Karmana Yati Samsiddhim Sanskrit Class9

NCERT Solution … Karmana Yati Samsiddhim कर्मणा याति संसिद्धिं …अपने कर्तव्यों के पालन से ही मनुष्य सफलता को प्राप्त करता है। यह पाठ कथासरित्सागर से लिया गया है। प्राचीन काल में महातपा नामक मुनि थे। एक बार जब वे वृक्ष की छाया में बैठे तपस्या कर रहे थे, तो उनके ऊपर एक बलाका नें बीट कर दिया , क्रोधित हो कर मुनि नें उसे देखा, तो वह जल कर भस्म हो गई। मुनि को तप के इस चमत्कार से अहङ्कार हो गया परन्तु एक पतिव्रता स्त्री की पति सेवा के धर्म तथा मांसविक्रेता के धर्म और आदर्श के समक्ष उस मुनि का तप. और ज्ञान का अहंकार नष्ट हो गया। तब उस पतिव्रता स्त्री तथा मांस विक्रेता के उपदेश से उस मुनि नें सिद्धि प्राप्त किया।

लोकेशः ….विशाखे ! श्वः परीक्षा अस्ति। किं पुनरावृत्तिः कृता ?
लोकेश… विशाखा! कल परीक्षा है। क्या पुनरावृत्ति (revision)किया है?

विशाखा….आम्। मया ते सर्वे पाठाः सम्यक् आवृत्ताः ।अतः परीक्षाविषये निश्चिन्ता अस्मि।
विशाखा… हाँ। मैने सारे पाठों को अच्छी तरह से दुहरा लिया है। इसलिये परीक्षा के विषय में निश्चिन्त हूँ।

लोकेशः….सत्यम् ! कर्मणा एव नरः सफलताम् आप्नोति । किं न पठिता कथासरित्सागरात् सङ्कलिता एषा कथा ?
लोकेश.. सत्य में कर्म से ही व्यक्ति सफलता प्राप्त करता है। क्या कथासरित्सागर से संकलित यह कथा नहीं पढ़ी है?

विशाखा….अद्य कक्षायाम् आचार्या पाठयिष्यति ।
विशाखा… आज कक्षा में आचार्या महोदया पढ़ायेंगी।

लोकेशः…..अहं तु सर्वदा गृहात् पूर्वमेव पठित्वा विद्यालयम् आगच्छामि। यत्र शङ्का भवति तत् शब्दं चिह्नितं करोमि ।
लोकेश.. मैं तो सदा पहले से ही घर पर पढ़ कर विद्यालय आता हूँ। जहां कोई सन्देह होता है , उस शब्द को चिन्हित ( mark)करता हूँ।

विशाखा…तर्हि वद, अस्मिन् चित्रे किमर्थम् एकः ऋषिः एका बलाका च चित्रिता ?
विशाखा.. तो बोलो.. इस चित्र में एक ऋषि और एक बलाका क्यों चित्रित हैं?

लोकेशः……वदामि ! ऋषिः क्रुद्धः भूत्वा बलाकां पश्यति, बलाका च दग्धा भूत्वा भूमौ पतति ।
लोकेश…. बताता हूं। ऋषि क्रोधित हो कर बलाका को देखते हैं, और बलाका भस्म हो कर भूमि पर गिर जाती है।

विशाखा….अहो ! ऋषेः तपसः प्रभावः ।
विशाखा…. अरे!!! ऋषि की तपस्या का प्रभाव।

लोकेशः….परन्तु सेवायाः महत्त्वं तपसः अपि अधिकतरम् ।
लोकेश…. परन्तु सेवा का महत्व तप से भी अधिक है।

विशाखा….पठामस्तावत् एतादृशीं ज्ञानवर्धनीं कथाम्।
विशाखा…..तो हम सब ऐसी ज्ञानवर्धक कथा को पढ़ते हैं….

Karmana Yati Samsiddhim

कर्मणा याति संसिद्धिं

आसीत् पुरा कोऽपि महातपा नाम वनवासी मुनिः । एकदा यदा स तरुच्छायोपविष्ट आसीत्। तदा तस्योपरि एका बलाका विष्ठाम् उदसृजत्। स च क्रुद्धस्तां व्यलोकयत्। दृष्टमात्रा एव बलाका भस्मसाद् अभवत्। ततश्च स मुनिः तपःप्रभावाद् अहङ्कारम् उपगतः ।

शब्दार्थ…शब्दार्थ – पुरा = प्राचीन समय में , महातपा नाम = महातपा नाम के , वनवासी =वन में रहने वाले., तरुच्छाया उपविष्टः – वृक्ष की छाया में बैठे हुए , विष्ठाम् = बींट, मल, उदसृजत् =छोड़ा , व्यलोकयत्= देखा , भस्मसात् – भस्म हो गई , तपः प्रभावात् =तप के प्रभाव से , अहंकारम् = अहंकार को , उपगतः – प्राप्त हुआ/हो गया ।

