भारतेनास्ति मे जीवनं जीवनम् manika class 9 ncert samadhan…Bharatenasti Me Jivanam Jivanam … प्रस्तुत है…सम्पूर्ण पाठ तथा उसका सरल हिन्दी अनुवाद, पाठ आधारित अभ्यास कार्य तथा उसका समाधान / solution
पाठ का संक्षिप्त परिचय – यह पाठ ‘भाति में भारतम्’ नाम के गीतिकाव्य से लिया गया है। इस पाठ में कवि, भारत की सब प्रकार की उन्नति की कामना करता है। इसमें सरस तथा गेय पदावली के माध्यम से भारत के भौगोलिक तथा सांस्कृतिक स्वरूप का वर्णन किया गया है। राष्ट्रभक्ति से प्रेरित होकर ये पद्य बार-बार गाये जाने चाहिए।
इन पद्यों में भारत के अनेक पर्वतों का , नदियों का , भारतीय ज्ञान ,कला , संस्कृति, संगीत का वर्णन है। वेष भूषा भोजन, पूजा पद्धति, आदि का उल्लेख करके अन्त में कहा गया है कि ‘भूतले भाति मेऽनारतं भारतम्’ पृथिवी पर मुझे निरन्तर भारत ही शोभायमान लगता है।
आचार्यः ……छात्राः ! एकां प्रहेलिकां पृच्छामि।
आचार्य …….छात्रों!एक पहेली पूछता हूँ।
छात्रा: ……अहो प्रहेलिका ! पृच्छतु भवान् । वयं सन्नद्धाः ।
छात्र ……..ओ हो पहेली!! आप पूछिये। हम सब तैयार हैं।
आचार्यः …..अधोलिखितात् वर्णजालात् नदीनां पर्वतानां नमानि चिनुत।
आचार्य …….निम्न लिखित वर्णजाल से नदियों और पर्वतों के नाम चुनो..
अ | र्बु | दः | * | गं |
रा | च | न्द्र | भा | गा |
व | य | मु | ना | है |
लिः | वि | न्ध्यः | मा | * |
नी | ला | द्रिः | ह्या | स |
छात्राः……पूर्णरूपेण न ज्ञायते ।
छात्र……..पूर्ण रूप से समझ में नहीं आ रहा है।
आचार्य ……पाठे दत्तान् श्लोकान् पठत । ततः एतां पूरयत ।
आचार्य …….पाठ में दिये गये श्लोकों को पढ़ो, फिर इन्हें पूरा करो..
रविः…आचार्यवर ! एतानि पद्मानि तु मया दूरदर्शनतः श्रुतानि, अपि च चित्राणि अपि दृष्टानि।
रवि …..आचार्यवर! ये पद्य तो मैनें दूरदर्शन से सुना हैं, और चित्र भी देखा है।
आचार्यः…..साधूक्तम् ! एतानि पद्यानि “भाति मे भारतम् ” इति गीतिकाव्यात् सङ्गृहीतानि ।
आचार्य ……सही कहा…..ये पद्य “भाति मे भारतं ” इस गीति काव्य से लिये गये हैं / संग्रहीत किये गये हैं।
छात्राः ……तर्हि गायामः वयम् एतानि पद्यानि।
छात्र …….. तो हम सब इन पद्यों को गाते हैं।
पाठ “भरतेनास्ति मे जीवनंजीवनम्”
विन्ध्यसह्याद्रिनीलाद्रिमालान्वितं
शुभ्रहैमाद्रिहासप्रभापूरितम् ।
अर्बुदारावली श्रेणिसम्पूजितम्
भूतले भाति मेऽनारतं भारतम् ॥ 1 ॥
