वेदान्त के अनुसार सूक्ष्म शरीर क्या है? इसका निर्माण कैसे होता है?किन तत्वों से होता है?लिङ्ग शरीर क्या है?
वेदान्त दर्शन में सूक्ष्म शरीर को ही लिङ्ग शरीर कहा जाता है। इनके द्वारा ही शुद्ध चैतन्य आत्मा का ज्ञान होता है। इस लिङ्ग शरीर के सत्रह( 17) अवयव बताये गये हैं।
इस सूक्ष्म शरीर के द्वारा जीवात्मा के अस्तित्व का बोध होता है। क्योंकि ये 17 अवयव शरीर में स्थित रहते हैं,इसलिये इन्हें लिङ्ग शरीर के नाम से जाना जाता है।
इसके बारे में लिखा गया है…”सूक्ष्म शरीराणि सप्तदशावयवानि लिङ्गशरीराणि।
“अर्थात सूक्ष्म शरीर के सत्रह अवयव हैं ये ही लिङ्ग शरीर हैं। इन सत्रह अवयवों के बारे में इस प्रकार बताया गया है…
वेदान्त के अनुसार सूक्ष्म शरीर /लिङ्ग शरीर के अवयव
“अवयवास्तु ज्ञानेन्द्रियपञ्चकं, बुद्धिमनसो, कर्मेन्द्रियपञ्चकं, वायु पञ्चकञ्चेति। “
अर्थात ये अवयव हैं..
पांच ज्ञानेन्द्रियां
5 कर्मेन्द्रियां
पांच वायु
बुद्धि और मन।
आकाशादि में स्थित सत्व गुण के अंश से क्रमानुसार ये ज्ञानेन्द्रियां उत्पन्न होती हैं।
अब प्रश्न उठता है कि, ज्ञानेन्द्रियां कौन कौन सी हैं..
” ज्ञानेन्द्रियाणि श्रोत्रत्वक्चक्षुर्जिह्वाघ्राणाख्यानि ” एतान्याकाशादीनां सात्विकांशेभ्यो व्यस्तेभ्यः पृथक्-पृथक्र् क्रमेणोत्पद्यन्ते।
श्रोत, त्वक्, चक्षु,जिह्वा तथा घ्राण ये पांच ज्ञानेन्द्रियां हैं। जो आकाशादि पञ्च तन्मात्राओं के सात्विक अंशों से उत्पन्न हुई हैं।आकाश के सत्व गुणांश से श्रोत, वायु से त्वक् = त्वचा, तेज से चक्षु, जल के सत्वगुणांश से रसना अर्थात जिह्वा, तथा पृथ्वी से घ्राण का उद्भव होता है।
बुद्धि क्या है…
बुद्धिर्नाम निश्चयात्मिकान्तःकरणवृत्तिः।
निश्चय करने वाली अन्तः करण की वृत्ति बुद्धि है। मनुष्य के आन्तरिक विचारों को उत्पन्न करने वाली इन्द्रिय अन्तः करण कही जाती है। इसी अन्तः इन्द्रिय में जब निश्चयात्मक वृत्ति उत्पन्न होती है, तब उसे बुद्धि कहते हैं। जैसे.. मै पुरुष हूं । मैं स्त्री हूं । मैं ही ब्रह्म हूं। अर्थात बुद्धि में उत्पन्न होने वाली वृत्ति निश्चयात्मक होती है,उसमें कोई संशय नहीं होता है। यह वृत्ति दो प्रकार की होती है, या इसके दो रूप होते हैं.. 1. निश्चयात्मक जो कि बुद्धि है। 2.. संशयात्मक वृत्ति जो कि मन है।
मन क्या है
मनो नाम संकल्पविकल्पात्मिकान्तः करणवृत्तिः…अर्थात संकल्प और विकल्प करने वाली.. संशय वाली अन्तः करण की वृत्ति मन है। व्यक्ति के आन्तरिक भावनाओं को उत्पन्न करने वाली इन्द्रिय, अन्तः करण में जब इस प्रकार की भावना….मैं करुं य ना करूं,पढ़ूं या ना पढ़ूं, उत्पन्न होती है तो इसे मन कहते हैं।
अनुसन्धानात्मिकान्तःकरणवृत्तिः चित्तम् अर्थात.. अनुसंधान करने वाली अन्तःकरण की वृत्ति चित्त है। मनुष्य के अन्तः करण में अनुसंधान…खोज करने वाली, स्मरण करने वाली वृत्ति (Instinct ) उत्पन्न होती है , तो उसे चित्त कहा जाता है।
सूक्ष्म शरीर /लिङ्ग शरीर में अहंकार क्या है..