अर्थ- प्राचीन समय में कोई महातपा नाम के वनवासी मुनि थे । एक बार जब वह पेड़ की छाया में बैठे थे तो उनके ऊपर एक बलाका (मादा बगुला) ने बींट कर दी। और उन्होने क्रोधित होकर उस बलाका को देखा। उनके देखने मात्र से ही वह बलाका भस्म हो गई। इसके बाद वह मुनि तप के प्रभाव से अहंकार को प्राप्त हो गये … अर्थात अहंकारी हो गये ।

संधि कार्य…

  • कोऽपि= कः +अपि (विसर्ग संधि)
  • तरुच्छायोपविष्ट= तरु +छाया +उपविष्टः (तुगागम, गुण संधि)
  • तस्योपरि=तस्य +उपरि (गुण संधि)
  • क्रुद्धस्तां=क्रुद्धः +ताम् (विसर्ग संधि)
  • व्यलोकयत्=वि +अलोकयत (यण संधि)
  • ततश्च= ततः +च (विसर्ग संधि)
  • अहङ्कारम्= अहम् +कारम् (व्यञ्जन संधि)

प्रकृति प्रत्यय…

  • दृष्ट = दृश् +क्त
  • क्रुद्धः =क्रुध् +क्त
  • उपविष्टः =उप +विश् +क्त
  • उपगतः =उप +गम् +क्त
  • एका = एक +टाप्
  • बलाका = बलाक +टाप्

पद परिचय…

  • मुनिः = मुनि शब्द , इकारान्त पुलिङ्ग शब्द, प्रथमा विभक्ति,एक वचन
  • एकदा =अव्यय शब्द
  • उदसृजत्= उत् उपसर्ग, सृज् धातु, लङ्ग लकार, प्रथम पुरुष, एक वचन
  • व्यलोकयत्= वि उपसर्ग , लोक् धातु, लङ्ग लकार, प्रथम पुरुष, एक वचन
  • अभवत् = भू धातु , लङ्ग लकार प्रथम पुरुष, एक वचन

एकदा अयं मुनिः क्वापि नगरे एकं ब्राह्मणगृहं प्राप्य तद्गृहिणीं भिक्षामयाचत । सा पतिव्रता गृहिणी तमवदत्- “प्रतीक्षस्व क्षणं, यावद् भर्तुः परिचर्या समापये” इति । एतत् श्रुत्वा स मुनिः तां कोपदृष्ट्या दृष्टवान्। सा विहस्य अभाषत- “मुने ! न अहं बलाकेति”। तत् आकर्ण्य विस्मितः मुनिः “एतत् कथमिव ज्ञातमनया” इति चिन्तयन् तत्र उपाविशत् ।

शब्दार्थ-एकदा-एक बार , एत्य-जा कर, तद्गृहिणीम् = उस घर की गृहिणी से , अयाचत् =माँगी ,प्रतीक्षस्व=प्रतिक्षा करिये , परिचर्यां =सेवा , समापये – समाप्त हो जाये, श्रुत्वा = सुन कर , कोपदृष्ट्या = क्रोध की दृष्टि से , आकर्ण्य =सुन कर , ज्ञातम् -जाना ,चिन्तयन् =सोचता हुआ ,उपाविशत्= बैठ गया।

अर्थ-एक बार यह मुनि किसी एक नगर में एक ब्राह्मण के घर जा कर उस घर की गृहिणी से भिक्षा माँगी । ( अर्थात ब्राह्मण की पत्नी से भिक्षा माँगी)उस पतिव्रता स्त्री ने उनसे कहा — क्षण भर प्रतीक्षा करिये , जब तक मैं पति की सेवा को समाप्त करती हूँ। यह सुनकर उस मुनि ने उस( गृहिणी को ) क्रोध की दृष्टि से देखा। वह हँस कर बोली, हे मुनि ! मैं बलाका नहीं हूँ। यह सुनकर आश्चर्य चकित मुनि ‘उसके द्वारा यह कैसे जाना गया’ इस प्रकार सोचता हुआ वहाँ बैठ गया।

संधि कार्य..

  • क्वापि= क्व +अपि ( दीर्घ स्वर संधि)
  • तद्गृहिणीं= तत् + गृहिणीम् ( व्यञ्जन संधि)
  • बलाकेति= बलाका +इति ( गुण संधि)
  • उपाविशत्= उप +अविशत् ( दीर्घ संधि)

प्रकृति प्रत्यय..

  • एत्य = आ +इ +ल्यप्
  • विहस्य =वि +हस् +ल्यप्
  • प्राप्य =प्र +आप् +ल्यप्
  • श्रुत्वा = श्रु +क्त्वा
  • दृष्टवान्= दृश् +क्तवतु
  • विहस्य=वि +हस् +ल्यप्
  • आकर्ण्य =आ +कर्ण +ल्यप्
  • ज्ञातं =ज्ञा +क्त
  • विस्मितः=वि + स्मि +क्त
  • चिन्तयन् = चिन्त्+ शतृ

पद परिचय..