शब्दार्थ..विन्ध्यसह्याद्रिनीलाद्रिमालान्वितं= विन्ध्याचल, सह्याद्रि , तथा नीलाचल/ नीलगिरि पर्वतों की श्रेणियों से युक्त, शुभ्रहैमाद्रिहासप्रभापूरितम्= हिमालय के धवल हास की कान्ति से व्याप्त , अर्बुदारावली श्रेणिसम्पूजितम् = अर्बुद अरावली की पर्वत श्रेणियों से पूजित , अनारतं = निरन्तर , भाति = सुशोभित हो रहा है।
हिन्दी अनुवाद –विन्ध्याचल, सह्याद्रि (पश्चिमी घाट) व नीलाचल की पर्वतश्रेणियों से युक्त हिमालय के धवल (शुभ्र/श्वेत) हास (हँसी) की कान्ति से व्याप्त, आबू और अरावली पर्वतमालाओं से पूजित मेरा भारत संसार में सदा सुशोभित है/धरती पर निरन्तर सुशोभित हो रहा है ।
- संधि कार्य…
- मालान्वितं= माला + अन्वितं ( दीर्घ स्वर संधि)
- अन्वितम् = अनु + इतम् ( यण् संधि)
- सह्याद्रि = सह्य + अद्रि ( दीर्घ स्वर संधि)
- अर्बुदारावली= अर्बुद + अरावली (दीर्घ स्वर संधि)
- मेऽनारतं= मे + अनारतं (पूर्व रूप संधि )
पदपरिचय…
- अनारतं= अव्यय शब्द
- भूतले = भूतल शब्द , पुलिङ्ग्, सप्तमी विभक्ति , एक वचन
- भाति = भा धातु , लट् लकार, प्रथम पुरुष , एक वचन
- मे = अस्मद् शब्द , पुलिङ्ग , स्त्रिलिङ्ग, नपुंसकलिंग तीनों लिङ्ग , षष्ठी विभक्ति , एक वचन
प्रकृति प्रत्यय ..
- अन्वितं = अनु +ई + क्त प्रत्यय
- पूरितम् + पूर् + क्त
- सम्पूजितम् = सम् + पूज् + क्त प्रत्यय
जाह्नवीचन्द्रभागाजलैः पावितम्
भानुजानर्मदावीचिभिर्लालितम् ।
तुङ्गभद्राविपाशादिभिर्भावितम्
भूतले भाति मेऽनारतं भारतम् ॥ 2 ॥
अन्वयः – जाह्नवी-चन्द्रभागा-जलैः पावितम् भानुजा-नर्मदा-वीचिभिः लालितम्, तुङ्गभद्रा-विपाशा-आदिभिः भावितम् मे भारतम् भूतले अनारतम् भाति ।
शब्दार्थ-जाह्नवी-चन्द्रभागा-जलैः- गंगा (जाह्नवी) तथा चिनाव (चन्द्रभागा) नदियों के जलों से। पावितम् – पवित्र। भानुजा-नर्मदा-वीचिभिः – यमुना (भानुजा) व नर्मदा की लहरों (वीचि) से। लालितम् – पाला पोसा गया /दुलारा गया। तुङ्गभद्रा-विपाशा-आदिभिः तुंगभद्रा तथा व्यास (विपाशा) आदि नदियों से। भावितम् – गुञ्जित होता हुआ । –
हिन्दी अनुवाद…-गंगा तथा चन्द्रभागा (चिनाव), इन दोनों नदियों के जलों के द्वारा पवित्र किया गया, यमुना व नर्मदा-इन दोनों नदियों की लहरों से दुलारा गया या लालन-पालन किया गया, तुंगभद्रा व व्यास आदि नदियों के जल से गुञ्जित होता हुआ , मेरा भारत संसार में सदा सुशोभित है /धरती पर निरन्तर सुशोभित हो रहा है ।
संधि कार्य…
- वीचिभिर्लालितम्= वीचिभिः + लालितं ( विसर्ग संधि)
- विपाशादिभिर्भावितम्= विपाशादिभि: + भावितं ( विसर्ग संधि)
पद परिचय..