अभिमानात्मिकान्तःकरणवृत्तिः अहंकारः.. अर्थात अभिमान करने वाली अन्तः करण की वृत्ति अहंकार कही जाती है। व्यक्ति के अन्तर्मन में स्वयं के लिये जब अभिमानात्मक भाव की उत्पत्ति होती है.. जैसे मै बहुत सुन्दर हूं या मै सबसे ज्ञानी हूं या मैं बहुत दक्ष हूं, तो इस प्रकार की वृत्ति अहंकार कही जाती है।
बुद्धि,मन, चित्त और अहंकार आकाश आदि में स्थित सत्व गुणों के मिश्रित अंशों से उत्पन्न होते हैं। इस संबन्ध में कहा गया है..
एते पुनराकाशादिगत सात्विकांशेभ्यो मिलितेभ्य: उत्पद्यन्ते।
मन तथा बुद्धि में चित्त तथा अहंकार समाहित हो जाते हैं। ये चारो अर्थात मन बुद्धि चित्त और अहंकार पांचो ज्ञानेन्द्रियों के साथ ही रहते हैं और इनका साथ रहना आवश्यक है, क्योंकि बिना मन और बुद्धि के सहयोग के ये पांच ज्ञानेन्द्रियां अपने अपने ज्ञान तथा कार्य के विषयों को समझने में समर्थ नहीं हो पाती हैं।
अर्थात बिना बुद्धि और मन के श्रवणेन्द्रिय सुनने का कार्य नहीं कर सकती, चक्षु देखने का विषय नहीं ग्रहण कर सकते इसी प्रकार अन्य इन्द्रियां भी। ये पञ्च महाभूतों… आकाश, वायु, तेज, जल और पृथ्वी के मिले हुए अंशों से उत्पन्न होते हैं, ऐसा कहा गया है।
कर्मेन्द्रिय
अब तक ज्ञानेन्द्रियों के बारे में कहा गया है, अब प्रश्न है कि कर्मेन्द्रियां कौन कौन सी हैं… इस बारे में लिखा गया है..
कर्मेन्द्रियाणि वाक्पाणिपादपायूपस्थाख्यानि।।
अर्थात.. वाणी, हाथ, पैर, पायु तथा उपस्थ ये पांच कर्मेन्द्रियां हैं। ये भी पञ्च महाभूतों के रजो अंश से उत्पन्न होती हैं। आकाश के रजो गुण अंश से वाक् ( क्योंकि शब्द गुणं आकाशं ) वायु के रजो गुण अंश से हाथ, अग्नि के रजो गुण अंश से पैर, जल के रजो गुण अंश से वायु, तथा पृथ्वी के रजो गुण अंश से उपस्थ नामक इन्द्रिय का प्रादुर्भाव होता है।
पांच वायु कौन सी हैं..
वायवः प्राणापानव्यानोदानसमानाः अर्थात प्राण, व्यान , अपान, उदान, तथा समान ये पांच वायु हैं।
1..प्राण वायु..
1..प्राणो नाम प्राग्गमनवान्नासाग्रस्थानवर्ती।।
अर्थात.. सामने गमन करने वाली तथा नासिका के अग्र भाग में रहने वाली वायु प्राण वायु है। प्रत्येक मनुष्य को स्वयं की नासिका के अग्र भाग में इसकी प्राप्ति और अनुभूति साक्षात रूप से होती रहती है। इस करण इसे नसिकाग्रस्थनवर्ती कहा गया है।
2..अपान वायु..
अपानो नामावाग्गमनवान् पाय्वादि स्थानवर्ती…
अर्थात.. निम्न गमन करने वाली पायु ( गुदादि )स्थानों में रहने वाली वायु अपान है।
3..व्यान वायु..
व्यानो नाम विश्वग्गमनवानखिलशरीरवर्ती ।। सभी ओर गमन करने वाली तथा संपूर्ण शरीर में रहने वाली वायु व्यान है।
4..उदान वायु..
उदानो नाम कण्ठस्थानीय ऊर्ध्वगमनवानुत्क्रमणवायुः
अर्थात ऊपर की ओर गमन करने वाली तथा कण्ठ में रहने वाली वायु उदान है। जीवात्मा को ऊपर ले जाना इसका कार्य है।
5..समान वायु..
समानो नाम शरीरमध्यगताशितापीतान्नादिसमीकरणकरः
..शरीर में खाये पिये हुए अन्न आदि का अच्छी तरह से परिपाक अर्थात पचन कराने वाली वायु समान है। इसका निवास स्थान उदर है।उदर में आये हुए अन्न के सार रूप को अलग करके रक्त रस आदि के रूप में अच्छी तरह पाचन करा देना तथा अवशिष्ट वर्जित भाग को मल आदि के रूप में बाहर निकाल देना समीकरण है।
वेदान्त के अनुसार ये पांचो प्रकार की वायु आकाश,अग्नि,पृथ्वी,जल तथा वायु के के रजो गुण अंश से उत्पन्न होती हैं..