  • असौ = अदस् सर्वनाम शब्द , प्रथमा विभक्ति एक वचन, पुलिङ्ग्
  • अयाचत् = याच् धातु , लङ्ग लकार , प्रथम पुरुष, एक वचन
  • प्रतीक्षस्व= प्रति उपसर्ग , ईक्ष् धातु लोट् लकार , मध्यम पुरुष, एक वचन
  • समापये= सम उपसर्ग, आप् धातु , लट् लकार, उत्तम पुरुष , एक वचन
  • अनया = इदम् सर्वनाम शब्द, तृतीया विभक्ति , एक वचन
  • उपाविशत्= उप उपसर्ग , विश् धातु, लङ्ग लकार, प्रथम पुरुष, एक वचन

ततश्च सा साध्वी भर्तुः शुश्रूषां कृत्वा भिक्षामादाय मुनेः अन्तिकम् आगता। स च मुनिः बद्धाञ्जलिः तामवदत् – “कथं त्वया अनन्यगोचरो बलाकावृत्तान्तो ज्ञात इति ब्रूहि, ततो भिक्षां ग्रहीष्ये ।” साऽवदत् – “मुने ! न भर्तृसेवायाः अपरं कञ्चन धर्म करोम्यहम्। तत्प्रसादेन एव मे एतादृशं विज्ञानम्। किञ्च इतः धर्मव्याधाख्यं कञ्चन मांसविक्रयिणं गत्वा एतत् पृच्छ । ततस्ते श्रेयो भविष्यति त्वं च निरहङ्कारः भविष्यसि इति” । एवं सर्वविदा पतिव्रतया अभिहितः गृहीतातिथिसत्कारः स मुनिः तां प्रणम्य तद्गृहाद् निरगच्छत् ।

शब्दार्थ- साध्वी =साधु स्त्री, शुश्रूषाम् = सेवा को , कृत्वा = कर के,अन्तिकम् =पास, निकट , बद्धाञ्जलिः = हाथ जोड़कर, मांसविक्रयिणम् -मांस बेचने वाले को , श्रेयः = कल्याण , अभिहितः = कहा गया , तद्गृहात् – उसके घर से , अभिहितः – कहा गया, निरगच्छत् – निकल गया।

अर्थ-इसके बाद वह साध्वी पति की सेवा को करके, भिक्षा लेकर मुनि के पास आई।और उस मुनि ने हाथ जोड़कर उस गृहिणी से कहा – अन्य किसी की भी दृष्टि से परे( किसी और के द्वारा न जाना जाने वाला), उस बलाका की घटना तुम्हारे द्वारा कैसे जाना गया यह बताओ , इसके बाद ही भिक्षा ग्रहण करूंगा। वह बोली- हे मुनि!, पतिसेवा के अतिरिक्त मैं कोई दूसरा धर्म नहीं करती हूँ। उसकी कृपा से ही मुझे ऐसा ज्ञान प्राप्त हुआ है। यहाँ से , धर्मव्याध नामक किसी माँस विक्रेता के पास जाकर पूछो। उससे ही तुम्हारा कल्याण होगा और तुम अहंकार रहित हो जाओगे। इस प्रकार वह सर्वज्ञ =( सब जानने वाली)पतिव्रता के द्वारा कहे जाने पर, अतिथि सत्कार ग्रहण करके वह मुनि उस गृहिणी को प्रणाम करके उसके घर से चले गये ।

संधि कार्य…

  • बद्धाञ्जलिः = बद्ध + अञ्जलिः (दीर्घ सन्धि)
  • करोम्यहम् = करोमि + अहम् (यण् सन्धि)
  • ततस्ते = ततः+ ते (विसर्ग सन्धि)
  • श्रेयो भविष्यति = श्रेयः + भविष्यति (विसर्ग सन्धि)
  • गृहीतातिथिसत्कारः = गृहीत + अतिथि + सत्कारः (दीर्घ सन्धि)
  • तद्गृहाद्= तत् + गृहाद् (व्यञ्जन सन्धि)

प्रकृति-प्रत्ययः

  • आदा=आ + दा + ल्यप् ।
  • आगता=आ + गम् + क्त।
  • अभिहितः=अभि+धा + क्त।
  • प्रणम्य= प्र + नम् + ल्यप् ।
  • साध्वी=साधु + ङीप् ।