- वीचिभिः= वीचि शब्द , स्त्रिलिङ्ग, तृतीया विभक्ति, बहुवचन
- आदिभिः = आदि शब्द , स्त्रिलिङ्ग, तृतीया विभक्ति, बहुवचन
- लालितम्= लल् विशेषण शब्द , नपुंसक लिङ्ग, प्रथमा विभक्ति, एक वचन
प्रकृति प्रत्यय…
- पावितम्= पू + णिच् + क्त
- लालितम्=+ लल् + णिच् + क्त
- भावितम्=भू धातु + णिच् +क्त प्रत्यय
वेदभाभासितं सत्कलालालितं
रम्यसङ्गीतसाहित्यसौहित्यभूः ।
भारतीवल्लकीझङ्कृतैर्झङ्कृतं
भूतले भाति मेऽनारतं भारतम् ॥ ३ ॥
अन्वयः – भूतले वेद-भा-भासितम् सत्कला-लालितम् रम्य सङ्गीत-साहित्य-सौहित्य- भूः भारती-वल्लकी-झङ्कृतैः झङ्कृतं भारतम् मे अनारतम् भाति।
शब्दार्थ…-वेद-भा-भासितम् = वेदों के प्रकाश से आलोकित। सत्कला-लालितम् (लासितम्) – उत्तम कलाओं से अलंकृत। रम्य-सङ्गीत-साहित्य- सौहित्य-भूः =मधुरसंगीत, साहित्य तथा सन्तुष्टि (सौहित्य) के फलने- फूलने वाली धरती। भारती-वल्लकी-झङ्कृतैः= सरस्वती की वीणा के तारों से। झङ्कृतम् =झनझनाता हुआ।
हिन्दी अनुवाद..-पृथिवी-तल पर मेरा भारत जो वेदज्ञान से आलोकित है, श्रेष्ठ कलाओं से उद्भासित है, रमणीय (मधुर) संगीत, साहित्य व सन्तोष के भावों से युक्त धरती वाला है, सरस्वती की वीणा के तारों से नादमय (झंकृत) है,ऐसा मेरा भारत संसार में सदा प्रकाशमान है या ऐसा मेरा भारत धरती पर निरन्तर सुशोभित हो रहा है ।
संधि कार्य…
- झङ्कृतैर्झङ्कृतं= झङ्कृतै: + झङ्कृतम् (विसर्ग संधि)
पद परिचय..
- भू = भू शब्द, स्त्रीलिङ्ग, प्रथमा विभक्ति, एक वचन
- भाति =भा धातु , लट् लकार, प्रथम पुरुष, एक वचन
- अनारतं = अव्यय शब्द
- लालितम्= विशेषण शब्द , नपुंसक लिङ्ग , प्रथमा विभक्ति, एक वचन
प्रकृति प्रत्यय..
- लालितं=लल् + णिच् + क्त प्रत्यय
- झङ्क्रितम् = झम् + कृ + क्त प्रत्यय
विश्वबन्धुत्वमुद्घोषयत्पावनं
विश्ववन्द्यैश्चरित्रैर्जगत्पावयत् ।
विश्वमेकं कुटुम्बं समालोकयत्
भूतले भाति मेऽनारतं भारतम् ॥ 4 ॥
अन्वयः – भूतले पावनं विश्ववन्धुत्वम् उद्घोषयत्, विश्व-वन्द्यैः चरित्रैः जगत् पावयत्, विश्वम् एकम् कुटुम्बम् समालोकयत् भारतम् मे अनारतम् भाति।
शब्दार्थ-विश्व-बन्धुत्वम्- संसार के भाईचारे के भाव की। उद्घोषयत्- घोषणा करता हुआ। विश्व-वन्द्यैः संसार में वन्दना के योग्य। चरित्रैः चरित्रों अथवा कार्यों के द्वारा। जगत्-संसार को। पावयत्- पवित्र करता हुआ। विश्वम् – संसार को। एकं कुटुम्बम्-एक परिवार के रूप में। समालोकयत्- देखता हुआ।
हिन्दी अनुवाद..- संसार के सभी लोगों में भाईचारे की पवित्र भावना की ऊँचे स्वर से घोषणा करता हुआ, संसार में पूजा के योग्य कार्यों के द्वारा संसार को पवित्र करता हुआ, (अथवा विश्व मेन वन्दनीय चरित्रों से संसार को पवित्र करता हुआ )तथा सारे संसार को एक परिवार के रूप में देखता हुआ मेरा भारत संसार में सदा प्रकाशमान है।/ धरती पर निरन्तर सुशोभित हो रहा है ।
संधि कार्य..
