Sanskrit Sangya Vidhayak Sutra

Sanskrit Sangya Vidhayak Sutra

संज्ञा विधायक सूत्र..संज्ञा का अर्थ होता है… नाम।व्याकरण शास्त्र में किसी शब्द/पद की , किसी आदेश का, किसी स्वर य व्यञ्जन समुदाय का भी नामकरण किया गया है।इत् , लोप, नदी, पद, अच् , हल्, जश् सवर्ण, सम्प्रसारण, संहिता आदि अनेक प्रकार की संज्ञाओं का विधान आचार्य पाणिनि ने अष्टाध्यायी में किया है। प्रयत्न लाघव के लिये कई संज्ञा सूत्रों की रचना की है। पाणिनीय व्याकरण को व शब्द शास्त्र समझने के लिये इन संज्ञा सूत्रों का ज्ञान अनिवार्य है। इन संज्ञाओं के विभिन्न परिणाम हैं। कुछ संज्ञाओं का प्रयोग संक्षिप्तिकरण हेतु भी हुआ है और पूरे व्याकरण शास्त्र में आवश्यकतानुसार इनका प्रयोग हुआ है। कुछ संज्ञा सूत्र निम्नलिखित हैं..

संहिता संज्ञा ..

सूत्र ” परः संनिकर्षः संहिता “ वर्णानामतिशयितः सन्निधिः संहितासंज्ञः स्यात्।

वर्णों की अत्यन्त समीपता अर्थात…व्यवधान रहित उच्चारण को संहिता कहते हैं।

जैसे…सुधी + उपास्य में ई के पश्चात बिना किसी बाधा के’ उ’ आया है। अतः इन दोनों वर्णों की समीपता(पास -पास) होने को संहिता कहा जाता है। अतः ई +ऊ की संहिता संज्ञा होगी। यह संज्ञा होने के बाद दोनों में संधि कार्य होगा।

Sanskrit Sangya Vidhayak Sutra

संस्कृत संज्ञा विधायक सूत्र

गुण संज्ञा…

सूत्र.. अदेङ्ग् गुणः..। अत् एङ्ग् च गुण संज्ञं स्यात्।

अर्थात अ, ए, और ओ गुण कहलाते हैं। रमा + ईश =रमेश , दिन +ईश = दिनेश, सूर्य +उदय =सूर्योदय

वृद्धि संज्ञा..

सूत्र.. वृद्धिरादैच…..। आदैच्च वृद्धि संज्ञं स्यात्।

अर्थात आ , ऐ ,औ की वृद्धि संज्ञा होती है। जैसे..महा + औषधि = महौषधि देव +ऐश्वर्यम् = देवैश्वर्यम्

घि संज्ञा…

सूत्र.. “शेषो ध्यसखि “ अनदीसंज्ञौ ह्रस्वौयाविवर्णो तदनन्तं सखिवर्जं घिसंज्ञं स्यात्…

सखि शब्द को छोड़ कर नदी संज्ञा वाले शब्दों से भिन्न ह्रस्व इकारान्त और ह्रस्व उकारान्त शब्द की घि संज्ञा होती है।जैसे..हरि , भानु , गुरु आदि।

संस्कृत संज्ञा विधायक सूत्र

प्रातिपदिक संज्ञा…

सूत्र..अर्थवदधातुरप्रत्ययः प्रातिपदिकम्

वृत्ति…धातुं प्रत्ययं प्रत्यायान्तम् च वर्जयित्वा अर्थवच्छब्दस्वरूपं प्रातिपदिक संज्ञा स्यात्।

अर्थात..(सार्थक शब्दों को प्रातिपदिक कहते हैं) धातु , प्रत्यय और प्रत्ययान्त (प्रत्यय अन्त वाले ) को छोड़ कर कोई भी शब्द जो अर्थ युक्त हो उसकी प्रातिपदिक संज्ञा होती है। प्रातिपदिक होने के बाद पदों में सुप् आदि प्रत्यय जोड़े जाते हैं।प्रतिपदिक संज्ञा नहीं होने पर सुप् आदि प्रत्ययों का प्रयोग उनके साथ नहीं हो सकेगा।

कृत्तद्धितसमासाश्च

इस सूत्र से कृदन्त , तद्धितान्त और समास भी प्रातिपदिक होते हैं।

जैसे…पाठकः , राजपुरुषः

नदी संज्ञा विधायक सूत्र

सूत्र…यू स्त्राख्यौ नदी..ईदूदन्तौ नित्य स्त्रिलिङ्गौ नदीसंज्ञौ स्तः …

यू अर्थात ई + ऊ। दीर्घ ईकारान्त तथा दीर्घ ऊकारान्त नित्य स्त्रीलिङ्ग शब्द नदी संज्ञक होते हैं।नित्य स्त्रीलिङ्ग शब्द वे शब्द होते हैं जो सदा स्त्रीलिङ्ग में प्रयुक्त होते हैं।

