Kavayami vayami yami manika class 9 ncert samadhan… कवयामि वयामि यामि… प्रस्तुत है…सम्पूर्ण पाठ तथा उसका सरल हिन्दी अनुवाद, पाठ आधारित अभ्यास कार्य तथा उसका समाधान / solution
पाठ का संक्षिप्त परिचय….प्राचीन समय में भारत में अधिकांश जनता अशिक्षित थी , ऐसा माना जाता था, परन्तु राजा भोज के धारा राज्य में ऐसा नहीं था। उनके राज्य में ऐसा एक भी नागरिक नहीं था,जो काव्य रचना में कुशल न हो। कैसे एक जुलाहा इस सत्य को प्रमाणित करता है , यह इस पाठ के एकांकी नाटक में बताया गया है।
यह कथावस्तु भोजप्रबन्ध से ली गई है। लक्ष्मीधर नाम के विद्वान् को,अपने राज्य में रहने का स्थान देने के लिये राजा भोज ने आदेश दिया..कि जो व्यक्ति पढ़ा न हो तथा काव्य रचना न करता हो ,उसे उसके घर से निकाल दिया जाय और उसी घर में लक्ष्मीधर विद्वान को रखा जाय परन्तु राजकर्मियों के द्वारा जिस जुलाहे को राजा के पास लाया गया , उसनें भी राजा को कविता की रचना कर के सुनाया। उसने कहा…
“मैं काव्य रचना करता हूँ परन्तु अधिक सुन्दर नहीं कर पाता हूँ। यदि प्रयत्न से करुँ तो सुन्दर भी कर लेता हूँ। राजाओं की मस्तक की मणियों से सुशोभित चरणपीठ ( राजा के पैरों को रखने वाला आसन) वाले हे साहसाङ्क! मैं कविता करता हूँ, वस्त्र बुनता हूँ, जाता हूँ”। यह सुनकर प्रसन्न हो कर राजा उसे पुरस्कृत करते हैं तथा उसे उसके घर वापस भेज देते हैं ।
पाठ .
यशोधरा….स्वाते ! कुत्र गच्छसि ?
यशोधरा…. स्वाति! कहाँ जा रही हो।
स्वातिः …..ननु अहं गच्छामि अशिक्षितान् पाठयितुम् ।
स्वाति…… निश्चय ही मैं अशिक्षित लोगों को पढ़ाने जा रही हूँ।
यशोधरा ….अतीव शोभनं कार्यम्। अद्यत्वे शिक्षायाः महत्त्वं सर्वे जानन्ति ।
यशोधरा… बहुत अच्छा कार्य। आज कल शिक्षा का महत्व सभी जानते हैं।
स्वातिः ….शिक्षां विना तु जीवनम् अपूर्णमेव । किं न पठितं चतुर्थे पाठे यत् विद्याहीनाः न शोभन्ते निर्गन्धाः इव किंशुकाः।
स्वाति… शिक्षा के बिना तो जीवन अपूर्ण/अधूरा ही है। क्या चौथे पाठ में नहीं पढ़ा है कि विद्याहीन व्यक्ति सुगन्ध रहित किंशुक के पुष्प के समान सुशोभित नहीं होते हैं।
यशोधरा…. आम् ! मया अपि पठितं भोजराज्यस्य राज्ये सर्वे एव नागरिकाः न केवलं शिक्षिताः अपितु काव्यम् कर्तुं जानन्ति स्म।
यशोधरा.. हाँ, मैनें भी पढ़ा है कि भोजराज के राज्य में सभी नागरिक न केवल शिक्षित थे बल्कि काव्य रचना करना भी जानते थे।
स्वातिः … किं कथयसि ? सर्वे एव कवयः !
स्वाति….क्या कह रही हो? सभी ही कवि हैं?