पद-परिचयः

  • शुश्रूषाम्…..शुश्रूषा शब्द, स्त्रीलिङ्गरूप, द्वितीया विभक्तिः, एकवचन
  • ग्रहीष्ये==ग्रह धातु, लृट् लकारः, उत्तमपुरुषः, एकवचन, आत्मनेपद
  • पतिव्रतया=पतिव्रता शब्द, स्त्रीलिङ्गरूप,तृतीया विभक्तिः, एकवचन
  • श्रेयः=श्रेयस् शब्द,नपुंसकलिङ्गरूप,प्रथमा विभक्तिः, एकवचन
  • विक्रयिणम्= विशेषण शब्द , पुलिङ्ग , द्वितीया विभक्ति, एक वचन
  • सेवायाः = सेवा शब्द,स्त्रीलिङ्ग पञ्चमी विभक्ति, एक वचन
  • ते = युष्मद् सर्वनाम शब्द, षष्ठी विभक्ति , एक वचन
  • भविष्यसि=भू धातु , लृट् लकार, मध्यम पुरुष, एक वचन
  • निरगच्छत् = निर् + गम्, लङ् लकारः, प्रथम पुरुषः, एकवचन

अन्येद्युः सः मुनिः समन्विष्य तं विपणिस्थं मांसानि विक्रीणन्तम् उपागच्छत्। धर्मव्याधश्च दृष्ट्वा एव तं मुनिम् अभाषत – “ब्रह्मन् ! किं पतिव्रतया तया इह त्वं प्रेषितः ” ? तत् आकर्ण्य स मुनिर्विस्मितः तं धर्मव्याधम् अवदत्- ” भद्र ! मांसविक्रयिणः ते कथम् ईदृशं विज्ञानम्” ? धर्मव्याधः अवदत्- “ब्रह्मन् ! अहं मातापित्रोर्भक्तः । तौ हि मम परायणम् । अहं तौ स्नापयित्वा स्नामि, भोजयित्वा भोजनं स्वीकरोमि । शाययित्वा च स्वपिमि। तेन मे एतादृशं विज्ञानम् । अन्यहतानां च मृगादीनां मांसानि स्वधर्म इति मत्वा वृत्त्यर्थं विक्रीणे, न तु धनलिप्सया । हे मुने ! ज्ञानविघ्नोऽहङ्कारः । अतः स्वधर्म चर, येन आशु परं श्रेयः अवाप्स्यसि”।

शब्दार्थः अन्येद्युः = दूसरे दिन, अगले दिन, समन्विष्य = अच्छी प्रकार खोज कर , विपणिस्थम् = बाजार में बैठे हुए ,धर्मव्याधम् = धर्म व्याध को। विक्रीणन्तम्= बेचते हुए को। उपागच्छत्= समीप गया , प्रेषितः = भेजे गये हो , आकर्ण्य = सुनकर विस्मितः = चकित , मांसविक्रयिणः – मांस बेचने वाले का , विज्ञानम् = विशिष्ट ज्ञान, न्यगदत्= कहा। ब्रह्मन् = हे ब्राह्मण , स्नपयित्वा = स्नान कराकर। भोजयित्वा – खिला कर। शाययित्वा = सुलाकर , वृत्त्यर्थं = व्यापार के लिए, आशु =शीघ्र , श्रेयः = कल्याण , अवाप्स्यसि = प्राप्त करोगे।

(नोट…धर्मव्याधम् = धर्म के अनुसार बहेलिये का कर्म करने वाले को कहते हैं)

अर्थ-अगले दिन वह मुनि बाजार में स्थित मांस बेचते हुए धर्मव्याध को खोज कर उस के पास गया। उस मुनि को देखते ही धर्मव्याध ने उससे बोला- हे ब्राह्मण!, क्या उस पतिव्रता के द्वारा तुम्हें यहाँ भेजा गया है? यह सुनकर वह मुनि आश्चर्य चकित होकर उस धर्मव्याध से बोला-हे भद्र (सज्जन) पुरुष! माँस बेचने वाले तुम्हारे द्वारा यह कैसे जाना गया ? धर्मव्याध ने कहा- हे ब्राह्मण, मैं माता-पिता का भक्त हूँ। वे दोनों मुझ पर आश्रित हैं। मैं उन दोनों को स्नान करा के स्नान करता हूँ, भोजन करा के भोजन करता हूँ और सुला कर सोता हूँ। इसी कारण मेरे द्वारा ऐसा जाना गया। और दूसरों के द्वारा मारे गए पशुओं आदि के माँस को अपना धर्म समझकर जीविका के लिए बेचता हूँ , धन के लालच से नहीं। हे मुनि !!ज्ञान में अहंकार विघ्न = बाधा (रुकावट) है। इसलिए अपने धर्म का पालन करिये जिससे शीघ्र ही आप परम श्रेय को या कल्याण को प्राप्त करोगे।

ततश्च धर्मव्याधेन एवम् अनुशिष्टः स मुनिः तद्गृहं गत्वा धर्मव्याधस्य च सर्वं क्रियाविधिम् अवलोक्य परितुष्टः वनं गतवान् अवाप्तवान् च तदुपदेशात् सिद्धिम् । उक्तञ्च