नित्य स्त्रीलिङ्ग अर्थात ऐसे शब्द जो सदा स्त्रीलिङ्ग में ही प्रयोग किये जाते हैं। जैसे..गौरी, वधू , नदी, सखी आदि नित्य स्त्रीलिङ्ग हैं। अतः इनकी नदी संज्ञा होगी।

संज्ञा विधायक सूत्र

उपधा संज्ञा ..

सूत्र..” अलोन्त्यात्पूर्व उपधा “….। अन्त्यादलः पूर्वो वर्ण उपधासंज्ञः स्यात् ।किसी पद के अन्तिम अल्..स्वर या व्यञ्जन के तुरन्त पहले वाले वर्ण को उपधा कहते हैं । जैसे… सखन् ( सख् अन् ) में अन्तिम वर्ण न् है , और उसके तुरन्त पहले अ वर्ण है। अतः अ को उपधा कहा जायेगा।

अपृक्त…

सूत्र…अपृक्तं एकाल् प्रत्ययः। एकाल्प्रत्ययोः यः सोऽपृक्तसंज्ञं स्यात्।

एक वर्ण वाले प्रत्यय की अपृक्त संज्ञा होती है। जैसे…सखान् + स् में स् प्रत्यय एक वर्ण वाला प्रत्यय है। इसलिये स् प्रत्यय की अपृक्त संज्ञा होगी।

पद संज्ञा..

सूत्र..सुप्तिङ्गन्तं पदम्..

सुप् तथा तिङ्ग् प्रत्यय से युक्त शब्दों को पद कहते हैं।संस्कृत व्याकरण में सुप् और तिङ्ग् प्रत्यय लगने के बाद ही कोई शब्द पद कहा जाता है। जैसे..राम में सु प्रत्यय लगने पर रामः पद बना। इसी प्रकार भू, पठ् आदि धातुओं में जब तिप्, तस् झि, आदि तिङ्ग प्रत्यय लगने पर ही वे क्रिया रूप… पठति, पठतः, पठन्ति आदि क्रिया पद बनते हैं…

प्रातिपदिक में लगने वाले प्रत्ययों को सुप् तथा धातु में लगने वाले प्रत्ययों को तिङ्ग् कहते हैं।और ये पद क्रमशः सुबन्त् और तिङ्गन्त् कहे जाते हैं। पदों का ही वाक्य में प्रयोग होता है।व्याकरण के अनुसार जो पद नहीं हैं वह लोक व्यवहार के योग्य नहीं हैं

गति..

सूत्र ” गतिश्च ” प्रादयःक्रियायोगे गतिसंज्ञाः स्युः।

प्र , परा , अप् , सम् , अनु आदि जो 22 उपसर्ग हैं, वे क्रिया के योग में अर्थात क्रिया के साथ प्रयुक्त होने पर , उनकी गति संज्ञा होती है। जैसे..प्रधी में प्र उपसर्ग के क्रिया के साथ योग होने पर प्र की गति संज्ञा है। जैसे प्रहार = में प्र की गति संज्ञा होगी।

विभाषा..

सूत्र…” न वेति विभाषा “

निषेध और विकल्प को विभाषा कहा जाता है। अर्थात कहीं पर व्याकरण सम्बन्धी कार्य होना और कहीं पर न होना इस विकल्प वाली व्यवस्था विभाषा कही जाती है।

टि संज्ञा …

सूत्र..अचोअन्त्यदि टि..

किसी भी शब्द का अन्तिम स्वर तथा उसके बाद का व्यञ्जन यदि व्यञ्जन हो तो वह भी टि संज्ञक कहा जाता है। जैसे..शक का अ तथा मनस् का अस् टि संज्ञा वाला है।

Sanskrit Sangya Vidhayak Sutra

सवर्ण..

सूत्र..तुल्यास्य प्रयत्नं सवर्णम्….

जब दो या कई वर्णों का उच्चारण स्थान जो मुख में स्थित ( कण्ठ, तालु आदि ) तथा उच्चारण में लगने वाला आभ्यान्तर प्रयत्न समान या एक हों तो उन्हें परस्पर सवर्ण कहा जाता है।

जैसे… त और थ इन दोनों का उच्चारण स्थान दन्त तथा आभ्यान्तर प्रयत्न स्पृष्ट है, अतः ये दोनों सवर्ण हैं।

प्रगृह्य.. संज्ञा विधायक सूत्र

सूत्र..ईदूदेद्विवचनम् प्रगृह्यम ..