यशोधरा …..सत्यम्। पठनीयं खलु एतत् नाटकम् – ‘कवयामि वयामि यामि’।
यशोधरा….. सच। निश्चय ही यह नाटक पढ़ना चाहिये..’कवयामि वयामि यामि’।
कवयामि वयामि यामि
प्रथमं दृश्यं
(धारा नगर्यां भोज राजस्य राजसभा। सर्वे अमात्याः कर्मचारिणः च यथा स्थानं आसनानि अध्यास्ते।)
धारा नगरी में राजा भोज की राजसभा है। सभी मन्त्री और कर्मचारी यथास्थान आसनों पर बैठे हैं।
(प्रविश्य) प्रवेश करके
द्वारपालः….जयतु देवः। द्रविडदेशीयः लक्ष्मीधरनामा कश्चित् विद्वान् देवस्य दर्शनार्थं द्वारदेशं अध्यास्ते।
द्वारपाल…महाराज की जय हो। द्रविड देश के लक्ष्मीधर नाम के कोई विद्वान्, महाराज के दर्शन के लिये द्वार पर उपस्थितहैं।
भोजः.. सादरं प्रवेशय।
भोज… आदर पूर्वक प्रवेश कराओ।
द्वारपालः.. यथा आदिशति देवः। (निष्क्रान्तः)
द्वारपाल…. जैसी महाराज की आज्ञा। (निकल गये)
लक्ष्मीधरः… (द्वारपालेन सह प्रविश्य)राजन्! अभिवादये भवन्तम्। दिनकरदीप्तिरिव भवत्कीर्तिः दिक्षुः प्रसारम् आप्नोतु। वर्धन्तां विभवाः सौख्यानि च लसन्तु संपदः, विलयं व्रजन्तु च विपदः। प्रतिष्ठां लभतां विद्वद्गणः। सततं एधताम् विद्यासु कलासु च भवदनुरागः। श्रूयताम्…
लक्ष्मीधर… (द्वारपाल के साथ प्रवेश करके) राजन्! मैं आपको प्रणाम करता हूँ।. सूर्य के प्रकाश के समान आपकी कीर्ति दिशाओं में फैले। धन तथा सुखों में वृद्धि हो। ( अर्थात आपका धन और सुख बढ़े)संपत्तियां सुशोभित हों तथा विपत्तियां समाप्त हो जायें। विद्वानों का समूह सम्मान प्राप्त करे। विद्याओं तथा कलाओं में आपका अनुराग/प्रेम बढ़ता रहे। सुनिये…
क्षमा दाता गुणग्राही स्वामी पुण्येन लभ्यते ।
अनुकूलः शुचिर्दक्षः कविर्विद्वान सुदुर्लभः ।।
क्षमा करने वाले,दानी (दान करने वाला)गुणों को ग्रहण करने वाला स्वामी पुण्य से प्राप्त होता है ।
अनुकूल स्वभाव वाला/अनुकूल आचरण करने वाला , पवित्र भावना रखने वाला, चतुर कवि और विद्वान् तो बहुत कठिनाई से प्राप्त होता है।
भोजः: अनुगृहीतोऽस्मि कुतः समागमनम् अत्रभवताम्?
भोज… मैं कृतज्ञ हूं। कहां से आये हैं आप?
लक्ष्मीधर:— राजन्! यत्र जलपूर्णं सरः भवति तत्र पक्षिणः स्वयम समायान्ति।अहम् अपि भवतां विद्यानुरागं दानशीलताम् च समाकर्ण्य समागतोऽस्मि। भवद्राज्ये निवसितुं इच्छामि।
लक्ष्मीधर.. हे राजन् ! जहाँ पानी से भरा हुआ सरोवर होता है , वहाँ पक्षी स्वयं ही आकार इकट्ठे होते हैं। मैं भी आपके विद्या के प्रति प्रेम को देख कर दान करने की प्रवृत्ति को सुन कर आया हूँ। आपके राज्य में रहना चाहता हूँ।
भोजः:ममैतत् सौभाग्यं यदि भवादृशाः विद्वांसः मम पण्डितपरिषदं विभूषयेयुः।(मन्त्रिणं प्रति ) मन्त्रिवर !! नगरपालं समाहूय आदिश्यतां यत् स लक्ष्मीधरविदुषे निवास व्यवस्थां कारयतु। नगरे कृतनिवासं अपठितम् जनं निःसार्य तद् गृहे एष वासयितव्यः।
भोज… यह मेरा सौभाग्य है कि आपके जैसा विद्वान्, मेरी विद्वानों कि सभा को अलङ्कृत करें। ( मन्त्री के प्रति)हे मन्त्रिवर! नगर पाल को बुला कर आदेश दीजिये कि वे लक्ष्मीधर विद्वान् के रहने कि व्यवस्था करा दें। नगर में रह रहे किसी अनपढ़ व्यक्ति को निकाल कर उसके घर में इस श्रेष्ठ विद्वान् को निवास स्थान करा दिया जाये।
मन्त्री: यथा आज्ञापयति देवः। (निष्क्रान्त पुनः नगरपालेन सह प्रविश्य)
मन्त्री.. जैसी महाराज की आज्ञा। ( निकल कर पुनः द्वार पाल के साथ प्रवेश कर के।)
नगरपाल: महाराज! मन्त्रिवरस्य आदेशेन अहं समस्ते नगरे भ्रान्त्वा कमपि निरक्षरम् मूर्खं जनं न अपश्यं । कुत्र वासयितव्यः पण्डितवर्यः?
