पाठात् चित्वा लिखत-

  • (क) धन्यम्……. (i)
  • (ख) दयालुः…… (ii)
  • (ग) प्रसीदति…… (iii)
  • (घ) आत्मरक्षाम्….(iv)
  • (ङ) परकीयैः…….(v)
  • (च) मदीया……..(vi)
  • (छ) याति……..(vii)

उत्तर..

  • (क) धन्यम्……. (i) अधन्यम्
  • (ख) दयालुः…… (ii) निष्ठुरः
  • (ग) प्रसीदति…… (iii) दुखीयति
  • (घ) आत्मरक्षाम्….(iv) आत्मघातम्
  • (ङ) परकीयैः…….(v) स्वकीयैः
  • (च) मदीया……..(vi) त्वदीया
  • (छ) याति……..(vii) आयाति
  1. मञ्जूषातः समुचितं विशेषणपदं चित्वा लिखत-

[मदीयेन, सङ्कटापन्ने, मेवाडमन्त्री, असूर्यान्, स्वकीयैः, अटवीवासिनः, देशभक्तः]

  • (क)……………प्रतापः
  • (ख)…………..भामाशाहः
  • (ग)……………..काले
  • (घ)…………….खङ्गेन
  • (ङ)…………….भिल्लाः
  • (च)…………..लोकान्
  • (छ)………….लौहबाहुभिः

उत्तर…

  • (क)…देशभक्तः …………प्रतापः।
  • (ख)…मेवाडमन्त्री ………..भामाशाहः।
  • (ग)..सङ्कटापन्ने………..काले।
  • (घ)…मदीयेन……….खङ्गेन।
  • (ङ)…अटवीवासिनः…….भिल्लाः।
  • (च)…असूर्यान्……..लोकान्।
  • (छ)……स्वकीयैः…….लौहबाहुभिः।

. 7…अधः दत्तानां वाक्यानां समक्षं वक्तारं श्रोतारं च निर्दिशत-

वाक्यानि……………….वक्ता……………..श्रोता

  • (क) विजयतां महाराजः ।
  • (Qख) कथं मां लज्जयसे ?
  • (ग) स्वामिभाग्यानाम् अनुगन्तारो वयम् ।
  • (घ) मदीयेनैव खङ्गेन जहि माम्।
  • (ङ) नाहं दत्तां सम्पत्तिं पुनः आददामि ।
  • (च) गृह्यताम् भगवन् ! देशं धर्मं च रक्षितुम् ।

उत्तर…

वाक्यानिवक्ताश्रोता
(क) विजयतां महाराजःराजपुत्रः प्रतापः
(ख) कथं मां लज्जयसे ?प्रतापः राजपुत्रः
(ग) स्वामिभाग्यानाम् अनुगन्तारो वयम् ।भटाः प्रतापः
(घ) मदीयेनैव खङ्गेन जहि माम्।एकः सैनिकः प्रतापः
(ङ) नाहं दत्तां सम्पत्तिं पुनः आददामि ।प्रतापः भामाशाहः
(च)गृह्यताम् भगवन् ! देशं धर्मं च रक्षितुम् ।भामाशाहःप्रतापः

8..अधोलिखितवाक्यानाम् उचितभावैः सह सम्मेलनं कुरुत-

वाक्यानि……………………………भावः

  • (क) अलं मम एतेन जीवितेन ।……..ओजः
  • (ख) वीरैः धीरैः बहु उपकृतं देशस्य ।………निराशा
  • (ग) आत्मघातिनो जनास्तु असूर्यान् लोकान् व्रजन्ति ।…….धैर्यम्
  • (घ) त्रोट्यतां पारतन्त्र्यशृङ्खला स्वीकीयैः बहुभिः ।……ग्लानिः@ 3
  • (ङ) धैर्येण स्वतन्त्रतायाः उपायाः चिन्तनीयाः ।…….उत्साहः

उत्तर….

वाक्यानिभावः
(क) अलं मम एतेन जीवितेन ।निराशा
(ख) वीरैः धीरैः बहु उपकृतं देशस्य ।.उत्साहः
(ग) आत्मघातिनो जनास्तु असूर्यान् लोकान् व्रजन्ति ।ग्लानिः
(घ) त्रोट्यतां पारतन्त्र्यशृङ्खला स्वीकीयैः बहुभिः ।ओजः
(ङ) धैर्येण स्वतन्त्रतायाः उपायाः चिन्तनीयाः ।धैर्यम्

9…..कथाक्रमानुसारम् अधोलिखितानि वाक्यानि पुनः लिखत-

  1. (क) सः सेनायाः भोजनसामग्र्याः अभावेन खिन्नः अस्ति।
  2. (ख) जयघोषं श्रुत्वा प्रतापः कथयति-अयि भ्रातः ! कथं जयघोषं कृत्वा मां लज्जयसे इति ।
  3. (ग) सहचराः महाराणाप्रतापस्य एतादृशीं स्थितिं दृष्ट्वा व्याकुलाः भवन्ति ।
  4. (घ) महाराणा प्रतापः अरण्ये विचारमग्नः शिलायाम् उपविष्टः अस्ति ।
  5. (ङ) तदैव कश्चित् मेवाडराजपुत्रः तत्र प्रविशति ।
  6. (च) तदा राजपुत्रः वदति – स्वदेशं स्वाधीनं कर्तुं भवता किं न सोढम् ? विजेष्यते ननु भवान् ।
  7. (छ) अधुना सः स्वकीयैः प्राणैरेव स्वदेशं स्वतन्त्रं कर्तुम् इच्छति ।
  8. (ज) सः राजपुत्रः महाराणाप्रतापस्य जयघोषं करोति ।

उत्तर…..

  1. (घ) महाराणा प्रतापः अरण्ये विचारमग्नः शिलायाम् उपविष्टः अस्ति ।
  2. (क) सः सेनायाः भोजनसामग्र्याः अभावेन खिन्नः अस्ति।
  3. (छ) अधुना सः स्वकीयैः प्राणैरेव स्वदेशं स्वतन्त्रं कर्तुम् इच्छति ।
  4. (ग) सहचराः महाराणाप्रतापस्य एतादृशीं स्थितिं दृष्ट्वा व्याकुलाः भवन्ति ।
  5. (ङ) तदैव कश्चित् मेवाडराजपुत्रः तत्र प्रविशति ।
  6. (ज) सः राजपुत्रः महाराणाप्रतापस्य जयघोषं करोति ।
  7. (ख) जयघोषं श्रुत्वा प्रतापः कथयति-अयि भ्रातः ! कथं जयघोषं कृत्वा मां लज्जयसे इति ।
  8. (च) तदा राजपुत्रः वदति – स्वदेशं स्वाधीनं कर्तुं भवता किं न सोढम् ? विजेष्यते ननु भवान् ।

तरवे नमोऽस्तुते Tarave Namoastute

कवयामि वयामि यामि Manika Class 9

Karmana Yati Samsiddhim Sanskrit Class 9

संस्कृत class 9 न धर्मवृद्धेषु वयः समीक्षते

वर्णों के विभिन्न उच्चारण स्थान

संस्कृत के अव्यय अर्थ और वाक्य

Tat Tvam Asi Sanskrit Class 9

भारतेनास्ति मे जीवनं जीवनं Sanskrit Class 9

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Scroll to Top