- विश्ववन्द्यैश्चरित्रैर्जगत् =विश्व-वन्द्यैः+ चरित्रैः + जगत्( विसर्ग संधि )
- समालोकयत्= सम् + आलोकयत् (संयोग)
पद परिचय…
- चरित्रैः = चरित्र शब्द, नपुंसकलिङ्ग, तृतीया विभक्ति, बहुवचन
- भूतले = भूतल शब्द, नपुंसकलिङ्ग, सप्तमी विभक्ति, एक वचन
प्रकृति प्रत्यय
- उद्घोषयत्= उत् + घुष् + शतृ प्रत्यय
- पावयत् =पू +णिच् + शतृ
वेशभूषाशनोपासनापद्धति-
क्रीडनामोदसंस्कारवृत्त्यादिषु ।
यद्धि भिन्नं सदप्यस्त्यभिन्नं सदा
भूतले भाति तन्मामकं भारतम् ॥ 5 ॥
अन्वयः- वेप-भूषा-अशन-उपासना पद्धति-क्रीडन-आमोद-संस्कार-वृत्ति-आदिषु यत् हि भिन्नम् सत् अपि सदा अभिन्नम् अस्ति, तत् मामकं भारतम् भूतले भाति।
शब्दार्थ-वेष-भूषा= परिधान ,अशन= खान – पान , उपासना-पद्धति= पूजा / अर्चना विधि ,क्रीडन= खेलकूद ,आमोद= मनोरंजन / आमोद प्रमोद के साधन ,संस्कार-= धार्मिक सामाजिक संस्कार , वृत्ति= आजीविका , हि- निश्चय ही। भिन्नम् सत्- भेदों से युक्त होता हुआ। अभिन्नम् – भेदों से रहितं। मामकम् – मेरा।
हिन्दी अनुवाद..- वेशभूषा, खानपान, पूजाविधि, खेलकूद, आमोद-प्रमोद के साधन, धार्मिक- सामाजिक संस्कार एवं आजीविका आदि में जो निश्चय ही भेदों वाला होते हुए भी ( अर्थात भिन्न होते हुए भी )भेदों से रहित है। ऐसा मेरा भारत संसार में सुशोभित होता है।/ धरती पर निरन्तर सुशोभित हो रहा है ।
संधि कार्य..
- वेशभूषाशनोपासनापद्धति=वेषभूषा +अशन + उपासना +पद्धतिः( दीर्घ व गुण संधि )
- वृत्त्यादिषु= वृत्ति +आदिषु (यण संधि )
- यद्धि= यत् + हि ( व्यञ्जन संधि )
- सदप्यस्त्यभिन्नं= सत् + अपि + अस्ति +अभिन्नं( व्यञ्जन संधि, यण संधि )
- तन्मामकं= तत् + मामकम् (व्यञ्जन संधि)
प्रकृति प्रत्यय…
- भिन्नम् =भिद् + क्त प्रत्यय
अर्थकामान्वितं धर्ममोक्षान्वितम्
भक्तिभावान्वितं ज्ञानकर्मान्वितम् ।
नैकमार्गेः प्रभुं चैकमाराधयद्
भूतले भाति मेऽनारतं भारतम् ॥ 6 ॥
अन्वयः- अर्थ-काम-अन्वितम् धर्म-मोक्ष-अन्वितम् भक्ति भाव अन्वितम् ज्ञान- कर्म-अन्वितम्, नैक मार्गैः च एकम् प्रभुम् आराधयत्, मे भारतम् अनारतम् भूतले भाति।
शब्दार्थ-अर्थ-काम-अन्वितम् – धन और इच्छाओं से युक्त। धर्म-मोक्ष-अन्वितम् – धर्म और मोक्ष से युक्त। भक्ति-भाव-अन्वितम् – भक्तिभाव से युक्त। ज्ञान-कर्म-अन्वितम् – ज्ञान और कर्म से युक्त। नैक मार्गैः- अनेक रास्तों से, अनेक साधनों (उपायों) से। एकम् प्रभुम् – एक ईश्वर को। आराधयत् – पूजता हुआ।
हिन्दी अनुवाद …अर्थ/धन की इच्छाओं से युक्त, धर्म और मोक्ष से युक्त, भक्ति के भाव से युक्त, ज्ञान और कर्म से युक्त, अनेक रास्तों से एक ईश्वर की उपासना करता हुआ मेरा भारत निरन्तर संसार में सुशोभित है/ धरती पर निरन्तर सुशोभित हो रहा है ।
संधि कार्य..