नगरपाल महाराज ! मन्त्री के आदेश से मैने समस्त नगर में घूम कर किसी भी अनपढ़ या मूर्ख व्यक्ति को नहीं देख पाया हूँ।
भोजः: (क्षणं विचार्य) भो ! नगरपाल! त्वं भूयः नगरं याहि । यः नागरिकः काव्यः कर्तुं न जानाति, स निष्कास्यताम् ।
भोज… (क्षण भर सोच कर) हे नगरपाल! तुम पुनः नगर में जाओ। जो व्यक्ति काव्य ( कविता)करना नहीं जानता हो, उसे निकाल दो।
शब्दार्थ.. अनुग्रहीतः =कृपा किया गया , कुतः = कहां से , अत्रभवताम्= यहां आपका , समागमनम्= शुभ आगमन, जलपूर्णं = जल से भरे हुए , सरः = तालाब, पक्षिणः = पक्षी, समायान्ति = मिल कर आते हैं , समाकर्ण्य= सुन कर, निवसितुं= रहना, भवादृशाः= आपके जैसे , विभूषयेयुः= विभूषित करें , या अलङ्कृत करें , आदिश्यतां= आदेश दें , विदुषे = विद्वान् के लिये , कारयतु = कराईये , निष्क्रम्य = निकलकर, भ्रान्त्वा = घूम कर, निरक्षरम् = बिना पढ़ा, पण्डितवर्यः= श्रेष्ठ पण्डित, विचार्य =सोचकर , भूयः = फिर, निष्कास्यताम्= निकाल दिया जाये।
संधि कार्य..
- कश्चित् = कः +चित् ( विसर्ग संधि )
- दर्शनार्थं=दर्शन + अर्थम् (स्वर संधि )
- दीप्तिरिव=दीप्तिः + इव (विसर्ग संधि)
- भवदनुरागः=भवत् + अनुरागः (व्यञ्जन संधि)
- विद्वद्गणः= विद्वत् +गणः (व्यञ्जन संधि)
- अनुगृहीतोऽस्मि=अनुग्रहीतः + अस्मि (विसर्ग संधि)
- शुचिदर्शः = शुचिः +दक्षः (विसर्ग संधि)
- कविर्विद्वान=कविः + विद्वान् (विसर्ग संधि )
- भवद्राज्ये= भवत् + राज्ये ( व्यञ्जन संधि )
- ममैतत्= मम + एतत् ( वृद्धि स्वर संधि)
- तद् गृहे = तत् + गृहे (व्यञ्जन संधि )
पद परिचय…
- कर्मचारिणः =कर्मचारिन् शब्द, पुलिङ्ग, प्रथमा विभक्ति, बहुवचन
- अध्यासते = अधि उपसर्ग, आस् धातु, लट् लकार, आत्मनेपद, प्रथम पुरुष एक वचन
- आप्नोतु = आप् धातु, लोट् लकार, प्रथम पुरुष, एक वचन
- दिक्षुः = दिश् शब्द, स्त्रिलिङ्ग, सप्तमी विभक्ति, बहु वचन
- एधताम्=एध् धातु, लोट् लकार,प्रथम पुरुष एक वचन
- विपदः = विपद् शब्द , स्त्रिलिङ्ग, प्रथमा विभक्ति, एक वचन
- आसनानि= आसन शब्द, नपुंसक लिङ्ग , द्वितीया विभक्ति, बहुवचन
- संपदः = संपद् शब्द, स्त्रिलिङ्ग,प्रथमा विभक्ति, एक वचन
- व्रजन्तु =व्रज धातु, लोट् लकार, प्रथम पुरुष, बहु वचन
- लसन्तु = लस् धातु , लोट् लकार, प्रथम पुरुष, बहुवचन
प्रकृति प्रत्यय..
- प्रविश्य= प्र उपसर्ग, विश् धातु + ल्यप् प्रत्यय
- समाकर्ण्य= सम् + आ + कर्ण + ल्यप् प्रत्यय
- निवसितुं= नि + वस् + तुमुन् प्रत्यय
- समाहूय = सम + आ + ह्वे + ल्यप् प्रत्यय
- वासयितव्यः= वस् + तव्यत् प्रत्यय
- भ्रान्त्वा= भ्रम् + क्त्वा
- विचार्य= वि + चर् +णिच् +ल्यप्
द्वितीयं दृश्यं
नगरपाल: ….. (तन्तुवायम् प्रति ) भो किमेतत् करोषि ?
नगरपाल ….(तन्तुवाय की ओर) अरे! यह क्या कर रहे हो।
तन्तुवायः …..महाराज! अहम् त्रुटितान् तन्तून् संयोजयामि।
तन्तुवाय …….महाराज! मैं टूटे हुए धागों को जोड़ता हूँ।
नगरपाल: ….किं पठितोऽसि ?
नगरपाल …….क्या पढ़े हुए हो?
तन्तुवायः …..आम्, मया गुरुकुले शिक्षा गृहीता।
तन्तुवाय ……हाँ, मैनें गुरुकुल से शिक्षा प्राप्त की है।
नगरपालः …….किं काव्यरचनां जानासि ?
नगरपाल ……..क्या कविता की रचना करना जानते हो? या कविता लिखना जानते हो?