कर्मणैव हि संसिद्धिम् आस्थिता जनकादयः

शब्दार्थ – ततः = तत्पश्चात् , एवम् = इस प्रकार , अनुशिष्टः= उपदेश दिया गया , सर्वाम् = सब क्रियाविधिम् = क्रियाकलाप को, अवलोक्य = देख कर, परितुष्टः = पूरी तरह सन्तुष्ट हो गया। गतवान् – चला गया। अवाप्तवान् = प्राप्त किया, सिद्धिम् -सफलता , मोक्ष को । उक्तं = कहा गया है , कर्मणा – कर्म के द्वारा, हि=निश्चय ही , जनकादयः = जनक आदि पूर्वजों ने, संसिद्धिम् =सिद्धि या सफलता , आस्थिताः = प्राप्त किया था।

अर्थ-और तब उस धर्मव्याध के द्वारा इस प्रकार उपदेश दिया गया वह मुनि उस धर्मव्याध के घर जाकर और धर्मव्याध की सभी क्रियाविधि(कार्यों )को देखकर, सन्तुष्ट होकर वन में चले गये और उसके उपदेश से सिद्धि या सफलता को प्राप्त किया। कहा गया है—“जनक आदि राजर्षि ने कर्म से ही उत्तम सिद्धि को प्राप्त किया था।”

सन्धि-विच्छेदः…....

  • उपागच्छत्= उप + आगच्छत् (दीर्घ सन्धि)
  • धर्मव्याधश्च= धर्मव्याधः + च (विसर्ग सन्धि)
  • मातापित्रोर्भक्तः= मातापित्रोः + भक्तः (विसर्ग सन्धि)
  • मुनिर्विस्मितः= मुनिः+विस्मितः (विसर्ग सन्धि)
  • वृत्त्यर्थम्= वृत्ति + अर्थम् (यण सन्धि)
  • कर्मणैव=कर्मणा+एव (वृद्धि सन्धि)
  • ज्ञानविघ्नोऽहङ्कारः= ज्ञानविघ्नः + अहङ्कारः (विसर्ग सन्धि)
  • जनकादयः= जनक + आदयः (दीर्घ सन्धि)
  • तं मुनिम् = तम्+मुनिम् (अनुस्वार सन्धि)।
  • धर्मव्याधोऽवदत् =धर्मव्याधः + अवदत् (विसर्ग सन्धि)
  • मृगादीनान्= मृग+आदीनाम् (दीर्घ सन्धि)
  • ततश्च= तत:+च (विसर्ग सन्धि)
  • तदगृहम्= तत्+गृहम् (जश्त्व सन्धि)
  • तदुपदेशात्=तत्+उपदेशात् (जश्त्व सन्धि)।
  • उक्तञ्च= उक्तम् +च (परसवर्ण सन्धि) ।

प्रकृति-प्रत्ययः

  • दृष्ट्वा =दृश् + क्त्वा ।
  • प्रेषितः= प्र + इष् + क्त।
  • स्नापयित्वा -=स्ना + णिच् + क्त्वा ।
  • भोजयित्वा=भुज् + णिच् + क्त्वा ।
  • शाययित्वा =शी + णिच् + क्त्वा ।
  • मत्वा =मन् + क्त्वा ।
  • अनुशिष्टः =अनु + शिष् + क्त।
  • परितुष्टः =परि + तुष् + क्त।
  • अवाप्तवान्= अव + आप् + क्तवतु।
  • अवलोक्य =अव +लोक् + ल्यप् ।
  • गतवान् =गम् + क्तवतु।
  • समन्विष्य= सम् + अनु + इष् + ल्यप् ।
  • विक्रीणतम् = वि + क्रीण + शतृ ।
  • दृष्ट्वा =दृश् + क्त्वा ।
  • आकर्ण्य =आ + कर्ण + ल्यप् ।
  • विस्मितः =वि + स्मि + क्त
  • हतानाम् =हन् + क्त ।
  • गत्वा =गम् + क्त्वा ।
  • उक्तम् =वच् + क्त ।
  • आस्थिताः= आ + स्था + क्त ।

पद परिचय…

  • पतिव्रतया=पतिव्रता शब्दः,स्त्रीलिङ्ग , तृतीया विभक्तिः, एकवचन
  • विक्रीणन्तम्=विक्रीणत् शब्दः, पुल्लिङ्ग, द्वितीया विभक्तिः, एकवचन
  • तया=तत् सर्वनाम शब्दः, स्त्रीलिङ्गरूप ,तृतीया विभक्तिः, एकवचन
  • मांसविक्रयिणः = मांसविक्रयिन् शब्दः, पुल्लिङ्ग, षष्ठी विभक्तिः, एकवचन
  • मातापित्रोः=मातापितृ शब्दः, पुल्लिङ्ग ,षष्ठी विभक्तिः, द्विवचनम्,
  • धनलिप्सया =धनलिप्सा शब्दः, स्त्रीलिङ्ग , तृतीया विभक्तिः, एकवचन
  • कर्मणा=कर्मन् शब्दः, नपुंसकलिङ्ग ,तृतीया विभक्तिः, एकवचन
  • आदयः =आदि शब्दः, स्त्रीलिङ्ग , प्रथमा विभक्तिः, बहुवचन
Karmana Yati Samsiddhim