- अर्थकामान्वितं= अर्थकाम + अन्वितं ( दीर्घ संधि )
- धर्ममोक्षान्वितम्=धर्ममोक्ष +अन्वितं ( दीर्घ संधि )
- अन्वितं= अनु +इतम् ( यण संधि )
- भक्तिभावान्वितं = भक्तिभाव + अन्वितं ( दीर्घ संधि )
- ज्ञानकर्मान्वितम् = ज्ञानकर्म +अन्वितं( दीर्घ संधि )
- नैक= न + एक ( वृद्धि संधि )
- चैकम् = च + एकम् ( वृद्धि संधि )
पद परिचय..
- अर्थकामान्वितं= विशेषण शब्द, नपुंसकलिङ्ग, प्रथमा विभक्ति, एक वचन
- ज्ञानकर्मान्वितम् =विशेषण शब्द, नपुंसकलिङ्ग, प्रथमा विभक्ति, एक वचन
- प्रभुम् = प्रभु शब्द , पुलिङ्ग, द्वितीया विभक्ति, एक वचन
प्रकृति प्रत्यय
- आराधयत्=आ + राध् +णिच् +शतृ प्रत्यय
- अन्वितं= अनु +इ + क्त
भारतेनास्ति मे जीवनं जीवनम्
शोषितो नात्र कश्चिद् भवेत् केनचित्
व्याधिना पीडितो नो भवेत्कश्चन ।
नात्र कोऽपि व्रजेद् दीनतां हीनतां
मोदतां राजतां पावनं भारतम् ॥ 7 ॥
अन्वयः – अत्र केनचित् कश्चित् शोषितः न भवेत्, कश्चन व्याधिना पीडितः न भवेत्, अत्र कः अपि दीनतां हीनतां (च) न व्रजेत्, पावनम् भारतम् (सदा एव) भूतले मोदताम् राजताम् ।
शब्दार्थ- केनचित् – किसी के द्वारा। कश्चित्- कोई। शोषितः प्रताडित । व्याधिना – रोग से। कश्चन (कः चन) कोई। पीडितः – दुःखी, कष्टापन्न। दीनताम् – दैन्यभाव को। हीनताम् – हीनता (न्यूनता आदि) के भाव को। न व्रजेत्- प्राप्त न हो। मोदताम् – प्रसन्न होवे। राजताम् – सुशोभित होवे ।
अर्थ….यहां किसी के द्वारा कोई प्रताड़ित न होवे। कोई रोग से पीड़ायुक्त न हो( अर्थात किसी बीमारी से दुखी न हो )। यहाँ कोई दैन्यभाव या हीनभाव को प्राप्त न हो। ऐसा मेरा पवित्र भारत प्रसन्न रहे तथा सुशोभित होता रहे।
संधि कार्य..
- शोषितो नात्र = शोषित:+ नात्र ( विसर्ग संधि)
- कश्चिद्= कः + चित् ( विसर्ग संधि)
- कश्चन = कः + चन (विसर्ग संधि)
- कोऽपि = कः + अपि (विसर्ग संधि)
- नात्र = न + अत्र (दीर्घ संधि)
पद परिचय..
- शोषितः =शुष् धातु , क्त प्रत्यय , पुलिङ्ग, प्रथमा विभक्ति, एक वचन
- भवेत्= भू धातु , विधिलिङ्ग लकार, प्रथम पुरुष, एक वचन
- व्रजेत् =वृज धातु , विधिलिङ्ग लकार, प्रथम पुरुष, एक वचन
- मोदतां= मुद् धातु, लोट् लकार, प्रथम पुरुष, एकवचन
- राजतां= राज् धातु, लोट् लकार, प्रथम पुरुष, एकवचन
प्रकृति प्रत्यय..