तन्तुवायः …..पश्यतु एव भवान्। तन्तुसंयोजने व्यग्रोऽहं कथं काव्यं कुर्याम् ?
तन्तुवाय ….. आप ही देखिये, धागों को जोड़ने में व्यस्त में काव्य रचना कैसे कर सकता हूँ।
नगरपालः ….तर्हि त्वया मया सह राजसभां गन्तव्यम्।
नगरपाल ……तो मेरे साथ राजसभा में चलो।
तन्तुवायः ……प्रसीदतु भवान् ! तत्र गत्वा किं करिष्यामि । दयस्व, मयि दयस्व । तत्र गमनेन मम कार्यहानिः भविष्यति।
तन्तुवाय ……..आप कृपा करें! वहाँ जा कर में क्या करूंगा? दया करिये , मुझ पर दया करिये। वहाँ जाने से मेरे कार्य की हानि होगी।
नगरपालः…. नाहं जाने। त्वया गन्तव्यमेव । एष राजादेशः । विसृज कार्यम् । झटिति आगच्छ मया साकम् ।
नगरपाल….मैं नहीं जानता। तुम्हे चलना ही पड़ेगा। यह राजा का आदेश है। कार्य छोड़ दो। शीघ्र मेरे साथ आओ।
तन्तुवायः….राजादेश इति । गन्तव्यमेव, नास्ति उपायः । चलामि नगरपालक ! चलामि।
तन्तुवाय…….राजा का आदेश है। जाना ही है, कोई उपाय नहीं है। चलता हूँ , नगरपाल चलता हूँ।
शब्दार्थ…तन्तुवायम्=जुलाहे को /बुनकर को , तन्तून् = धागों को , संयोजयामि= जोड़ता हूँ, त्रुटितान् = टूटे हुए, व्यग्रः = व्यस्त , गन्तव्यं = जाना है , तर्हि =तो , प्रसीदतु = प्रसन्न हों / कृपा करें, दयस्व = दया करिये, जाने = जानता हूँ, विसृज = छोड़ दो , झटिति = शीघ्र /जल्दी, साकम् = साथ।
संधिकार्य…
- तन्तुवायम् प्रति= तन्तुवायं प्रति (अनुस्वार संधि )
- पठितोऽसि = पठितः असि (विसर्ग संधि)
- व्यग्रोऽहं = व्यग्रः अहम् (विसर्ग संधि)
- राजादेशः= राजा +आदेशः (दीर्घ स्वर संधि)
- नास्ति = न +अस्ति = (दीर्घ स्वर संधि)
पद परिचय…
- करोषि = कृ धातु , लट् लकार मध्यम पुरुष, एक वचन
- तन्तून् = तन्तु शब्द , पुलिङ्ग् , द्वितीया विभक्ति , बहु वचन
- संयोजयामि = सम् उपसर्ग, युज् धातु, लट् लकार, उत्तम पुरुष, एक वचन
- गुरुकुले = गुरुकुल शब्द , सप्तमी विभक्ति एक वचन
- व्यग्रः = विशेषण शब्द, पुलिङ्ग, प्रथमा विभक्ति, एक वचन
- जानासि = ज्ञा धातु , लट् लकार, मध्यम पुरुष , एक वचन
- प्रसीदतु= प्र उपसर्ग , सद् धातु , लोट् लकार , प्रथम पुरुष ,एक वचन
- कुर्याम् = कृ धातु, विधिलिङ्ग लकार, उत्तम पुरुष , एक वचन
- करिष्यामि = कृ धातु, लृट् लकार, उत्तम पुरुष , एक वचन
- दयस्व= दय् धातु, लोट् लकार , मध्यम पुरुष ,एक वचन
- विसृज= वि उपसर्ग सृज् धातु, लोट्ल कार, मध्यम पुरुष , एक वचन
प्रकृति प्रत्यय…
- त्रुटितान् =त्रुट् + क्त प्रत्यय
- गृहीता = ग्रह् + क्त प्रत्यय
- पठितः = पठ् + क्त प्रत्यय
- गन्तव्यं = गम् + तव्यत् प्रत्यय
तृतीयं दृश्यम्
( राजसभा। सर्वे यथापूर्वम् उपविष्टाः ।)
( राजसभा सभी पहले की तरह बैठे हैं।)
नगरपालः ….(प्रविश्य) महाराज ! अनीतोऽयं कुविन्दः । अयं काव्यं कर्तुं न जानाति ।
नगरपाल …..(प्रवेश करके)महाराज! इस बुनकर (जुलाहे)को लाया हूँ। यह काव्य रचना करना नहीं जानता।
भोजराजः ……(कुविन्दं प्रति) भोः , त्वं काव्यं कर्तुं न जानीषे। अतः राजकोषात् धनं गृहीत्वा कवचिदन्यत्र प्रस्थानं कुरु । तव गृहे एष पण्डितवरः सकुटुम्बः स्थास्यति ।
भोजराज …… (बुनकर की ओर)अरे! तुम काव्य रचना करना नहीं जानते। अतः तुम राजकोष से धन ले कर कहीं और प्रस्थान करो। (चले जाओ)। तुम्हारे घर में यह पण्डितवर परिवार सहित रहेंगे।
तन्तुवायः ……राजन् ! राजनियमः तु मया पालनीयः एव तथापि श्रूयतां मम एकं निवेदनम् ।
तन्तुवाय ……..राजन्! राजनियम का तो मुझे पालन करना ही है, फिर भी मेरा एक निवेदन सुन लीजिये।
भोजराजः …..त्वरितं ब्रूहि..