पाठ आधारित अभ्यास कार्य…

1..अधोलिखितानां प्रश्नानामुत्तराणि एकेन पदेन लिखत –

  • (क) मुनिः कस्मात् कारणाद् अहङ्कारमुपगतः ?
  • (ख) मुनिः काम् भिक्षाम् अयाचत ?
  • (ग) साध्वी किम् आदाय मुनेः सकाशम् आगच्छत् ?
  • (घ) बलाकावृत्तान्तः कया ज्ञातः ?
  • (ङ) साध्वी किं धर्मकार्यं करोति स्म ?
  • (च) सा मुनिं कस्य समीपे गन्तुम् अकथयत् ?
  • (छ) धर्मव्याधः कस्य भक्तः आसीत् ?

उत्तर..(क) तपसः , (ख) गृहिणीम् , (ग), भिक्षाम्, (घ) गृहिण्या , (ङ) भर्तृसेवाम् , (च) धर्मव्याधस्य , (छ) पित्रोः

2..अधोलिखितानां प्रश्नानामुत्तराणि पूर्णवाक्येन लिखत

  • (क) यदा मुनिः गृहिणीं भिक्षामयाचत तदा सा किम् अवदत्?
  • (ख) मुनिः बद्धाञ्जलिः गृहिणीं किमवदत् ?
  • (ग) धर्मव्याधः दृष्ट्वैव तं मुनिं किमभाषत ?
  • (घ) धर्मव्याधेन मुनिः कथमनुशिष्टः ?
  • (ङ) कः ज्ञाने विघ्नं जनयति ?
  • (च) मुनिः कस्य उपदेशात् सिद्धिम् अवाप्तवान् ?
  • (छ) धर्मव्याधः किमर्थं मांसविक्रयणं करोति स्म ?

उत्तर…

  • (क) यदा मुनिः गृहिणीं भिक्षामयाचत तदा सा अवदत्….“प्रतीक्षस्व क्षणं, यावद् भर्तुः परिचर्या समापये” इति ।
  • (ख) मुनिः बद्धाञ्जलिः गृहिणीं अवदत्…. “कथं त्वया अनन्यगोचरो बलाकावृत्तान्तो ज्ञात इति ब्रूहि, ततो भिक्षां ग्रहीष्ये ।”
  • (ग) धर्मव्याधः दृष्ट्वैव तं मुनिं अभाषत….”ब्रह्मन् ! किं पतिव्रतया तया इह त्वं प्रेषितः ” ?
  • (घ) धर्मव्याधेन मुनिः अनुशिष्टः…हे मुने ! ज्ञानविघ्नोऽहङ्कारः । अतः स्वधर्म चर, येन आशु परं श्रेयः अवाप्स्यसि”।
  • (ङ) अहंकारः ज्ञाने विघ्नं जनयति।
  • (च) मुनिः धर्मव्याधस्य उपदेशात् सिद्धिम् अवाप्तवान्।
  • (छ) धर्मव्याधः वृत्यर्थं मांसविक्रयणं करोति स्म ।
  1. अधोलिखितकथनेषु स्थूलपदानि आधृत्य प्रश्ननिर्माणं कुरुत
  • (क) पुरा महातपा नाम मुनिरासीत् ?
  • (ख) वृक्षस्य उपरि बलाका आसीत् ।
  • (ग) क्रुद्धः मुनिः बलाकाम् अपश्यत् ।
  • (घ) मुनिः ब्राह्मणगृहं गत्वा भिक्षामयाचत ।
  • (ङ) ब्राह्मणी भर्तुः परिचर्याम् करोति स्म।
  • (च) ‘नाहं बलाका’ इति ब्राह्मण्या कथितम् ।
  • (छ) धर्मव्याधः मातापित्रोः भक्तः आसीत्।
  • (ज) अहङ्कारेण ज्ञानं नश्यति।

उत्तर

  • (क) पुरा किम् नाम मुनिरासीत् ?
  • (ख)कस्य उपरि बलाका आसीत्?
  • (ग) क्रुद्धः मुनिः काम् अपश्यत्?
  • (घ) मुनिःकुत्र गत्वा भिक्षामयाचत?
  • (ङ) ब्राह्मणी कस्य परिचर्याम् करोति स्म?
  • (च) ‘नाहं बलाका’ इति कया कथितम्?
  • (छ) धर्मव्याधः कयोः भक्तः आसीत्?
  • (ज) केन ज्ञानं नश्यति?