- शोषितः = शुष् + क्त प्रत्यय
- दीनतां = दीन + तल् प्रत्यय
- हीनतां + हीन + तल् प्रत्यय
- पीडितः = पीड् +क्त प्रत्यय
भारतं वर्तते मे परं सम्बलं
भारतं नित्यमेव स्मरामि प्रियम्।
भारतेनास्ति मे जीवनं जीवनं
भारतायार्पितं मेऽखिलं चेष्टितम् ॥ 8 ॥
अन्वयः- भारतम् मे परम् सम्बलम् वर्तते।(अहम्) प्रियं भारतम् नित्यम् एव स्मरामि । भारतेन(एव) मे जीवनम् जीवनम् अस्ति। मे अखिलम् चेष्टितम् भारताय अर्पितम्(अस्ति )।
शब्दार्थ – परम् – महान्। सम्बलम् = शक्ति। जीवनम् – वास्तविक जीवन। अखिलम् – समस्त । चेष्टितम्- चेष्टायें, क्रियायें। अर्पितम्- समर्पित हैं।
अर्थ – भारत, मेरा सबसे बड़ा सहारा है । प्रिय भारत को मैं सदा ही स्मरण करता हूँ। भारत से ही मेरा जीवन वास्तव में जीवन कहलाने योग्य है। मेरी समस्त प्रयास व क्रियायें भारत को समर्पित हैं।
संधि कार्य..
- नित्यमेव = नित्यम् + एव =( संयोग)
- भारतेनास्ति= भारतेन + अस्ति (दीर्घ संधि)
- भारतायार्पितं= भारताय + अर्पितं (दीर्घ संधि)
पदपरिचय..
- वर्तते =वृत् धातु, आत्मने पद , लट् लकार, प्रथम पुरुष, एक वचन
- सम्बलम् = संबल शब्द, नपुंसक लिङ्ग प्रथमा विभक्ति, एक वचन
- स्मरामि = स्मृ धातु , लट् लकार, उत्तम पुरुष, एक वचन
प्रकृति प्रत्यय..
- चेष्टितम्= चेष्ट् + क्त प्रत्यय
- अर्पितम् = अर्प् + क्त प्रत्यय
अभ्यास कार्य
संस्कृतभाषया एकपदेन उत्तरं लिखत
- (क) मम भारतं कुत्र भाति ?
- उत्तर.. भूतले
- (ख) भारतं कस्य हासप्रभया पूरितम् अस्ति ?
- उत्तर..शुभ्रहैमाद्रेः
- (ग) धरण्यां किं मोदताम् ?
- उत्तर…भारतम्
- (घ) मम अखिलं चेष्टितं कस्मै अर्पितं भवेत् ?
- उत्तर…भारताय
- (ङ) अत्र कोऽपि कां न व्रजेत् ?
- उत्तर… दीनताहीनताम्
- (च) भारतं कया लालितं वर्तते ?
- उत्तर…भानुजानर्मदावीचिभि:
- (छ) अहं किं नित्यमेव स्मरामि ?
- उत्तर.. भारतम्
- (ज) भारतं जगत् कीदृशैः चरित्रैः पावयति ?
- उत्तर… विश्ववन्द्यैः
- संस्कृतभाषया पूर्णवाक्येन उत्तरं लिखत
(क) अस्मिन् पाठे केषां पर्वतानाम् उल्लेखः अस्ति ?
उत्तर..अस्मिन् पाठे विन्ध्य, नील, सह्याद्रि हिमाद्रि अर्बुद अरावलीनाम् पर्वतानाम् उल्लेखः अस्ति।
(ख) भारतस्य पञ्चनदीनां नामानि लिखत ।
उत्तर.. जाह्नवी-चन्द्रभागा भानुजा-नर्मदा-तुङ्गभद्रा-विपाशा इति भारतस्य पञ्चनदीनां नामानि सन्ति।
(ग) भारतदेशः संसारं कैः पावयति ?
उत्तर…भारतदेशः संसारं विश्ववन्द्यैःचारित्रैःपावयति।
(घ) भारतं कैः झङ्कृतं वर्तते ?