भोजराज …….शीघ्र/जल्दी बोलो..
तन्तुवायः ……महाराज ! तन्तुवयनं मम व्यवसायः । अहं रात्रिन्दिवं परिश्रम्य अनेन व्यवसायेन जीविकामर्जयामि। काव्यरचनायां महाकवितुल्यः मम अभ्यासः नास्ति तथापि किञ्चित् निवेदयामि । श्रोतुमर्हन्ति भवन्तः –
तन्तुवाय ……महाराज ! वस्त्र बुनना मेरा व्यवसाय है। मैं रात दिन परिश्रम करके इस व्यवसाय से जीविका चलाता हूँ। काव्य रचना में मेरा महाकवि के समान अभ्यास नहीं है, फिर भी कुछ निवेदन करता हूँ। आप सुन लीजिये …
शब्दार्थ..यथापूर्वम् = पहले की तरह , उपविष्टाः = बैठे हैं.,आनीतः= लाया गया है , कुविन्दम् = जुलाहे को / बुनकर को , जानीषे = जानते हो , राजकोषात् = खजाने से, गृहीत्वा = लेकर , क्वचित् =कहीं , अन्यत्र = दूसरी जगह,स्थास्यति= रहेगा , पालनीयः = पालन करना है, त्वरितं = शीघ्र / जल्दी , ब्रूहि = बोलो , परिश्रम्य = मेहनत करके , अर्जयामि = अर्जित करता हूँ,
संधि कार्य…
- अनीतोऽयं= आनीतः +अयम् (विसर्ग संधि )
- कवचिदन्यत्र= क्वचित् +अन्यत्र (व्यञ्जन संधि )
- रात्रिन्दिवं= रात्रिम् + दिवम् (व्यञ्जन संधि )
- तथापि = तथा +अपि ( दीर्घ स्वर संधि )
- जीविकामर्जयामि=जीविकाम् +अर्जयामि (संयोग)
- किञ्चित्= किम् + चित् ( व्यञ्जन संधि )
पद परिचय..
- आनीतः = आ उपसर्ग, नी धातु, क्त प्रत्यय , पुलिङ्ग, प्रथमा विभक्ति, एक वचन
- जानीषे = ज्ञा धातु, आत्मनेपद, लट् लकार, मध्यम पुरुष, एक वचन
- स्थास्यति= स्था धातु , लृट् लकार, प्रथम पुरुष, एक वचन
- ब्रूहि= ब्रू धातु , लोट् लकार, मध्यम पुरुष, एक वचन
प्रकृति प्रत्यय
- प्रविश्य= प्र + विश् + ल्यप् प्रत्यय
- कर्तुं = कृ + तुमुन् प्रत्यय
- गृहीत्वा= ग्रह् धातु + क्त्वा प्रत्यय
- श्रोतुम= श्रु धातु + तुमुन् प्रत्यय
- पालनीयः= पाल् धातु + अनीयर प्रत्यय
- परिश्रम्य= परि + श्रम + ल्यप् प्रत्यय
- आनीतः = आ + नी + क्त प्रत्यय
काव्यं करोमि नहि चारुतरं करोमि।
यत्नात् करोमि यदि चारुतरं करोमि ।
भूपालमौलिमणिमण्डितपादपीठ
हे साहसाङ्क ! कवयामि वयामि यामि ॥
शब्दार्थ..चारुतरं = अधिक सुन्दर , मौलि = मस्तक , कवयामि = कविता करता.हूँ, वयामि = बुनता हूँ, यामि =जाता हूँ
मैं काव्य रचना करता हूँ परन्तु अधिक सुन्दर नहीं कर पाता हूँ। यदि प्रयत्न से करुँ तो सुन्दर भी कर लेता हूँ। राजाओं की मस्तक की मणियों से सुशोभित चरणपीठ ( राजा के पैरों को रखने वाला आसन) वाले हे साहसाङ्क! मैं कविता करता हूँ,( वस्त्र )बुनता हूँ, जाता हूँ।
पद परिचय
- चारुतरं= विशेषण शब्द, नपुंसक लिङ्ग, प्रथमा विभक्ति, एक वचन
- करोमि=कृ धातु, लट् लकार उत्तम पुरुष, एक वचन
- कवयामि= कवि + णिच् प्रत्यय, लट् लकार , उत्तम पुरुष, एक वचन
- वयामि = वे धातु लट् लकार , उत्तम पुरुष, एक वचन
- यामि = या धातु , लट् लकार , उत्तम पुरुष, एक वचन