4…..अधोलिखितप्रश्नान् यथानिर्देशम् उत्तरत –

(क) ‘आसीत् पुरा कोऽपि महातपा नाम वनवासी मुनिः ।’ अस्मिन् वाक्ये ‘आसीत्’ इति क्रियापदस्य कर्तृपदं किम्?
उत्तर.. मुनिः

(ख) ‘साध्वी भिक्षामादाय मुनेः अन्तिकम् आगता’ अस्मिन् वाक्ये ‘समीपे’ इति पदस्य किं पर्यायपदं प्रयुक्तम् ?
उत्तर.. अन्तिकम्

(ग)’सः मुनिः बद्धाञ्जलिः तामवदत्।’ अत्र ‘बद्धाञ्जलिः’ इति पदस्य विशेष्यपदं किम् अस्ति ?
उत्तर… मुनिः

(घ) ‘सा विहस्य अभाषत ।’ अस्मिन. वाक्ये क्रियापदं किम् ?
उत्तर… अभाषत्

(ङ)’स च क्रुद्धस्तां व्यलोकयत्।’ अस्मिन् वाक्ये ‘प्रसन्नः’ इति पदस्य किं विलोमपदं प्रयुक्तम् ?
उत्तर… क्रुद्धः

(च) ‘गृहीतातिथिसत्कारः मुनिः तां प्रणम्य निरगच्छत्’ अत्र ‘मुनिः’ पदस्य विशेषणपदं किम्?
उत्तर…गृहीतातिथिसत्कारः

5….उचितपर्यायपदैः सह मेलनं कृत्वा लिखत-

  • (क) उपगतः …….(i) दृष्ट्वा
  • (ख) शुश्रूषाम्………..(ii) नत्वा
  • (ग) आदाय……….(iii) प्राप्तः
  • (घ) प्रणम्य……….(iv) सेवाम्
  • (ङ) अवलोक्य ……..(v) स्वीकृत्य

उत्तर…

  • (क) उपगतः …….प्राप्तः
  • (ख) शुश्रूषाम्………..सेवाम्
  • (ग) आदाय………स्वीकृत्य
  • (घ) प्रणम्य……….नत्वा
  • (ङ) अवलोक्य ……..दृष्ट्वा

6..विपरीतार्थकानां शब्दानां मेलनं कृत्वा लिखत-

  • (क) परितुष्टः…..(i) चिरम्
  • (ख) आशु ……..(ii) आरभे
  • (ग) अन्तिकम् …….(iii) आगत्य
  • (घ) गत्वा ……(iv) असन्तुष्टः
  • (ङ) समापये …..(v)दूरम्

उत्तर..

  • (क) परितुष्टः…..असन्तुष्टः
  • (ख) आशु ……..चिरम्
  • (ग) अन्तिकम् …….दूरम्
  • (घ) गत्वा ……आगत्य
  • (ङ) समापये …..आरभे

7….अधोलिखितकथनानाम् आशयः समक्षं दत्तोऽस्ति । तत्र यत्सत्यमेकं तद् लिखत

(क) न अहं बलाकेति ।

  • (i) त्वं मह्यं कथं कुध्यसि ? मम नाम बलाका नास्ति । त्वं मम अनिष्टं कर्तुं कथमपि न पारयसि ।
  • (ii) अहं पक्षी नास्मि यत् तव कोपेन भीता स्याम्। गच्छ त्वम् इतः शीघ्रम् ।
  • (iii) अहं पतिव्रता नारी अस्मि । तव क्रोधदृष्टिः मां भस्मीकर्तुं न शक्नोति ।

उत्तर..अहं पतिव्रता नारी अस्मि । तव क्रोधदृष्टिः मां भस्मीकर्तुं न शक्नोति ।

(ख) मांसानि, स्वधर्म इति मत्वा वृत्त्यर्थं विक्रीणे, न तु धनलिप्सया।

  • (i) मांसविक्रयणम् एव धर्मव्याधस्य धर्म आसीत्। सः स्वधर्मं श्रेष्ठं मन्यते । धनलोभात् सः सर्वं कार्यं करोति स्म।
  • (ii) धर्मव्याधः मांसविक्रयणं धर्मार्थं करोति । अनेन प्राप्तं सर्वं धनं दीनेभ्यः वितरति ।
  • (iii) मांसविक्रयणं धर्मव्याधस्य स्वाभाविकं कर्म आसीत्। तेनैव जीविकानिर्वाहः भवति । सः धनमात्रलालसया मांसं न विक्रीणीते स्म।

उत्तर…(iii) मांसविक्रयणं धर्मव्याधस्य स्वाभाविकं कर्म आसीत्। तेनैव जीविकानिर्वाहः भवति । सः धनमात्रलालसया मांसं न विक्रीणीते स्म।

(ग) ज्ञानविघ्नोऽहङ्कारः

  • (i) ज्ञानात् अहङ्कारः बाधकः जायते।
  • (ii) ज्ञानप्राप्तौ अहङ्कारः बाधकः भवति ।
  • (iii) अहङ्कारे ज्ञानं विघ्नं करोति ।

उत्तर…(ii) ज्ञानप्राप्तौ अहङ्कारः बाधकः भवति ।

8….विशेषण-विशेष्ययोजनम् –

‘क’ स्तम्भे विशेषणपदानि सन्ति ‘ख’ स्तम्भे विशेष्यपदानि दत्तानि सन्ति । तयोः यथोचितं मेलनं कुरुत।