उत्तर..भारतं भारती-वल्लकी-झङ्कृतैः झङ्कृतं वर्तते।
(ङ) मम भारतं कैः अन्वितं वर्तते ?
उत्तर..मम भारतं धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष-भक्तिभाव-ज्ञानकर्मभिः अन्वितं वर्तते।
- अधोलिखितेषु कथनेषु स्थूलाङ्कितपदानि आधारीकृत्य प्रश्ननिर्माणं कुरुत –
(क) मम भारतं पर्वतश्रेणिभिः सम्पूजितं वर्तते ।
(ख) भारते गङ्गायमुनादयः नद्यः वहन्ति ।
(ग) भारतं सत्कलाभिः लालितम् अस्ति ।
(घ) भारतं विश्वं कुटुम्बवत् आलोकयति ।
(ङ) भारते भिन्नाः संस्कृतयः सन्ति तथापि भारतम् अभिन्नम् अस्ति ।
(च) भारते जनाः अनेकमार्गैः प्रभुम् आराधयन्ति ।
(छ) अत्र जनाः व्याधिना पीडिताः न भवेयुः ।
(ज) भारतेन मह्यं शुभाः प्रेरणाः प्रदत्ताः ।
(झ) अहम् अनेककर्माणि कुर्वन् भारतस्य गीतानि गायामि ।
(ञ) मम सर्वाणि चेष्टितानि भारताय अर्पितानि ।
उत्तर…
- (क) मम भारतं काभिः सम्पूजितं वर्तते ।
- (ख) भारते काः नद्यः वहन्ति ।
- (ग) भारतं काभिः लालितम् अस्ति ।
- (घ) भारतं कम् कुटुम्बवत् आलोकयति ।
- (ङ) भारते भिन्नाः काः सन्ति तथापि भारतम् अभिन्नम् अस्ति ।
- (च) भारते जनाःकैः प्रभुम् आराधयन्ति ।
- (छ) अत्र जनाःकेन् पीडिताः न भवेयुः ।
- (ज) भारतेन कस्मै शुभाः प्रेरणाः प्रदत्ताः ।
- (झ) अहम् कानि कुर्वन् भारतस्य गीतानि गायामि ।
- (ञ) मम सर्वाणि चेष्टितानि कस्मै अर्पितानि ।
4.अधोलिखितान् प्रश्नान् यथानिर्देशम् उत्तरत
(क) ‘भूतले भाति मेऽनारतं भारतम्।’ अस्मिन् वाक्ये क्रियापदं किम् ?
उत्तर.. भाति
(ख) ‘मोदतां राजतां पावनं भारतम्।’ अस्मिन् वाक्ये ‘राजताम्’ इति क्रियापदस्य किं कर्तृपदं प्रयुक्त?
उत्तर.. भारतम्
(ग) ‘भारतं वर्तते मे परं सम्बलम्।’ अत्र ‘मम’ इत्यर्थे किं पदं प्रयुक्तम् ?
उत्तर… मे
(घ) ‘भारतं नित्यमेव स्मरामि प्रियम्।’ अत्र ‘यदा-कदा’ इत्यनयोः पदयोः किं विलोमपदं प्रयुक्तम्?
उत्तर..नित्यमेव
(ङ) ‘भारतायार्पितं मेऽखिलं चेष्टितम्।’ अत्र’चेष्टितम्’ इति पदस्य किं विशेषणपदं प्रयुक्तम्?
उत्तर.. अखिलम्
(च) ‘भूतले भाति तन्मामकं भारतम्’ अत्र ‘मामकम्’ इति पदस्य कि विशेष्यपदं प्रयुक्तम् ?