भोजः…साधु कुविन्द ! साधु ! कीदृशी लालित्यपूर्णा पदयोजना ‘कवयामि वयामि यामि’ धन्योऽसि त्वम्। अहमपि आत्मानं धन्यं मन्ये, यस्य राज्ये तन्तुवायाः, कुम्भकाराः, अयस्काराः, शिल्पिनः, श्रमिकाः अपि ललितां काव्यरचनां कुर्वन्ति ।
भोज.. हे! कुविन्द बहुत अच्छा ! कितनी सुन्दर पद योजना ‘कवयामिवयामि यामि’। आप धन्य हैं। मैं भी अपने आप को धन्य मानता हूँ। जिसके राज्य में जुलाहा, कुम्हार,लुहार,शिल्पी मजदूर भी सुन्दर काव्य रचना करते हैं।
(तन्तुवायं प्रति) भो ! कविवर ! गृहाण पुष्कलं स्वर्णमयं पारितोषिकम् । निजम् आवासं च प्रयाहि । (मन्त्रिणं प्रति) पण्डितः लक्ष्मीधरः मम राजभवने वासयितव्यः, यावद् अपरा व्यवस्था न भवति ।
(तन्तुवाय को) हे कविवर! अत्यधिक स्वर्ण से युक्त ( सोने का gold)पुरस्कार प्राप्त करो और अपने घर जाओ।
(मन्त्री को राजा कहते हैं) विद्वान् लक्ष्मीधर मेरे राजभवन में निवास करेंगे(रहेंगे),जब तक दूसरी व्यवस्था नहीं होती।
(राजा तन्तुवायाय स्वर्णमुद्राः अर्पयति । तन्तुवायः पारितोषिकं प्राप्य प्रसन्नवदनः राजानम् अभिवाद्य गृहं प्रयाति) ।
(राजा तन्तुवाय को स्वर्ण मुद्रा देते हैं। तन्तुवाय पुरस्कार प्राप्त करके प्रसन्न हो कर राजा को प्रणाम करके घर चला जाता है)
शब्दार्थ..कुविन्द = जुलाहा , साधु = बहुत अच्छा, कीदृशी = कैसी, लालित्यपूर्णा = सुन्दर पदों से युक्त , पदयोजना = पदों का संयोजन , तन्तुवायाः = बुनकर , कुम्भकाराः= कुम्हार , अयस्काराः= लुहार (लोहे का कार्य करने वाले ), शिल्पिनः=शिल्पी , श्रमिकाः= श्रम करने वाले, पुष्कलं = अत्यधिक / बहुत ज्यादा, प्रयाहि = जाओ , वासयितव्यः= ठहराये जायें, अपरा = दूसरी, अभिवाद्य = प्रणाम करके
संधि कार्य
- धन्योऽसि= धन्यः + असि (विसर्ग संधि )
पदपरिचय
- प्रयाहि =प्र उपसर्ग, या धातु, लोट् लकार, मध्यम पुरुष, एक वचन
- राजानम्=राजन् शब्द, पुलिङ्ग, द्वितीया विभक्ति, एक वचन
प्रकृति प्रत्यय
- प्राप्य =प्र +आप् +ल्यप् प्रत्यय
- वासयितव्यः= वस् + णिच् प्रत्यय + तव्यत् प्रत्यय
- अभिवाद्य=अभि +वद् +णिच् +ल्यप् प्रत्यय
एकपदेन उत्तरं लिखत
- (क) भोजराजः कस्य राज्यस्य नरेशः आसीत्
- (ख) कः विद्वान् राजदर्शनार्थं समायातः ?
- (ग) लक्ष्मीधरेण कस्मै आशीर्वादः दीयते ?
- (घ) यत्र जलपूर्ण सरः भवति, तत्र के आगच्छन्ति ?
- (ङ) लक्ष्मीधरः किं समाकर्ण्य धरानगरीम् आगच्छति ?
- (च) निवासव्यवस्थायै मन्त्री कम् आदिशति ?
- (छ) भोजराजेन स्वराज्यात् कस्य निःसारणादेशः कृतः ?
उत्तराणि…
- (क)धारराज्यस्य
- (ख)लक्ष्मीधरः
- (ग)भोजराजाय
- (घ)पक्षिणः
- (ङ) भोजविद्यानुरागं / भोजस्यदानशीलतां
- (च) नगरपालम्
- (छ)अपठितजनस्य
2. पूर्णवाक्येन अधोलिखितप्रश्नानामुत्तराणि संस्कृतेन लिखत
- (क) लक्ष्मीधरेण कः आशीर्वादः राज्ञे प्रदत्तः ?