एतत्प्राणादिपञ्चकमाकाशादिगतरजो अंशेभ्यो मिलितेभ्यः उत्पध्यन्ते।
सूक्ष्म शरीर / लिङ्ग शरीर का निर्माण
पांच कर्मेन्द्रियों, पांच ज्ञानेन्द्रियां, पांच वायु , बुद्धि तथा मन इन सत्रह (17) तत्वों य लिङ्गों से मिल कर तीन कोश का निर्माण होता है। ये कोश हैं..
1.. विज्ञानमयकोश 2.. मनोमयकोश 3.. प्राणमयकोश
1..विज्ञानमयकोश..
इयं बुद्धिर्ज्ञानेन्द्रियैः सहिता विज्ञानमयकोशो भवति।। अर्थात पांच ज्ञानेन्द्रियां.. श्रोत्र, त्वक्, चक्षु, रसना तथा घ्राण और बुद्धि, इनके सामूहिक रूप को विज्ञानमय कोश कहा जाता है।विज्ञानमय कोश को ज्ञानशक्ति संपन्न कर्ता रूप कहा गया है।
2..मनोमयकोश…
मनस्तु ज्ञानेन्द्रियै सहितं सन्मनोमयकोशो भवति…पांच ज्ञानेन्द्रियों तथा मन के सम्मिलित रूप को मनोमय कोश कहा गया है।मनोमय कोश इच्छाशक्ति युक्त करणरूप है। पांच ज्ञानेन्द्रियों के साथ मन के मिल् जाने पर मनोमय कोश बनता है।
3..प्राणमयकोश..
इस कोश के लिये कहा गया है कि. इदं प्राणादिपञ्चकं कर्मेन्द्रियैः सहितं सत् प्राणमय कोशो भवति। अस्य क्रियात्मकत्वेन् रजो अंश कार्यत्वं।।..अर्थात ये प्राणादि पांच वायु पांच कर्मेन्द्रियों के मिल कर प्राणमय कोश कहलाती हैं।
प्राणमय कोश क्रियाशक्ति संपन्न है तथा कार्य रूप है। क्योंकि ये अपने अपने विषयों में क्रियाशील रहती हैं इसी कारण इन्हें रजोगुण अंश से उत्पन्न माना तथा कहा गया है। सांख्य तथा गीता में भी प्रेरक तथा क्रिया शील को रजोगुण युक्त बताया गया है।
इन तीनों कोशों की इनकी अपनी पृथक योग्यता…कर्ता करण तथा कार्य के अनुसार पृथक् पृथक वर्णन किया जाता है। ये तीनों कोश मिल कर सूक्ष्म शरीर /लिङ्ग शरीर कहे जाते हैं।
इति वेदान्त के अनुसार सूक्ष्म शरीर
वेदान्त दर्शन के अनुसार अज्ञान क्या है… के लिये इसे देखें
वेदान्त दर्शन के अनुसार पञ्चीकरण प्रक्रिया.
प्रश्न -उत्तर..
1..प्रश्न…वेदान्त के अनुसार सूक्ष्म शरीर ke कितने अवयव हैं?
उत्तर..17, पांच ज्ञानेन्द्रियां , पांच कर्मेन्द्रियां, पांच वायु, बुद्धि और मन। इसे लिङ्ग शरीर भी कहते हैं।
2..प्रश्न..सूक्ष्म शरीर का दूसरा नाम क्या है?
उत्तर..लिङ्ग शरीर…
3..प्रश्न..मनोमय कोश किनसे मिल कर बनता है?
उत्तर..पांच ज्ञानेन्द्रियों तथा मन के समिम्लित रूप से।
4..प्रश्न..ज्ञानशक्ति संपन्न कर्ता रूप किसे कहा गया है?
उत्तर..विज्ञानमय कोश कोश
5..प्रश्न..समान वायु किसे कहा गया है?
उत्तर….शरीर में खाये पिये हुए अन्न आदि का अच्छी तरह से परिपाक अर्थात पचन कराने वाली वायु समान है।
6..प्रश्न..बुद्धि की क्या परिभाषा दी गई है?
उत्तर..निश्चय करने वाली अन्तःकरण की वृत्ति बुद्धि है।
7..प्रश्न..वायु कितने प्रकार की है?
उत्तर…पांच प्रकार की..प्राण, व्यान,अपान, उदान, समान
8..प्रश्न..सूक्ष्म शरीर /लिङ्ग शरीर में कर्मेन्द्रियां कौन कौन सी हैं?
उत्तर..वाक्पाणिपादपायूपस्थाख्यानि..अर्थात वाक् =वाणी हाथ, पैर,पायु तथा उपस्थ।