उत्तर… भारतम्
5…अधोलिखितवाक्यानाम् अर्थत्रयात् सर्वोचितम् अर्थ चिनुत –
(क) भारतं वर्तते मे परं सम्बलम्
- (i) भारतं महां पर बलं ददाति ।
- (ii) मम भारतदेशः अतीव शक्तिशाली वर्तते।
- (iii) भारतं मम परमः आश्रयः अस्ति।
उत्तर….(iii) भारतं मम परमः आश्रयः अस्ति।
(ख) नात्र कोऽपि व्रजेत् दीनताम्
- (i) अस्मिन् भारते कोऽपि नरः दीनः न भवेत्।
- (ii) अस्मिन् भारते कोऽपि दीनस्य समीपे न गच्छेत् ।
- (iii) भारतदेशे दुष्टः दैन्यं प्राप्नुयात्।.
उत्तर…(i) अस्मिन् भारते कोऽपि नरः दीनः न भवेत्।
(ग) येन मह्यं प्रदत्ताः शुभाः प्रेरणाः
- (i) भारताय अहं प्रेरणां दास्यामि ।
- (ii) भारतं मह्यं सदा शोभनाः प्रेरणाः ददाति ।
- (iii) भारतेन सुन्दराः प्रेरणाः विदेशेभ्यः दत्ताः
उत्तर….(ii) भारतं मह्यं सदा शोभनाः प्रेरणाः ददाति ।
- मञ्जूषायां प्रदत्तानां विशेषणविशेष्यपदानां मेलनं कृत्वा शब्दयुग्मानि लिखत –
यथा —- भारतं………… सम्बलम्
(भारतं, पावनम्, एकं, चेष्टितं, सम्बलं, केनचित्, चारित्रैः , अखिलं, व्याधिना, विश्ववन्द्यैः, प्रभु, विश्वबन्धुत्वम्।)
विशेषणानि…………………………………..विशेष्याणि
उत्तर..
विशेषण | विशेष्य |
विश्वबन्धुत्वम् | पावनम् |
प्रभुं | एकं, |
चेष्टितं | अखिलं |
भारतं | सम्बलं |
विश्ववन्द्यैः | चारित्रैः |
- शब्दाथैः सह मेलनं कृत्वा लिखत-
- (क) अनारतम्…………..(i) संवर्धनस्थलो
- (ख) भानुजा…………….(ii) पवित्रीकृतम्
- (ग) सौहित्यभूः …………….(iii) प्रकाशितम्
- (घ) वल्लकी……………….(iv) सततम्
- (ङ) भासितम् …………….(iv) वीणा
- (च) पावितम्……………….(iv) यमुना
उत्तर…
- (क) अनारतम्…………..सततम्
- (ख) भानुजा………………यमुना
- (ग) सौहित्यभूः ………….संवर्धनस्थलो
- (घ) वल्लकी……………….वीणा
- (ङ) भासितम् …………….प्रकाशितम्
- (च) पावितम्……………….पवित्रीकृतम्
- अधोलिखिताः श्लोकपङ्क्तीः पूरयत –
- (क) विश्वमेकं…………… समालोकयत् ।
- (ख) वेदभा…………………सत्कला……।
- (ग) अर्बुद………………. श्रेणि……..।
- (घ) जाह्नवी…………..जलैः ……….।
- (ङ)……………भाति मे……………भारतम् ।
उत्तर…
- (क) विश्वमेकं कुटुम्बं समालोकयत् ।
- (ख) वेदभा भासितं सत्कला लालितं।
- (ग) अर्बुद अरावली श्रेणि सम्पूजितम् ।
- (घ) जाह्नवी –चन्द्रभागा -जलैः पावितम्।
- (ङ) भूतले भाति मे अनारतम् भारतम् ।
9. अधोदत्तं अन्वयं शतृप्रत्ययान्तपदैः पूरयत – ,
पावनं विश्व बन्धुत्वम्……………, विश्ववन्द्यैः चरित्रैः जगत् …………….., विश्वम् एकम् कुटुम्बकम् ……………, मे भारतम् भूतले अनारतम् भाति ।
उत्तर…पावनं विश्व बन्धुत्वम् उद्घोषयत , विश्ववन्द्यैः चरित्रैः जगत् पावयत् , विश्वम् एकम् कुटुम्बकम् समालोकयत् , मे भारतम् भूतले अनारतम् भाति ।
Sanskrit Class 9 न धर्मवृद्धेषु वयः समीक्षते
कवयामि वयामि यामि Manika Class9