- (ख) लक्ष्मीधरः कस्य गृहे वासयितव्यः आसीत् ?
- (ग) तन्तुवायः केन जीविकाम् अर्जयति स्म ?
- (घ) तन्तुवायेन यत्पद्यं रचयित्वा श्रावितं तस्य प्रथमां पङ्क्तिं लिखत।
- (ङ) यावद् अपरा व्यवस्था न भवति तावत् लक्ष्मीधरः कुत्र वासयितव्यः आसीत् ?
- (च) तन्तुवायस्य पदयोजना कीदृशी आसीत् ?
- (छ) भोजराजः सन्तुष्टो भूत्वा कं प्रशंसति ?
उत्तर…
- (क) भवत्कीर्तिः दिनकरदीप्तिरिव दिक्षुः प्रसारम् आप्नोतु। वर्धन्तां विभवाः सौख्यानि च लसन्तु संपदः, विलयं व्रजन्तु च विपदः। प्रतिष्ठां लभतां विद्वद्गणः।सततं एधताम् विद्यासु कलासु च भवदनुरागः।
- (ख) लक्ष्मीधरः भोजराजस्य गृहे वासयितव्यः आसीत्।
- (ग)तन्तुवायः तन्तुवयनेन जीविकाम् अर्जयति स्म।
- (घ)यावद् अपरा व्यवस्था न भवति तावत् लक्ष्मीधरः राज्ञः राजभवने वासयितव्यः आसीत्।
- (ङ)तन्तुवायस्य पदयोजना लालित्यपूर्णा आसीत् ।
- (छ) भोजराजः सन्तुष्टो भूत्वा तन्तुवायम् प्रशंसति ?
3. स्थूलाक्षरपदानि आधृत्य प्रश्ननिर्माणं कुरुत –
(क) लक्ष्मीधरः द्वारपालेन सह प्रविशति ।
(ख) यत्र जलपूर्णं सरः भवति तत्र पक्षिणः स्वयं समायान्ति ।
(ग) अहं त्रुटितान् तन्तून् संयोजयामि।
(घ) तन्तुवायेन गुरुकुले शिक्षा गृहीता।
(ङ) राजा तन्तुवायाय स्वर्णमुद्राः अर्पयति ।
उत्तर..
- (क) लक्ष्मीधरः केन् सह प्रविशति?
- (ख) यत्र जलपूर्णं सरः भवति तत्र के स्वयं समायान्ति?
- (ग) अहं कीदृशान् तन्तून् संयोजयामि?
- (घ) तन्तुवायेन कुत्र शिक्षा गृहीता?
- (ङ) राजा कस्मै स्वर्णमुद्राः अर्पयति?
4. अधोलिखितान् प्रश्नान् यथानिर्देशम् उत्तरत
(क) ‘दिनकरदीप्तिरिव भवकीर्तिः दिक्षु प्रसारम् आप्नोतु ।’ अस्मिन् वाक्ये क्रियापदं किम् ?
उत्तर..आप्नोतु
(ख) ‘तत्र पक्षिणः स्वयं समायान्ति ।’ अत्र ‘समायान्ति’ इति क्रियापदस्य किं कर्तृपदं प्रयुक्तम् ?
उत्तर..पक्षिणः
(ग) ‘महाराज ! आनीतोऽयं कुविन्दः ।’ अस्मिन् वाक्ये ‘आनीतः’ इति विशेषणपदस्य किं विशेष्यपदं प्रयुक्तम् ?
उत्तर…कुविन्दः
(घ) ‘यावद् अपरा व्यवस्था न भवति।’ अस्मात् वाक्यात् विशेषणपदं चित्वा लिखत।
उत्तर…अपरा
(ङ) ‘झटिति आगच्छ मया साकम्।’ अस्मात् वाक्यात् ‘सह’ इति पदस्य पर्यायपदं चिनुत ।
उत्तर..साकम्
(च) ‘तन्तुवायः राजानम् अभिवाद्य गृहं प्रयाति’ अस्मिन् वाक्ये ‘आयाति’ इति पदस्य किं विलोमपदं प्रयुक्तम् ?