  • क………………….ख
  • यथा- वनवासी……….मुनिः
  • (क) अनन्यगोचरः…………(i) बलाका
  • (ख) सर्वविदा………(ii) गृहिणी
  • (ग) एका………(iii) बलाकावृत्तान्तः
  • (घ) ज्ञानविघ्नः………….(iv) पतिव्रतया
  • (ङ) पतिव्रता…………(v) अहङ्कारः

उत्तर

  • क………………….. ख
  • (क) अनन्यगोचरः…………बलाकावृत्तान्तः
  • (ख) सर्वविदा………पतिव्रतया
  • (ग) एका………बलाका
  • (घ) ज्ञानविघ्नः………….अहङ्कारः
  • (ङ) पतिव्रता…………गृहिणी

9…अधोलिखितैः पदैः वाक्यानि प्रपूर्य कथासूत्रं योजयत-

[तरुच्छायायाम्, मुनिः, भस्मसाद् अभूत्, महातपा नाम, मुनेः, विष्ठाम्, भिक्षाम्, प्रतीक्षस्व क्षणम्, विस्मितः, नाहं बलाकेति, .क्रुद्धदृष्ट्या ]

एकदा……मुनिः ……उपविष्ट आसीत्। एका बलाका तस्योपरि……. उदसृजत् । सा बलाका……क्रोधदृष्ट्या……..। पुनः एकदा असौ …..एकां गृहिणीं ……अयाचत । पतिसेवारता सा अवदत्………. । तदा मुनिः तां ……… अपश्यत्। सा विहस्य अवदत्…….। एतच्छ्रुत्वा मुनिः अतीव……..जातः ।

उत्तर…

एकदा…महातपा नाम …मुनिः …तरुच्छायायाम्…उपविष्ट आसीत्। एका बलाका तस्योपरि…विष्ठाम्…. उदसृजत् । सा बलाका…मुनेः…क्रोधदृष्ट्या…भस्मसाद् अभूत्…..। पुनः एकदा असौ …मुनिः..एकां गृहिणीं …भिक्षाम्…अयाचत । पतिसेवारता सा अवदत्……प्रतीक्षस्व क्षणम्…. । तदा मुनिः तां ……क्रुद्धदृष्ट्या … अपश्यत्। सा विहस्य अवदत्…नाहं बलाकेति….। एतच्छ्रुत्वा मुनिः अतीव…विस्मितः…..जातः ।

10….कथाक्रमानुसारम् अधोलिखितानि वाक्यानि पुनः लिखत –

  • (क) वृक्षस्य उपरि स्थिता बलाका तस्योपरि विष्ठाम् उदसृजत् ।
  • (ख) एकदा असौ मुनिः ब्राह्मणगृहं गत्वा भिक्षाम् अयाचत ।
  • (ग) ब्राह्मणी भर्तुः परिचर्यां करोति स्म।
  • (घ) पुरा महातपा नाम मुनिरासीत्।
  • (ङ) मुनिः तपःप्रभावात् अहङ्कारम् उपगतः ।
  • (च) एतत् श्रुत्वा सः मुनिः तां कोपदृष्ट्या दृष्टवान्, परं न अहं बलाकेति तया कथितम्
  • (छ) मुनेः दृष्टमात्रा एव सा बलाका भस्मसात् अभवत्।
  • (ज) प्रतीक्षस्व क्षणम् इति सा पतिव्रता गृहिणी तम् अवदत्।

उत्तर….

  • (घ) पुरा महातपा नाम मुनिरासीत्।
  • (क) वृक्षस्य उपरि स्थिता बलाका तस्योपरि विष्ठाम् उदसृजत् ।
  • (छ) मुनेः दृष्टमात्रा एव सा बलाका भस्मसात् अभवत्।
  • (ङ) मुनिः तपःप्रभावात् अहङ्कारम् उपगतः ।
  • (ख) एकदा असौ मुनिः ब्राह्मणगृहं गत्वा भिक्षाम् अयाचत ।
  • (ग) ब्राह्मणी भर्तुः परिचर्यां करोति स्म।
  • (ज) प्रतीक्षस्व क्षणम् इति सा पतिव्रता गृहिणी तम् अवदत्।
  • (च) एतत् श्रुत्वा सः मुनिः तां कोपदृष्ट्या दृष्टवान्, परं न अहं बलाकेति तया कथितम्

तरवे नमोऽस्तुते Tarave Namostute

कवयामि वयामि यामि Manika class 9

Tat Tvam Asi Class 9

Sanskrit Class 9 न धर्मवृद्धेषु वयः समीक्षते

वर्णों के विभिन्न उच्चारण स्थान

भारतेनास्ति मे जीवनम् जीवनम् Sanskrit Class 9

संस्कृत के अव्यय अर्थ और वाक्य

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