ईकारान्त , ऊकारान्त , एकारान्त वाले द्विवचन वाले ( सुप् अन्त तथा तिङ्ग् ) पद प्रगृह्य कहे जाते हैं। अर्थात जिस द्विवचनान्त पद के अन्त में ई, ऊ तथा ए रहता है, उसकी प्रगृह्य संज्ञा होती है।यह प्रगृह्य संज्ञा पद के अन्तिम ईकार, ऊकार या एकार की ही होती है।

जैसे…हरी,चमू,विष्णू और गङ्गे ये द्वि वचन के रूप हैं। इनके अन्त में ई,ऊ, ए हैं,अतः ई , ऊ, ए की प्रगृह्य संज्ञा होगी।

सर्वनाम स्थान…

सूत्र..शि सर्वनामस्थानम्….

शि की सर्वनाम स्थान संज्ञा होती है। जैसे..ज्ञान + इ इसमे इ शि का भाग है। अतः इ की शि संज्ञा है।

सुड नपुन्सकस्य…

पुलिङ्ग् और स्त्रीलिंग प्रातिपदिक शब्दों के आगे लगने वाले सुट्…सु औ जस् तथा औट् विभक्ति प्रत्यय सर्वनाम स्थान कहे जाते हैं।

निष्ठा.. संज्ञा विधायक सूत्र

सूत्र..क्तक्तवतु निष्ठा

अर्थात क्त और क्तवतु प्रत्ययों की निष्ठा संज्ञा होती है।क्त प्रत्यय में क् की तथा क्तवतु प्रत्यय में क् तथा उ की इत् संज्ञा होती है तथा इनका लोप हो जाता है। ये प्रत्यय भूतकाल के अर्थ में धातु के साथ प्रयुक्त होते हैं।

उपसर्जन संज्ञा…

सूत्र…प्रथमानिर्दिष्टं समास उपसर्जनम् …

अर्थात समास विधायक सूत्रों में जो पद प्रथमा विभक्ति में निर्दिष्ट हो, उसकी उपसर्जन संज्ञा होती है।

अर्थात अव्ययी भाव तथा तत्पुरुष समास आदि का विधान करने वाले सूत्रों में, प्रथमा विभक्ति से जिस पद का निर्देश हो,उसे उपसर्जन कहते हैं।

जैसे…उप्कृष्णं, उपगङ्गं,

अङ्ग संज्ञा…

यस्मात् प्रत्ययविधिस्तदादि प्रत्ययेऽङ्गम्…. जिस शब्द के आगे कोई प्रत्यय जोड़ा जाय, उस प्रत्यय के पहले पूर्ण शब्द समुदाय की अङ्ग संज्ञा होती हैं।

भ संज्ञा… सूत्र… यचि भम्..

सु से ले कर कप् तक के प्रत्ययों में य अथवा स्वर से आरम्भ होने वाले प्रत्ययों के आगे जुड़ने पर पूर्व शब्द की भ संज्ञा होती है।

तौ सत्..

शतृ और शानच् दोनों प्रत्ययों की सत् संज्ञा है।

अनुनासिक… मुखनासिकावचनोऽनुनासिकः…

जिन वर्णों का उच्चारण मुख और नासिका दोनों की सहायता से होता है, उन वर्णों की अनुनासिक संज्ञा होती है। ये वर्ण हैं… ञ, म् ,ङ, ण, न्।

Sanskrit Sangya Vidhayak Sutra

प्रश्न – उत्तर

प्रश्न.. संहिता किसे कहते हैं?

उत्तर..वर्णों की अत्यन्त समीपता को ,अर्थात पास – पास होने को संहिता कहते हैं।

प्रश्न..सवर्ण किसे कहते हैं तथा इसका सूत्र क्या है?

उत्तर..जब दो या अधिक वर्णों का उच्चारण स्थान तथा प्रयत्न एक हों, तो उन्हें सवर्ण कहते हैं।सूत्र.. तुल्यास्य प्रयत्नं सवर्णम्

प्रश्न ..गुण संज्ञा का सूत्र क्या है?

उत्तर..अदेङ्ग गुणः।

इति संज्ञा विधायक सूत्र..।

पञ्चीकरण प्रक्रिया के लिये इसे पढिये..

वेदान्त के अनुसार अज्ञान क्या है

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Scroll to Top