उत्तर..प्रयाति
5. कथानकक्रमानुसारम् अधोलिखितवाक्यानि पुनः लिखत –
(क) तन्तुवायः तन्तुवयनेन जीविकाम् अर्जयति स्म।
(ख) तन्तुवायः महाकवितुल्यः न आसीत्।
(ग) राजाभोजः मन्त्रिणं लक्ष्मीधरस्य आवासव्यवस्थायै आदिशति ।
(घ) एकदा लक्ष्मीधरः भोजराजस्य सभां गच्छति।
(ङ) भोजराजः लक्ष्मीधरस्य वाक्चातुर्येण प्रसन्नः भवति ।
(च) नगरपालः नगरे कमपि निरक्षरं मूर्ख वा जनं न अपश्यत् ।
(छ) भोजराजः नगरपालं काव्यप्रतिभाहीनं जनं नगरात् निष्कास्य लक्ष्मीधरं वासयितुम् आदिशति ।
(ज) वस्तुतः तन्तुवायः अपि कविः आसीत्।
(झ) नगरपालः तन्तुवायं राजसभां नयति ।
(ञ) राजा तन्तुवायस्य पदयोजनां प्रशंसति ।
उत्तर..
- (क)एकदा लक्ष्मीधरः भोजराजस्य सभां गच्छति।
- (ख) भोजराजः लक्ष्मीधरस्य वाक्चातुर्येण प्रसन्नः भवति।
- (ग) राजाभोजः मन्त्रिणं लक्ष्मीधरस्य आवासव्यवस्थायै आदिशति ।
- (घ) नगरपालः नगरे कमपि निरक्षरं मूर्ख वा जनं न अपश्यत् ।
- (ङ) भोजराजः नगरपालं काव्यप्रतिभाहीनं जनं नगरात् निष्कास्य लक्ष्मीधरं वासयितुम् आदिशति ।
- (च) तन्तुवायः तन्तुवयनेन जीविकाम् अर्जयति स्म।
- (छ) नगरपालः तन्तुवायं राजसभां नयति ।
- (ज) तन्तुवायः महाकवितुल्यः न आसीत्।
- (झ) राजा तन्तु वायस्य पदयोजनां प्रशंसति ।
- (ञ) वस्तुतः तन्तुवायः अपि कविः आसीत्।
6. पर्यायवाचिनां मेलनं कृत्वा लिखत-
(क) अमात्यः ……… (i) कुविन्दः
(ख) तन्तुवायः ……… (ii) त्वरितम्
(ग) विद्वान् ……… (iii) मन्त्री
(घ) झटिति ………. (iv) पण्डितः
उत्तर….
- (क)अमात्यः ……… मन्त्री
- (ख)तन्तुवायः ……… कुविन्दः
- (ग)विद्वान् ……… पण्डितः
- (घ)झटिति ………… त्वरितम्
7. अधोलिखितानां पदानां विपरीतार्थकान् शब्दान् पाठात् चित्वा लिखत-
(क) गत्वा
(ख) मूर्खः
(ग) निरक्षरः
(घ) निष्क्रम्य
(ङ) सम्पदः
उत्तर…(क) आगत्य , (ख)विद्वान् / पण्डितः , (ग) पठितः , (घ) प्रविश्य, (ङ) विपदः
8. अधस्तात् दत्तानि वाक्यानि केन कं प्रति उक्तानि- …………… केन् …………….. कम्
क) ममैतत् सौभाग्यं यद् भवादृशाः विद्वांसः मम पण्डितपरिषदं विभूषयेयुः ।…………. …………….
(ख) अभिवादये भवन्तम्। दिनकरदीप्तिरिव, भवत्कीर्तिः दिक्षु प्रसारम् आप्नोतु । ।…………. …………….
(ग) राजन् ! यत्र जलपूर्ण सरः भवति तत्र पक्षिणः स्वयं समायान्ति । ।………. …………….
(घ) समस्ते नगरे भ्रान्त्वा कमपि निरक्षरं मूर्ख वा जनम् न अपश्यम् । …………… …………….
(ङ) त्वं भूयः नगरं याहि। …………… …………….
(च) महाशय ! अहं त्रुटितान् तन्तून् संयोजयामि। ।…………… …………….
(छ) आम् ! मया गुरुकुले शिक्षा गृहीता। …………… …………….
(ज) राजा भोजः आत्मानं धन्यं मन्यते । …………… …………….
(झ) दयस्व, मयि दयस्व। ……………… ……………..
(ञ) नगरपालं समाहूय आदिश्यताम् । ……………… …………….
उत्तर.
क | भोजराजेन | लक्ष्मीधरम् |
ख | लक्ष्मीधरेण | भोजराजम् |
ग | लक्ष्मीधरेण | भोजराजम् |
घ | नगरपालेन | भोजराजम् |
ङ | भोजराजेन | नगरपालम् |
च | तन्तुवायेन | नगरपालम् |
छ | तन्तुवायेन | नगरपालम् |
ज | भोजराजेन | आत्मानं |
झ | तन्तुवायेन | नगरपालम् |
ञ | भोजराजेन | मन्त्रिणम् |
नोट राजा भोजः आत्मानं धन्यं मन्यते… इस पङ्क्ति में मन्यते के स्थान पर मन्ये होना चाहिये। जो राजा भोज ने अपने आप को कहा था।
Sanskrit Class9 न धर्मवृद्धेषु वयः समीक्षते